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भारत में पहली बार दिखी ये दुर्लभ मछली, है बेहद खतरनाक, जानिए इसके बारे में

सेंट्रल मरीन फिशरीज इंस्टीट्यूट (CMFRI) के वैज्ञानिकों ने एक दुर्लभ प्रकार की मछली खोजी है। जो अपना रंग बदल सकती है, साथ ही यह बेहद जहरीली भी है। ऐसा पहली बार है कि किसी भारतीय जलस्त्रोत में ऐसी मछली खोजी गई है।

Shreya
Published on: 2 Jun 2020 4:51 AM GMT
भारत में पहली बार दिखी ये दुर्लभ मछली, है बेहद खतरनाक, जानिए इसके बारे में
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नई दिल्ली: सेंट्रल मरीन फिशरीज इंस्टीट्यूट (CMFRI) के वैज्ञानिकों ने एक दुर्लभ प्रकार की मछली खोजी है। जो अपना रंग बदल सकती है, साथ ही यह बेहद जहरीली भी है। ऐसा पहली बार है कि किसी भारतीय जलस्त्रोत में ऐसी मछली खोजी गई है। इस मछली का नाम स्कॉर्पियनफिश (Scorpionfish) है। वहीं इसका वैज्ञानिक नाम (scientific name) स्कॉर्पिनोस्पिसिस नेगलेक्टा (Scorpinospisis neglecta) है।

शिकार और बचाव के समय रंग बदल सकती है

इस मछली की खासियत है कि यह शिकार करते समय और बचाव के समय अपना रंग बदला सकती है। साथ ही इसके रीढ़ में न्यूरोटॉक्सिक विष होता है। अगर इस मछली को सावधानी से नहीं पकड़ा गया तो इसके जहर से काफी नुकसान हो सकता है।

रीढ़ की हड्डी में होता है विष

CMFRI के साइंटिस्ट्स डॉ. आर जेयाबास्करन के मुताबिक, इसके रीढ़ में मौजूद न्यूरोटॉक्सिक विष होता के इंसानी शरीर में चले जाने से भयानक दर्द होता है। उन्होंने बताया कि हमें यह मछली समुद्री घास के रंग में बदली हुई मिली। मन्नार की खाड़ी में ऐसी मछली पहली बार पाई गई है।

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चार सेकेंड में बदल लेती है अपने शरीर का रंग

डॉ. आर जेयाबास्करन ने कहा कि जब हमने पहली बार इसे देखा तो यह घास में छिपी थी। इसके बाद यह एक कोरल स्केलेटेन की तरह नजर आ रही थी। इसे देख यह समझ नहीं आ रहा था कि यह मछली है या फिर फॉसीलाइड्ड कोरल स्केलेटन। चार सेकंड के बाद ही मछली ने अपने शरीर का रंग बदलकर काल कर लिया। तब समझ आया कि यह एक दुर्लभ स्कॉर्पियनफिश (Scorpionfish) है।

समुद्र से बाहर निकल कर करती है अपना शिकार

डॉ. जेयबास्करन ने बताया कि यह स्कॉर्पियनफिश रात के समय समुद्र से बाहर निकल कर अपना शिकार करती है। समुद्र की गहराई में अपने शिकार के नजदीक आने का इंतजार करती है। इस मछली का सेंसरी ऑर्गन बहुत तेज होता है। शिकार के करीब आने पर ही ये बिजली की तेजी से झपट कर उसे खा जाती है।

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पूंछ में होते हैं सेंसरी ऑर्गन

यह मछली 10 सेंटीमीटर दूर से छोटे-छोटे जीवों द्वारा छोड़ी गई तरंगों को पकड़ने में सक्षम है। इस मछली के अधिकतर सेंसरी ऑर्गन इसके पूंछ में होते हैं। इसकी पूंछ पर काले धब्बे होने की वजह से कुछ लोग इसे बैंडटेल स्कॉर्पियनफिश कहते हैं।

उन्होंने बताया कि फिलहाल इस मछली को नेशनल मरीन बायोडायवर्सिटी म्यूजियम में भेजा है ताकि इसके बारे में और स्टडी की जा सके। इस मछली के बारे में साइंटिफिक रिपोर्ट जर्नल करंट साइंस में प्रकाशित हुआ है।

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