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नागरिकता कानून पर मुसलमानों को कैसे बरगला रहा है विदेशी मीडिया, पढ़ें ये रिपोर्ट
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ लोगों का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। नागरिकता के इस नए कानून को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों में लोग सड़कों पर उतरकर हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं।
लखनऊ: नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ लोगों का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। नागरिकता के इस नए कानून को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों में लोग सड़कों पर उतरकर हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। देश के अखबार, टीवी चैनल और डिजिटल मीडिया विरोध की खबरों से भरे हुए हैं।
आइए आज हम आपको बताते हैं विदेशी मीडिया नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर क्या लिख रहा है? साथ ही भारत के बाहर रह रहे मुसलमानों को कैसे अपनी खबर के जरिये बरगला रहा है। सबसे पहले बात करते हैं पाकिस्तानी मीडिया की।
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जंग
पाकिस्तान के अखबार जंग में प्रकाशित खबर के मुताबिक भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के इस बिल पर हस्ताक्षर करने के बाद यह कानून तो बन गया है, लेकिन भारत के कई राज्यों में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहा है। लोग सड़कों पर हैं। 6 राज्यों ने मुस्लिम विरोधी कानून मानने से इनकार कर दिया है।
रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वोत्तर राज्य असम की राजधानी गुवाहाटी में पुलिस की गोली से दो प्रदर्शनकारियों की जान जा चुकी चुकी है। भारत के छह राज्य दिल्ली,, केरल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल ने इस कानून को अपने राज्य में लागू करने से मना कर दिया है।
लोग सड़कों पर उतरकर इसके खिलाफ उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं। पुलिस उनके खिलाफ लाठीचार्ज कर रही है। वहीं जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अपना भारत दौरा रद्द कर दिया है।
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न्यूयॉर्क टाइम्स
अमेरिका का अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है, “ भारत की संसद में लोगों को बांटने वाला नागरिकता बिल पास हो गया है। इस पर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। लिखा है कि इस बिल में धार्मिक आधार पर ये तय किया जाएगा कि कौन अवैध शरणार्थी है और कौन नहीं। इस बिल ने दक्षिण एशिया के सभी मुख्य धर्मों को शामिल किया है, सिवाय मुस्लिम धर्म के।'
द गार्जियन
ब्रिटेन का अखबार 'द गार्जियन' नागरिकता कानून पर लिखता है कि इसके खिलाफ पूरा विपक्ष लामबंद हो गया है। मोदी सरकार के 6 साल के शासनकाल में यह पहला बड़ा विरोध प्रदर्शन है।
इंडेपेंडेंट
ब्रिटेन का अखबार ‘इंडेपेंडेंट’ लिखता है, भारत की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार ने विवादित कानून को संसद से पास करा लिया है। ये कानून पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता दिलाने में मदद करेगा, सिवाय मुस्लिमों के'।
बेशक इस बिल में मुस्लिम शामिल नहीं हैं, क्योंकि इसमें सिर्फ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को शामिल किया गया है और ये तीनों ही मुस्लिम देश हैं। भाजपा का यही तर्क भी है कि एक इस्लामिक देश में किसी मुस्लिम शख्स के साथ धर्म के आधार पर उत्पीड़न नहीं होता है। इसी वजह से इस बिल में सिर्फ अल्पसंख्यकों को शामिल किया गया है।
द पोस्ट
'द पोस्ट' ने लिखा है कि नए कानून ने कुछ दक्षिण एशिया के देशों के शरणार्थियों के लिए भारत में नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ कर दिया है, लेकिन मुस्लिम इसमें शामिल नहीं हैं, जिसमें विश्वास रखने वाले करीब 20 करोड़ लोग भारत के नागरिक हैं।
विदेशी मीडिया आज भी अगर बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान में जाए तो उसे साफ दिखेगा कि वहां अल्पसंख्यकों पर धर्म के आधार पर जुल्म हो रहे हैं।
कहीं पर भी किसी मुस्लिम पर धर्म के आधार पर उत्पीड़न होता नहीं दिखेगा। ऐसे में भारत के नागरिकता संशोधन बिल को विवादित या बांटने वाला बताना विदेशी मीडिया की विरोधाभासी बात लगता है।
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