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कोरोना से मौत होने पर कब करना चाहिए अंतिम संस्कार, किन बातों का रखें ध्यान
पूरा देश इस समय कोरोना वायरस की चपेट में हैं। देश में नये केस मिलने और लोगों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। नौबत यहां तक पहुंची है कि लोग अब अपने परिजनों के शवों को लेने या अंतिम संस्कार से कन्नी काटने लगे हैं।
नई दिल्ली: पूरा देश इस समय कोरोना वायरस की चपेट में हैं। देश में नये केस मिलने और लोगों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। नौबत यहां तक पहुंची है कि लोग अब अपने परिजनों के शवों को लेने या अंतिम संस्कार से कन्नी काटने लगे हैं।
बहुत से लोगों में अभी भी इस बात का भ्रम बना हुआ है कि कोरोना से मरने वाले लोगों के शवों को जलाया या फिर दफनाया जाए। तो आइये इन सभी बिन्दुओं पर हम आपको विस्तार से जानकारी दें रहे हैं।
क्या हैं केंद्रीय दिशा-निर्देश
कोविड-19 रोगियों के शवों के बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय का विस्तृत दिशा-निर्देश है। इसमें दाह-संस्कार और दफन - दोनों की अनुमति है और शवों को दफनाये जाने से संक्रमण के खतरे का कोई उल्लेख नहीं है।
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ये बरतें एहतियात
शव को लीक प्रूफ प्लास्टिक बैग में पैक किया जाए। बैग को खोलते समय सिर्फ चेहरा ही दिखे। शव को नहलाने, चूमने या उससे किसी को लिपटने नहीं दिया जाए। परिजन धार्मिक पाठ और पवित्र जल के छिड़काव में शव को छुए नहीं।
कोविड-19 रोगी के शव का लेपन या उसके पोस्टमार्टम से बचें। नाक और मुंह को भी इस तरह बंद किया जाए कि शरीर का द्रव बाहर नहीं आ पाए।
शव को बैग में रखने के बाद भी उसे भी हाइपोक्लोराइट से विसंक्रमित करें। बैग को परिवार द्वारा दिए गए कपड़े से ढका जा सकता है। यदि ट्यूब या कैथेटर को निकाला जाए तो घाव को एक फीसद हाइपोक्लोराइट वाले घोल से विसंक्रमित कर लीक-प्रूफ पट्टी बांधी जाए ताकि शव से कोई रिसाव नहीं हो।
वैसे तो विसंक्रामित बैग के परिवहन या हैंडलिंग में संक्रमण का खतरा नहीं होता, लेकिन उसे हैंडल करने वालों को निजी सुरक्षा कवच (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट- पीपीई) पहनना चाहिए।
कितनी जल्दी करें संस्कार?
मुंबई के केईएम अस्पताल के फॉरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉ. हरीश पाठक का कहना है कि शव का जल्द से जल्द संस्कार कर दिया जाना चाहिए। यदि इसे शवगृह में रखा जाता है तो इसे 4-6 डिग्री सेल्सियस तापमान में रखा जाना चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, संक्रामक शव को उचित भस्मक (इन्सिनरेटर) में जलाया जाना चाहिए, जिसके प्राथमिक चैंबर का तापमान 800 डिग्री सेल्सियस और द्वितीयक चैंबर का तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस हो। बायोमेडिकल कचड़े के निपटारे के लिए ऑटो-क्लेव मशीन का इस्तेमाल होना चाहिए।
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क्या दफनाने से संक्रमण का खतरा है?
महाराष्ट्र स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के संयुक्त निदेशक डॉ. सतीश पवार बताते हैं कि एचआइवी तथा सार्स-कोरोना वायरस-2 से संक्रमित लोगों के शव बायोसेफ्टी लेवल दो और तीन के तहत आते हैं।
इनके शव को सील कर दफनाना सुरक्षित माना जाता है। शव विघटन (डिकंपोज) में अमूमन 7-10 दिन लगता है और 3-4 दिन में शव का द्रव सूख जाता है।
सैद्धांतिक तौर पर शव का द्रव सूखने तक वायरस जीवित रह सकते हैं। लेकिन कोविड-19 का संक्रमण ड्रॉपलेट्स (खांसने-छींकने से निकलने वाले बूंदों) से फैलता है। फिलहाल, इस ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है कि शव से रिसे द्रव से भूमिगत जल दूषित हुआ हो और संक्रमण फैला हो।
यदि शव का दाह-संस्कार किया जाता है तो राख से खतरा नहीं है। संक्रमण का खतरा सिर्फ श्मशान कर्मी, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर तथा शव को हैंडल करने वालों को होता है। लेकिन यदि सभी एहतियात बरते जाएं तो दफनाना या दाह संस्कार करना - दोनों ही सुरक्षित हैं। लेकिन इसमें बड़े जमावड़े से बचा जाना चाहिए, क्योंकि यह संभव है कि परिजन संपर्क में रहे हों।
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