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'शहीद की मां' ने बनाया साहित्यकार, जानें हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार मार्कण्डेय के बारे में
कथाकार मार्कण्डेय का साहित्यकार बनने का सफर भी काफी दिलचस्प है। उन्होंने अपनी 'कथा' पत्रिका में इसका जिक्र किया है।
लखनऊ: कथाकार मार्कण्डेय की आज पुण्यतिथि है। 18 मार्च 2010 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। अगर मार्कण्डेय की बात की जाए तो अपने लेखन में वो हमेशा आधुनिक और प्रगतिशील मूल्यों के हामीदार रहे। उनका जन्म 2 मई 1930 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर स्थित बराईं गांव में हुआ था। उनकी गिनती आज भी हिंदी के प्रसिद्ध कहानीकार के रूप में होती है।
शहीद की मां' के दर्द ने बनाया प्रख्यात साहित्यकार
मार्कण्डेय का साहित्यकार बनने का सफर भी काफी दिलचस्प रहा। उन्हें एक 'शहीद की मां' के दर्द ने प्रख्यात साहित्यकार बनाने का काम किया। शहीद की मां से ही उनकी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत हुई। मार्कण्डेय इस मां से इस कदर प्रभावित हुए कि फिर उन्होंने कभी अपने जीवन में पीछे मुड़कर नहीं देखा। तो चलिए जानते हैं कि आखिर कैसे साहित्यकार बनें मार्कण्डेय।
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बताया कैसे शुरू हुआ साहित्यिक जीवन
अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित मार्कण्डेय ने अपनी साहित्यिक यात्रा का उल्लेख अपनी 'कथा' पत्रिका में किया है। इस किस्से के बारे में बताते हुए उन्होंने लिखा, उन दिनों मैं गांव में था। वहां पर एक बूढ़ी महिला को देखर परेशान होता था। उनका इकलौता जवान लड़का 1942 के आंदोलन में शहीद हो गया था। जब में 1949 में गर्मी की छुट्टी में कॉलेज से घर गया तो उस बूढ़ी स्त्री से मिलकर उदास हुआ।
(फोटो- सोशल मीडिया)
इस तनाव में मैंने एक कहानी 'शहीद की मां' लिख दी। दूसरे हफ्ते ही वह कहानी एक प्रतिष्ठित अखबार में छप गई। सुमित्रानंदन पंत से भी मुलाकात होती रहती थी। धीरे धीरे यहीं से साहित्यिक जीवन शुरू हो गया। साहित्यकार मार्कण्डेय सभी के दिलों में एक अच्छी छवि रखते थे। हर कोई उनका सम्मान करता था।
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मार्कण्डेय की प्रमुख रचनाएं
उपन्यास- अग्निबीज, सेमल के फूल
कहानी संग्रह- पान फूल, महुए का पेड़, हंसा जाई अकेला, सहज और शुभ, भूदान, माही, बीच के लोग
एकांकी संग्रह- पत्थर और परछाइयां
आलोचना- कहानी की बात
संपादन- कथा
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