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दिल्ली अग्निकांड: मौत से पहले की ये आवाज सुन खड़े हो जाएंगे आपके रोंगटे

दरअसल, आग की लपटों में घिरे और धुएं से परेशान मुशर्रफ नाम के युवक ने तड़के करीब 5 बजे जिंदगी के अंतिम क्षणों में अपने दोस्त को कॉल किया। करीब 6 मिनट की बातचीत के ऑडियो में वह बार-बार दोस्त से अपने परिवार और बच्चों का ध्यान रखने की गुहार लगाता रहा।

Shivakant Shukla
Published on: 8 Dec 2019 4:32 PM GMT
दिल्ली अग्निकांड: मौत से पहले की ये आवाज सुन खड़े हो जाएंगे आपके रोंगटे
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नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली के अनाज मंडी इलाके में स्थित चार मंजिला इमारत में रविवार को आग लगने से 43 लोगों की जान चली गई। इस घटना ने लोगों को दहला कर रख दिया। घटना ही इतना दर्दनाक है कि किसी को भी रोने पर मजबूर कर दे। इस बीच एक ऐसी दर्दनाक कहानी का पता चला है, जिसे जानकर आप भी खुद को भावुक होने से रोक नहीं पाएंगे।

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दरअसल, आग की लपटों में घिरे और धुएं से परेशान मुशर्रफ नाम के युवक ने तड़के करीब 5 बजे जिंदगी के अंतिम क्षणों में अपने दोस्त को कॉल किया। करीब 6 मिनट की बातचीत के ऑडियो में वह बार-बार दोस्त से अपने परिवार और बच्चों का ध्यान रखने की गुहार लगाता रहा। मुशर्रफ ने दोस्त को बताया कि यहां आग लग गई है और बचने का कोई रास्ता नहीं है।

यहां जानें क्या कहा बातचीत में

मुशर्रफ ने दोस्त (मोनू) को कॉल किया- हैलो मोनू, भैया आज खत्म होने वाला है। आग लग गई है। आ जइयो करोलबाग। टाइम कम है और भागने का कोई रास्ता नहीं है। खत्म हुआ भैया मैं तो, घर का ध्यान रखना। अब तो सांस भी नहीं ली जा रही।

मोनू- आग कैसे लग गई।

मुशर्रफ- पता नहीं कैसे। कई सारे लोग दहाड़ रहे हैं। अब कुछ नहीं हो सकता है। घर का ध्यान रखना।

मोनू- फायर ब्रिगेड को फोन करो।

मुशर्रफ- कुछ नहीं हो रहा अब।

मोनू- पानी वाले को कॉल कर दो।

मुशर्रफ- कुछ नहीं हो सकता है। मेरे घर का ध्यान रखना। किसी को एक दम से मत बताना। पहले बड़ों को बताना (कराहते हुए या अल्लाह)। मेरे परिवार को लेने पहुंच जाना। तुझे छोड़कर और किसी पर भरोसा नहीं है।

मुशर्रफ- अब सांस भी नहीं ली जा रही है।

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यहां सुनें अंतिम आवाज

मोनू- हैलो, हैलो (दूसरी ओर से उल्टी करने और कराहने की आवाज आई)। वो गाड़ी नहीं आई पानी वाली?

मुशर्रफ- पूरी बिल्डिंग में आग लगी दिख रही है भैया। ऊपर वाला जैसे करे। आखिरी टाइम है ये।

मोनू- तू मत जाना मेरे भाई, निकलने या कूदने का कोई रास्ता नहीं है क्या?

मुशर्रफ- नहीं कोई रास्ता नहीं है। (किसी रिश्तेदार से संपर्क करने की बात कहता है)

मोनू- भाई बचने की कोशिश कर, किसी तरह निकल वहां से (मृतक के कराहने की आवाज आती है)।

मुशर्रफ- अब तो गए भैया। तीसरे, चौथे माले तक आग लगी है। किसी से जिक्र मत करना ज्यादा।

मोनू- आग पहुंच गई है या धुआं आ रहा है। बाहर छज्जे की ओर आ जा।

मुशर्रफ- भाई, जैसे चलाना है वैसे मेरा घर चलाना। बच्चों और सब घर वालों को संभालकर रखना। एक दम से घर मत बताना। भैया मोनू तैयारी कर ले अभी आने की। धीरे-धीरे मुशर्रफ की जुबान लड़खड़ाने लगी उसका दम टूट रहा था। मुशर्रफ को कहीं से हवा नहीं मिल पा रही थी। उसके शरीर में बचा ऑक्सीजन उसको मरने नहीं दे रहा था लेकिन अगले ही कुछ पलों में उसकी टूटती सांसों की आवाज आनी भी बंद हो गई| मुशर्रफ, जिंदगी की जंग हार चुका था। पड़ोसी हैलो-हैलो कहता रहा, लेकिन दूसरी तरफ से कोई हलचल नहीं थी। जानकारी के अनुसार मुशर्रफ पुत्र अब्दुल वाहिद बिजनौर का रहने वाला है।

Shivakant Shukla

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