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पुण्यतिथि विशेष: पं0 रूप नारायण त्रिपाठी की कविताओं में दिखती है गंगा जमुनी तहजीब

कविता गीतों का मान बढ़ाने वाले इस यशस्वी कवि का 9 मार्च 1990 को निधन हो गया। उनके मरणोपरान्त प्रतिवर्ष 9 मार्च को उनकी पावन स्मृति में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ, रूप सेवा संस्थान द्वारा गीत रूप नमन समारोह का आयोजन जगत नारायण इण्टर कालेज जगतगंज, जौनपुर के परिसर में किया जाता है।

Shreya
Published on: 8 March 2021 10:23 AM GMT
पुण्यतिथि विशेष: पं0 रूप नारायण त्रिपाठी की कविताओं में दिखती है गंगा जमुनी तहजीब
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पुण्यतिथि विशेष: पं0 रूप नारायण त्रिपाठी की कविताओं में दिखती है गंगा जमुनी तहजीब

जौनपुर: रचनाओं में हृदय को छूने और पढ़ने वालों को अपने रस में पिरोने की अद्भुत क्षमता तथा गांव की कोमल महक, कौमार्य की कामुकता कविताओं में परिलक्षित करने वाले कालजयी रचनाकार थे पं. रूप नारायण त्रिपाठी। जिनकी समस्त रचनाओं में भारतीयता और स्थानीयता का रंग उन्हें रेखांकित करने योग्य बनाता है।

चौथे दशक के प्रारम्भिक वर्षों में स्वाधीनता लड़ाई से जुड़ उनकी अन्तःकरण की आत्मा कविता से जुड़ गयी। उन दिनों राष्ट्रगीत लिखने लगे, प्रभात फेरियों और कविता मंच से जुड़ गये साथ ही साथ समाचार पत्र के सम्पादन से भी जुड़े रहे।

6वें दशक में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित लोक-साहित्य समिति में पंडित राहुल सांस्कृत्यायन द्वारा सार्थक दिशा बोध एवं डा0 विद्या निवास मिश्र के साथ लोकगीतों का संग्रह, लोकसाहित्य उन्नयन तत्वों की छानबीन कर विकास करते रहे।

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रचनाओं में मानवीय संवेदना की झलक

पंडित के व्यक्तित्व का विवरण अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है। मानवीय संवेदना की झलक उनकी रचनाओं में साफ दिखती है। रमता जोगी बहता पानी मुक्तक काव्य में उनकी यह रचना इस बात को रेखांकित करती है कि मनुष्य का मानवीय पक्ष दुर्बल है और अन्तःकरण कलुषित है तो उसका जीवन व्यर्थ है-

"रूप सुन्दर चलन भी सुन्दर हो

देह का आचरण भी सुन्दर हो

सार्थक है उसी की सुन्दरता

जिसका अन्तःकरण भी सुन्दर हो"

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अपने गांव तथा जमीन से था बहुत प्रेम

पंडित त्रिपाणी को अपने गांव तथा जमीन से बड़ा प्रेम था, उनका कृतित्व मूलतः स्वांत सुखाय होते हुए बहुजन हिताय की भावना से परिपूर्ण था। इस प्रकार पंडित की कविता स्वतंत्रता संग्राम की प्रभातफेरियों से चलकर लोकगीतों की झोपड़ियों तक पहुंची वहां से आगे बढ़कर कालजयी के महलों तक आते-आते प्रौढ़ हो गयी। कविता पूर्ण परिपक्व हो गयी, गाँव की माटी से चलकर राष्ट्रीय मर्यादा के उच्चतम शिखर पर पहुंच गयी।

स्वयं पंडित के कथन के प्र्रस्तुत अंश - वस्तुतः मेरी रचना प्रक्रिया बहुआयामी रही है। हिन्दी कविता की प्रायः सभी विधाओं में मैंने कार्य किये हैं लेकिन हर हाल में मैंने कविता को कविता की तरह रहने दिया। परंपरा को तोड़ने के बजाय मैंने विकसित किया, उसे एक नया रूप देने का प्रयत्न किया, अपने लेखन को मैंने आधुनिक भावबोध से सम्बद्ध किया।

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कविताओं में गंगा जमुनी तहजीब

मानवीय पक्ष उनकी कविताओं में गंगा जमुनी तहजीब उर्दू ग़ज़ल की तर्ज पर हिन्दी ग़ज़ल हिन्दी/उर्दू का अपने रचनाओं में समावेश कर काव्यों का अथाह संग्रह किया। आज पं. रूप नारायण त्रिपाठी भले हमारे बीच न हों लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा लोगों के अन्तर्मन में मौजूद रहेंगी।

आधा दर्जन से ज्यादा पुरस्कारों से हुए सम्मानित

स्वर्गीय त्रिपाठी को आधा दर्जन से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनकी कृति माटी की मुस्कान को मध्य प्रदेश के सरकार द्वारा केशव पुरस्कार, काव्यग्रंथ पूरब की आत्मा को 1978 में यूपी हिन्दी संस्थान द्वारा विशिष्ट काव्य पुरस्कार, 1979 में सारस्वत सम्मान, 1983 में राष्ट्रीय महाकवि, 1985 में मलिक मोहम्मद जायसी, 1989 में साहित्य महोपाध्याय अलंकरण से सम्मानित किया गया।

कविता गीतों का मान बढ़ाने वाले इस यशस्वी कवि का 9 मार्च 1990 को निधन हो गया। उनके मरणोपरान्त प्रतिवर्ष 9 मार्च को उनकी पावन स्मृति में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ, रूप सेवा संस्थान द्वारा गीत रूप नमन समारोह का आयोजन जगत नारायण इण्टर कालेज जगतगंज, जौनपुर के परिसर में किया जाता है। आज भी जनपद की जनता जनकवि के रूप में ख्यातिलब्ध स्व. त्रिपाठी को नमन करती है।

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