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तबाही से सावधानः गांव में फैला कोरोना तो आ जायेगी आफत, बेहद गंभीर हैं हालात
अगर देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण फैला तो उससे निपटना लगभग असंभव होगा क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है।
नीलमणि लाल
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में कोरोना संक्रमण की स्थिति चिंताजनक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में चिंता जाहिर की है कि संक्रमण गांवों तक पहुंचा तो हालात और गंभीर हो जायेंगे। महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली सहित कई राज्यों में कोरोना संक्रमण की स्थिति गंभीर बनी हुई है।
प्रधानमंत्री ने यह चिंता इसलिए भी जाहिर की है कि कई राज्यों में कोरोना के मामले अब शहर से होकर गांव की तरफ बढ़ रहे हैं। मिसाल के तौर पर, पंजाब में कोरोना के मरीज शहरों में ज्यादा हैं, लेकिन मौतें सर्वाधिक ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही हैं। यह एक संकेत है कि अगर संक्रमण गावों में फैला तो हालात क्या होंगे।
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चिंता की बात यह है कि अगर देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण फैला तो उससे निपटना लगभग असंभव होगा क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में बेसिक सुविधाओं आमतौर पर उपलब्ध नहीं होती। पिछले साल ही इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) सहित तमाम चिकित्सा एक्सपर्ट्स ने आशंका जताई थी कि अगर यह महामारी गांवों में फैली तो उससे निपटना असंभव होगा।
ग्रामीण इलाकों की बुरी स्थिति
विश्व में स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में 102वें स्थान पर आने वाले भारत की बहुत बड़ी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जहां स्वास्थ्य ढांचा बुरी तरह चरमराया हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही कह चुका है कि भारत में कोरोना को परास्त करने के लिए जनस्वास्थ्य के लिए पर्याप्त कदम उठाने होंगे। ऐसे में अगर तत्काल पर्याप्त कदम नहीं उठाये गए तो आने वाले दिनों में स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
भारत का स्वास्थ्य ढांचा
नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल 26 हजार अस्पतालों में से हालांकि ग्रामीण भारत में ही करीब 21 हजार अस्पताल हैं लेकिन इनकी हालत संतोषजनक नहीं है। रिपोर्ट में बताया गया था कि यदि ग्रामीण भारत की मात्र 0.03 फीसदी आबादी को भी जरूरत पड़े तो सरकारी अस्पतालों में उसके लिए बिस्तर उपलब्ध नहीं होंगे। देशभर के सरकारी अस्पतालों में सात लाख से अधिक बिस्तर हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बसने वाली देश की दो तिहाई आबादी के लिए बिस्तरों की संख्या महज 2.6 लाख ही है। निजी अस्पतालों, क्लीनिक, डायग्नोस्टिक सेंटर और कम्युनिटी सेंटर को भी शामिल कर लें तो कुल बिस्तरों की संख्या करीब 10 लाख ही है।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रत्येक एक हजार नागरिकों पर अमेरिका में 2.8, इटली में 3.4, चीन में 4.2, फ्रांस में 6.5 तथा दक्षिण कोरिया में 11.5 बिस्तर उपलब्ध हैं। दूसरी ओर भारत में प्रत्येक दस हजार लोगों पर करीब छह अर्थात् 1700 मरीजों पर सिर्फ एक बिस्तर उपलब्ध है। ग्रामीण अंचलों में तो करीब 3100 मरीजों पर महज एक बिस्तर उपलब्ध है।
राज्यों में हजारों मरीज पर एक बेड
बिहार में सोलह हजार लोगों पर केवल एक ही बेड उपलब्ध है। झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, गुजरात इत्यादि में भी करीब दो हजार लोगों पर महज एक बिस्तर उपलब्ध है। देश में करीब 26 हजार सरकारी अस्पताल हैं यानी 47 हजार लोगों पर मात्र एक सरकारी अस्पताल है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक सेना और रेलवे के अस्पतालों को मिलाकर देशभर में कुल 32 हजार सरकारी अस्पताल हैं। निजी अस्पतालों की संख्या 70 हजार के आसपास है।
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अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्यों में एक लाख आबादी पर 16 निजी व 12 सरकारी अस्पताल हैं लेकिन देश की कुल 21 फीसदी आबादी वाले राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात तथा आंध्र प्रदेश में अस्पतालों की संख्या प्रति एक लाख लोगों पर एक से भी कम है। दिल्ली में 1.54 लाख लोगों पर एक, महाराष्ट्र में औसतन 1.6 लाख लोगों पर एक, मध्य प्रदेश में 1.56 लाख तथा छत्तीसगढ़ में 1.19 लाख लोगों पर एक-एक, गुजरात में 1.37 लाख और आंध्र प्रदेश में प्रत्येक दो लाख लोगों पर एक-एक अस्पताल हैं।
सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर
देशभर में करीब 1.17 लाख डॉक्टर हैं यानी लगभग 10700 लोगों पर एक डॉक्टर ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमानुसार प्रत्येक एक हजार मरीजों पर एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन ग्रामीण भारत में तो यह औसत 26 हजार लोगों पर एक डॉक्टर का ही है।
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ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2019 के आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 6.2 करोड़ की ग्रामीण आबादी पर सरकारी अस्पतालों में 70 हजार लोगों के लिए केवल एक डॉक्टर है। बिहार तथा झारखंड में भी ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार लोगों के लिए केवल एक डॉक्टर है। सरकारी अस्पतालों में रजिस्टर्ड नर्स और मिडवाइव्स की संख्या बीस लाख से अधिक है, जिसका औसत प्रत्येक 610 लोगों पर एक नर्स का है। इन हालातों में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की चिंता जायज है। जब हमारे पास इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है तो पूरी ताकत रोकथाम में लगानी चाहिए ताकि महामारी का विस्तार कतई न होने पाए।