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किसानों की ट्रैक्टर रैलीः रूट पर विवाद, इस समझौते से निकल सकता है हल
संभावना इस बात की भी है कि सरकार के साथ समझौता हो जाने की स्थिति में ट्रैक्टर रैली का मुद्दा अपने आप खत्म हो जाए और सरकार की किरकिरी होने से बच जाए क्योंकि किसानों को भी यह लगने लगा है कि अगर जिद छोड़कर समझौता नहीं किया तो आंदोलन की दिशा बदल सकती है और आंदोलन उनके हाथ से निकल सकता है।
रामकृष्ण वाजपेयी
किसानों की ट्रैक्टर रैली के रूट को सुरक्षा बलों द्वारा रद किये जाने और दूसरा रूट सुझाए जाने का प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद आंदोलनकारी किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली पर अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
आंदोलनकारी किसानों के ट्रैक्टर रैली के वैकल्पिक मार्ग को पुलिस प्रशासन द्वारा खारिज करने के बाद, प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली के रूट को लेकर किसानों के आज फिर से पुलिस प्रशासन के अफसरों से मिलने की संभावना है। पुलिस ने किसानों को बाहरी रिंग रोड के बजाय कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे पर अपनी रैली निकालने का विकल्प दिया था, लेकिन वे इससे सहमत नहीं हुए हैं।
किसानों की गुरुवार यानी आज गणतंत्र दिवस पर प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को लेकर पुलिस अफसरों से दूसरी बार बैठक संभावित है। कल उत्तर प्रदेश और हरियाणा पुलिस के अफसरों ने किसानों की ट्रैकटर रैली को लेकर किसान यूनियनों से मुलाकात की थी।
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(फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया)
बाहरी रिंग रोड पर रैली निकालना चाहते हैं आंदोलनकारी किसान
आंदोलनकारी किसान बाहरी रिंग रोड पर रैली निकालना चाहते हैं जो दिल्ली के कई इलाकों जैसे कि विकासपुरी, जनकपुरी, उत्तम नगर, बरारी पीरागढ़ी और पीतमपुरा से गुजरती है। किसान यूनियनों ने कहा कि उनकी तैयारियां जोरों पर हैं और अधिकारियों को इसे रोकने के बजाय "शांतिपूर्ण मार्च" की सुविधा देनी चाहिए।
किसानों की ट्रैक्टर रैली का केंद्र सरकार और पुलिस ने विरोध किया है। केंद्र ने दिल्ली पुलिस के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके प्रस्तावित ट्रैक्टर या ट्रॉली मार्च या किसी अन्य प्रकार के विरोध के खिलाफ निषेधाज्ञा की मांग की थी। केंद्र सरकार के मुताबिक ट्रैक्टर रैली 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के आयोजन और समारोहों को बाधित करने का प्रयास है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा पुलिस करे ये काम
केंद्र ने कहा है कि विरोध करने का अधिकार कभी भी देश को विश्व स्तर पर बदनाम करने में शामिल नहीं हो सकता। हालांकि, शीर्ष अदालत ने याचिका को यह कहते हुए ठुकरा दिया है कि कानून व्यवस्था से जुड़े इस मामले का फैसला पुलिस को करना चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI), एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली से संबंधित मुद्दों से निपटने का अधिकार पुलिस के पास है।
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इन कृषि काननों के विरोध में हो रही ट्रैक्टर रैली
संसद द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान लगभग 60 दिनों से दिल्ली के पास विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020 (सशक्तिकरण और संरक्षण), किसान व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 के विरोध में हो रही है।
(फोटो- सोशल मीडिया)
पिछले साल सितंबर में बनाए गए, तीन कानूनों को केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों के रूप में पेश कर रही है, जो बिचौलियों को दूर करेगा और किसानों को देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने की अनुमति देगा। जबकि आंदोलनकारी किसानों को आशंका है कि नए कानून एमएसपी की सुरक्षा गद्दी को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे और "मंडी" (थोक बाजार) प्रणाली से दूर रहकर उन्हें बड़े कॉर्पोरेट की दया पर छोड़ देंगे।
सरकार ने किसानों को दिया ये प्रस्ताव
इस मुद्दे को लेकर अब तक दस दौर की वार्ता हो चुकी है। दसवें दौर की वार्ता में केंद्र ने डेढ़ साल के लिए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निलंबित करने का प्रस्ताव दिया है। किसानों ने कहा कि वे 21 जनवरी को सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे, और 22 जनवरी को बातचीत का अगला दौर शुरू होने पर अपना रुख स्पष्ट करेंगे।
संभावना इस बात की भी है कि सरकार के साथ समझौता हो जाने की स्थिति में ट्रैक्टर रैली का मुद्दा अपने आप खत्म हो जाए और सरकार की किरकिरी होने से बच जाए क्योंकि किसानों को भी यह लगने लगा है कि अगर जिद छोड़कर समझौता नहीं किया तो आंदोलन की दिशा बदल सकती है और आंदोलन उनके हाथ से निकल सकता है।
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