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अब लाशों की जांच: मौतों पर बढ़ा संदेह, सरकार करेगी कोरोना टेस्ट
महाराष्ट्र राज्य में अब तक 10 लाख से अधिक संक्रमण के केस सामने आ चुके है। राज्य में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की हो रही मौतों के कारण शवों के अंतिम संस्कार करने में मुश्किलें खड़ी होने लगी है
मुंबई : देश में 49 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस संक्रमण से प्रभावित है। देश के अधिकांश हिस्से इससे प्रभावित महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है खासकर राज्य में कोरोना वायरस से 29 हजार से ज्यादा मौतें हुई हैं महाराष्ट्र राज्य में अब तक 10 लाख से अधिक संक्रमण के केस सामने आ चुके है। राज्य में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की हो रही मौतों के कारण शवों के अंतिम संस्कार करने में मुश्किलें खड़ी होने लगी है।
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रैपिड एंटीजन टेस्ट
अब सरकार ने आदेश दिया है कि अस्पताल लाये गए शवों का रैपिड एंटीजन टेस्ट किया जाये ताकि इस बात की पुष्टि की जा सके कि मृत व्यक्ति को कोरोना संक्रमण था या नहीं। महाराष्ट्र सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर टीबी की जांच वाले टेस्ट की भी अनुमति दी है।
इस भयावह स्थिति के बीच महाराष्ट्र सरकार ने प्रदेश में एंटीजन टेस्ट कराने का फैसला लिया है। इसके तहत अब अस्पताल में लाए जाने वाले प्रत्येक शव का एंटीजन टेस्ट करके यह पता किया जाएगा कि क्या उक्त व्यक्ति कोरोना संक्रमित था या नहीं। सरकार ने हाल ही में इसके लिए सर्कुलर जारी कर टीबी की जांच वाले टेस्ट को भी करने की अनुमति दी है। इन टेस्ट के जरिये मरे हुए व्यक्ति के कोरोना संक्रमित होने या ना होने की जानकारी मिलने पर उसका शव उसके परिवार को जल्दी सौंप दिया जाएगा।
फाइल फोटो
कोरोना वायरस संक्रमण
राज्य के बड़े हेल्थ अफसरों का कहना है कि महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ते कोरोना वायरस संक्रमण को देखते हुए शवों के भी एंटीजन टेस्ट करने का फैसला लिया गया है। राज्य के सरकारी अस्पताल में एक दिन में औसतन 40-50 लोगों की मौत हो रही है। कम से कम यहां 15 ऐसे लोगों को लाया जाता है जो मर चुके होते हैं। वहीं नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज और हास्पिटल में भी रोजाना औसतन 30-40 मौतें हो रही हैं। यहां कम से कम 5-10 मरे हुए लोगों को लाया जा रहा है।
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फॉरेंसिक हेल्थकेयर वर्कर की जान को खतरा
21 अगस्त को जारी किए गए नए सर्कुलर में इन एंटीजन टेस्ट के जरिये कोरोना की गलत रिपोर्ट आने की घटनाओं के बारे में चिंता भी जताई गई है। इससे शवों की ऑटोप्सी करने वाले फॉरेंसिक हेल्थकेयर वर्कर की जान को खतरा रहेगा। इन दिशानिर्देशों के अनुसार, कोरोना वायरस से हुई मौत के मामलों में फॉरेंसिक ऑटोप्सी को नहीं अपनाया जाना चाहिए क्योंकि शव के अंगों से निकले तरल पदार्थ और रिसाव के कारण हेल्थकेयर वर्कर प्रभावित हो सकते हैं। अस्पताल में या फिर कोरोना के इलाज के दौरान हुई मौत के मामले में पोस्टमार्टम की जरूरत नहीं है