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केकड़ा बचाएगा दुनिया: इसका नीला खून बनेगा अमृत, बचेगी लोगों की जान
हॉर्स शू क्रैब नामक इस प्रजाति के केकड़ों का खून पहले से ही मेडिकल साइंस में उपयोग हो रहा है। इससे इस बात की जांच होती है कि अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल उपकरण बैक्टीरिया-फ्री हैं या नहीं।
नई दिल्ली: चीन से पूरी दुनिया में फ़ैल चुके कोरोना को लगभग आठ महीने होने को हैं। लेकिन अभी इसकी कोई अचूक दवा की खोज नहीं हो पायी है। लेकिन पूरे विश्व के वैज्ञानिक और डॉक्टर कोरोना के इलाज के लिए तरह-तरह की खोजें कर रहे हैं। वैक्सीन ट्रायल के लिए पहले से ही चूहों और बंदरों पर टेस्ट हो रहे थे।
अब एक खास तरह के केकड़ों को भी वायरस से लड़ाई में इस्तेमाल किया जाएगा। हॉर्स शू क्रैब नामक इस प्रजाति के केकड़ों का खून पहले से ही मेडिकल साइंस में उपयोग हो रहा है। इससे इस बात की जांच होती है कि अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल उपकरण बैक्टीरिया-फ्री हैं या नहीं। अगर जांच न हो तो लगभग सभी मरीज जानलेवा संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। जानिए, क्या है हॉर्स शू केकड़ा और कैसे ये कोरोना से लड़ाई में हमारी मदद करेगा।
धरती पर डायनासोर से भी पहले से पाया जाता है केकड़ा
समुद्र की रेतीली खोहों में रहने वाला ये केकड़ा दुनिया के कुछ सबसे पुराने जीवों में से है। माना जाता है कि ये धरती पर डायनासोर (dinosaur) से भी पहले से हैं। 2019 में हुए एक मॉलिक्युलर एनालिसिस में पाया गया कि ये केकड़े इस ग्रह पर 30 करोड़ सालों से भी ज्यादा समय से हैं। यही वजह है कि इन्हें लिविंग फॉसिल्स की श्रेणी में रखा गया। यानी वे जीव, जिनके भीतर ऐसी खूबियां हैं जो सिर्फ फॉसिल (जीवाश्म) हो चुके जंतुओं के रिकॉर्ड में मिलती हैं।
केकड़े का खून नीला होता है
विपरीत हालातों के बावजूद करोड़ों साल से सर्वाइव कर रहे हॉर्स शू में कई खासियतें हैं जैसे इसका खून नीले रंग का होता है। हमारे या लगभग सभी स्तनधारियों के खून का रंग लाल हैं क्योंकि इसमें आयरन वाला हीमोग्लोबिन होता है जो ऑक्सीजन को यहां से वहां लाता-ले जाता है। वहीं इस अनोखे जीव में आयरन की बजाए कॉपर यानी तांबे के साथ hemocyanin नामक केमिकल होता है जो हीमोग्लोबिन की तरह काम करता है। इसी की उपस्थिति के कारण केकड़े का खून नीला होता है।
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केकड़े का खून एंडोटॉक्सिन को पहचान लेता है
केकड़ों के दूधिया-नीले खून में वो तत्व पाया जाता है जो जहरीले पदार्थों को आसानी से पहचान लेता है। उसके खून में इस तत्व को limulus amebocyte lysate (LAL) कहते हैं। ये खासकर एंडोटॉक्सिन को आसानी से पहचान लेता है। एंडोटॉक्सिन वो पदार्थ है जो किसी बैक्टीरिया के खत्म होने पर उसके शरीर से रिलीज होता है। सारे ही एंडोटॉक्सिन इतने खतरनाक होते हैं कि अगर अस्पताल में सर्जरी के किसी उपकरण या इंजेक्शन पर भी इसकी सूक्ष्म मात्रा भी रह जाए तो मरीज की जान जा सकती है। इस केकड़े का खून इसी एंडोटॉक्सिन को पहचान लेता है।
ऐसे करता है काम?
पहचानने के बाद केकड़ों के शरीर से एक केमिकल निकलता है जो उस जगह के खून को जमा देता है जो बैक्टीरिया के संपर्क में आया हो। जमे हुए खून के भीतर बैक्टीरिया या जर्म्स कैद होकर मर जाते हैं। कुल मिलाकर ये समझ सकते हैं कि इनके खून से ये पक्का होता है कि कहीं दवा में या मेडिकल उपकरण में कोई खतरनाक बैक्टीरिया तो नहीं। अब कोरोना के मामले में भी ड्रग जहरीला है या नहीं, ये जांचने के लिए इसकी मदद ली जाने वाली है। बता दें कि तैयार ड्रग्स में कई बार एंडोटॉक्सिन होता है। ये ड्रग देना खतरनाक हो सकता है इसलिए अब बहुत से वैक्सीन को क्रैब के खून से मिलाकर देखा जाएगा कि वो जहरीला तो नहीं।
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1 लीटर खून लगभग 11 लाख रुपये में
अपनी खूबियों के सामने आते ही इस समुद्री जीव का खून सोने से भी ज्यादा कीमती हो गया। अब इसका 1 लीटर खून लगभग 11 लाख रुपयों में बिकता है। साल 1970 से मेडिकल एक्सपर्ट इस जीव के खून का इस्तेमाल ये जांचने में कर रहे हैं कि मेडिकल उपकरण और दवाएं पूरी तरह से बैक्टीरिया-मुक्त हैं या नहीं। इन उपकरणों में न केवल सिरिंज बल्कि इंट्रावेनस, सर्जरी और टीके के दौरान इस्तेमाल होने वाली चीजें भी शामिल हैं।
केकड़े लैब में भी तैयार किये जाते हैं
हालांकि इंसानी जानें बचाने का खामियाजा इस इनवर्टिब्रेट को भुगतना पड़ा है। Big Think की एक रिपोर्ट के अनुसार फार्मा कंपनियां हर साल 6 लाख से भी ज्यादा केकड़े लैब में ही तैयार करती हैं और उन्हें समुद्र में छोड़ने से पहले उनके शरीर से 30% खून निकाल लेती हैं। खून निकाले जाने की प्रक्रिया में बहुत से केकड़े मर भी जाते हैं। लैब से समुद्र तक लाने और छोड़े जाने के दौरान भी ये मरते हैं। Scientific American की मानें तो मेडिकल इस्तेमाल की वजह से इनकी मृत्युदर 30 प्रतिशत से भी ज्यादा है। समुद्र में वापस लौटी मादा हॉर्स शू प्रजनन में कई तरह की मुश्किलों का सामना करती है।
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केकड़े के इस्तेमाल को बंद किया जाए
अब पशु प्रेमी और समुद्री जीवों के लिए काम करने वाले लोग मांग कर रहे हैं कि केकड़े के इस्तेमाल को बंद किया जाए और इसकी बजाए बैक्टीरिया की जांच के लिए कोई सिंथेटिक प्रक्रिया खोजी जाए। International Union for the Conservation of Nature ने साल 2016 में इसे खत्म हो रहे जंतुओं की श्रेणी में रखा। हालांकि फार्मा कंपनियों का मानना है कि सिंथेटिक प्रक्रिया उतनी प्रामाणिक नहीं हो सकती है, जितना कि इस केकड़े का खून। चूंकि इन्हें लैब में पालने से रोकने या फिर प्रक्रिया के तहत खून निकालने से रोकने के लिए कोई ठोस कानून नहीं बन सका है इसलिए अब भी धड़ल्ले से इन्हें नुकसान पहुंचाया जा रहा है।