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राशन के लिए तपती धूप में पैदल चला दिव्यांग, लंबी कतार देख किया किया ये काम

परिवार की भूख मिटाने की चिंता ने दिव्यांग बुजुर्ग को भरी दोपहरी और तपती धूप के बीच 2 किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर कर दिया। उन्हें जानकारी मिली थी कि पूर्व विधायक के ऑफिस पर राशन वितरित हो रहा है।

Ashiki
Published on: 19 April 2020 4:10 AM GMT
राशन के लिए तपती धूप में पैदल चला दिव्यांग, लंबी कतार देख किया किया ये काम
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नई दिल्ली: कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन की अवधि को बढ़ा दिया गया है। लेकिन लॉक डाउन की वजह से कई लोगों की जिंदगी ठहर गई है। कितने लोग तबाह हो गए हैं वहीं कइयों के सामने खाने और रहने का संकट है। सरकार लगातार बड़े-बड़े दावे तो कर रही है लेकिन हर रोज दिहाड़ी मजदूरों के कुछ ऐसे किस्से सामने आ ही जाते हैं जो सिस्टम की असफलता को सामने ला देते हैं। एक ऐसा ही किस्सा मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले से सामने आया है जो इन दिनों आम आदमी की पेट की तड़प और परिवार के बसर की चिंता को जाहिर करता है।

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यहां परिवार की भूख मिटाने की चिंता ने दिव्यांग बुजुर्ग को भरी दोपहरी और तपती धूप के बीच 2 किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर कर दिया। बैसाखी के सहारे दिव्यांग बुजुर्ग किसी तरह पूर्व विधायक जजपाल सिंह के दफ्तर पहुंचे। उन्हें जानकारी मिली थी कि पूर्व विधायक के ऑफिस पर राशन वितरित हो रहा है।

पहुंचने पर उन्होंने देखा की ऑफिस के बाहर लंबी लाइन लगी है। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए सड़क पर गोले बनाए गए हैं। बुजुर्ग दिव्यांग भगवत सिंह भी एक गोले के अंदर खड़े हो गए। लेकिन जब धूप बहुत तेज हो गई और कृत्रिम पैर पर खड़े रहना असहनीय हो गया तो उन्होंने अपना कृत्रिम पैर निकालकर गोल घेरे में रख दिया और खुद बैसाखी के सहारे छांव में जाकर बैठ गए।

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लंबी कतार देख गोले में रख दिया अपना 'कृत्रिम पैर'

काफी देर बीत जाने के बाद इस दिव्यांग पर पूर्व विधायक जजपाल सिंह की नजर पड़ी तो उन्होंने बुजुर्ग को वहीं लाकर भोजन दिया, साथ ही तांगा बुलवाकर उन्हें घर भिजवाया और आगे भी उन्होंने लॉकडाउन के दौरान दिव्यांग बुजुर्ग के घर पर राशन और भोजन भेजने की बात कही है। सात साल पहले एक ट्रेन हादसे में उनका पैर कट गया था। तब से ही वह असहाय हैं उनके घर में 6 सदस्य हैं लेकिन खाने के लिए कुछ नहीं बचा। इसलिए जब राशन वितरण की खबर मिली तो तपती धुप में पैदल ही यहां पहुंच गए।

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