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अंधविश्वास का दलदल: तेजी से फंस रहे लोग, TB भगाने के लिए पी रहे बकरी का पेशाब
छत्तीसगढ़ के लोगों पर इन दिनों अंधविश्वास हावी है। जिसकी वजह से कई लोगों को अपनी जिंदगियां भी गंवानी पड़ रही है। हाल ही में एक अंधविश्वास का मामला आया है बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले से। यहां एक 14 साल की लड़की टीबी से जंग लड़ते-लड़ते जिंदगी से हार गई।
रायपुर: छत्तीसगढ़ के लोगों पर इन दिनों अंधविश्वास हावी है। जिसकी वजह से कई लोगों को अपनी जिंदगियां भी गंवानी पड़ रही है। हाल ही में एक अंधविश्वास का मामला आया है बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले से। यहां एक 14 साल की लड़की टीबी से जंग लड़ते-लड़ते जिंदगी से हार गई। लड़की के परिवार वालों ने अस्पताल से मिली दवाई बंद कर अंधविश्वास पर विश्वास कर लिया था।
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इलाज के बजाय अंधविश्वास का सहारा ले रहे लोग
परिवार वाले टोना-टोटका और झाड़-फूंक से टीबी के ठीक होने की उम्मीद करने लगे थे। जानकारी के मुताबिक इस बच्ची में पिछले साल अगस्त में टीबी के लक्षण की पुष्टि हुई थी। इलाज भी शुरू किया गया, लेकिन कुछ दिन बाद ही परिवार वाले उन्हें लेकर मूलनिवास कोंडागांव जिले के चेमा चले गए। यहां टीबी के लिए दी गई दवाई बंद कर दी गई और प्रेत का साया होने की बात कहकर झाड़-फूंक से इलाज करवाया जाने लगा। कोरोना के चलते स्वास्थ्य विभाग द्वारा मॉनिटरिंग नहीं की जा सकी और 22 दिसंबर को बच्ची ने दम तोड़ दिया।
कई लोग हो चुके हैं अंधविश्वास का शिकार
बस्तर में बच्ची के साथ हुआ हादसा कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले जून 2018 में नारायणपुर जिले में 22 साल की युवती को बकरी के बाड़े में कई दिनों तक बंद रखा गया, क्योंकि वह टीबी की मरीज थी। स्थानीय लोगों का मानना था कि बकरी का पेशाब पिलाने और मल सुंघने से टीबी की बीमारी ठीक हो जाती है। आखिरकार कुछ दिनों बाद उसने भी दम तोड़ दिया। बस्तर के अंदरूनी इलाकों में टीबी के लगभग हर केस में अंधविश्वास पर विश्वास कर इलाज करवाया जाता है।
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चलाई जा रही जागरूकता मुहीम
हालांकि कुछ लोग हैं जो इस अंधिश्वास के दलदल से बाहर निकल चुके हैं और जागरूकता मुहीम चला रहे हैं। लोगों को इस दलदल से बाहर निकालने के लिए मुहीम भी चलाई जा रही है। टीबी मुक्त छत्तीसगढ़ फाउंडेशन की अध्यक्ष कल्याणी निषाद कहती हैं कि वह खुद अंधविश्वास की इस जाल का शिकार हो चुकी हैं। उनमें भी टीबी की पुष्टि हुई थी, जिसके बाद उनके साथ भेदभाव शुरू हो गया। दवाई की बजाय उन्हें बकरी का पेशाब पिलाया गया। किसी तरह उनका संपर्क स्वास्थ्य विभाग की टीम से हुआ और सही तरीके से इलाज शुरू हुआ। अब वह ठीक हैं और खुद टीबी चैंपियन के तौर पर बस्तर के अंदरूनी इलाकों में काम कर रही हैं।