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Delhi Murder: बीच सड़क हत्या, क्यों तमाशबीन बने रहते हैं लोग? इसका है मनोवैज्ञानिक कारण
Delhi Murder: ऐसा व्यवहार पूरी दुनिया में लोगों में देखा जाता है वह भी आज से नहीं, बहुत बीते जमाने से। ऐसे कई संभावित कारण हैं कि कोई व्यक्ति सार्वजनिक हिंसा के मामले में हस्तक्षेप क्यों नहीं कर सकता है, और अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कारण शायद सही हैं। हो सकता है कि जो लोग बहुत दूर थे उनके लिए हमला बहुत तेजी से हुआ हो, और शायद उनमें से कुछ जो करीब थे वे बहुत डरे हुए थे।
Delhi Sakshi Murder Case: दिल्ली के शाहाबाद इलाके की एक गली में एक लड़की की चाकू मार कर और ईंटों से कुचल कर हत्या कर दी जाती है। गली में लोग आते जाते रहते हैं लेकिन कोई हस्तक्षेप नहीं करता, सबके सब तमाशबीन बने रहते हैं। लोगों का ऐसा मूकदर्शक और तमाशबीन व्यवहार न तो पहली बार सामने आया है न कोई गारंटी ले सकता है कि आगे भी ऐसा नहीं होगा। लेकिन लोग ऐसा करते क्यों हैं? अकेले हमलावर के खिलाफ क्यों नहीं हिम्मत दिखाते?
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दरअसल, ऐसा व्यवहार पूरी दुनिया में लोगों में देखा जाता है वह भी आज से नहीं, बहुत बीते जमाने से। ऐसे कई संभावित कारण हैं कि कोई व्यक्ति सार्वजनिक हिंसा के मामले में हस्तक्षेप क्यों नहीं कर सकता है, और अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कारण शायद सही हैं। हो सकता है कि जो लोग बहुत दूर थे उनके लिए हमला बहुत तेजी से हुआ हो, और शायद उनमें से कुछ जो करीब थे वे बहुत डरे हुए थे।
मनोवैज्ञानिक कारण
मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि लोग अक्सर ऐसा करने के लिए समय होने पर भी हस्तक्षेप करने से हिचकते हैं, तब भी जब खुद के लिए कोई जोखिम नहीं होता है। लोगों के इस उदासीन व्यवहार पर मनोवैज्ञानिक रिसर्च हुईं हैं और उसका निष्कर्ष कहता है कि इस तमाशबीन व्यवहार को "बाईस्टैंडर इफ़ेक्ट" कहते हैं। इसकी भी एक कहानी है।
किटी जेनोविस हत्याकांड
बाईस्टैंडर इफ़ेक्ट की खोज 1964 में न्यूयॉर्क में एक 28 वर्षीय महिला किटी जेनोविस की हत्या के बाद हुई। किटी जेनोविस के साथ एक अजनबी शख्स ने एक भीड़भाड़ वाले हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी। यह हमला करीब आधे घंटे तक चला। कुछ पड़ोसियों ने जेनोविस की चीखें सुनीं, फिर भी किसी ने मदद के लिए हस्तक्षेप नहीं किया। किसी तमाशबीन ने पुलिस को फोन तक नहीं किया।
आखिर क्यों?
जेनोविस मामले से प्रेरित हो कर कई रिसर्च की गईं कि लोग इस तरह का व्यवहार क्यों करते हैं। सामाजिक मनोवैज्ञानिकों बिब लताने और जॉन डार्ले ने किटी जेनोविस की हत्या के बाद तमाशबीनों के प्रभाव की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया। इन्होंने एक दिलचस्प और आश्चर्यजनक प्रभाव खोजा गया कि ग्रुप या भीड़ में लोग मदद को आगे नहीं बढ़ते जबकि अकेले में मदद करने की संभावना ज्यादा होती है।
बाईस्टैंडर प्रभाव
लताने और डार्ले ने बाईस्टैंडर प्रभाव की दो प्रमुख वजहें बताईं : जिम्मेदारी का बंट जाना और सामाजिक प्रभाव। जिम्मेदारी बंट जाने का मतलब है कि जितने अधिक तमाशबीन होंगे, लोग कोई एक्शन करने के लिए उतनी ही कम व्यक्तिगत जिम्मेदारी का अनुभव करेंगे। सामाजिक प्रभाव का अर्थ है कि व्यक्ति अपने आसपास के लोगों के व्यवहार की निगरानी करता है ताकि यह तय किया जा सके कि कैसे कार्य करना है।
क्यों नहीं मदद करते लोग
अक्सर ही लोग अकेले में भी मदद को आगे नहीं बढ़ते। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि किसी को आपात स्थिति में या हमला होते हुए देखकर लोगों का जम जाना या सदमा लगना स्वाभाविक है। यह आम तौर पर डर की प्रतिक्रिया है - डर है कि आप मदद करने के लिए बहुत कमजोर हैं, कि आप घटना को गलत समझ रहे हैं, या फिर ये सोच रहे हैं कि हस्तक्षेप करने से आपका जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
क्या कर सकते हैं
बाईस्टैंडर प्रभाव को जागरूकता और कुछ मामलों में प्रशिक्षण से कम किया जा सकता है। एक तकनीक ये है कि आप किसी घटना को देख कर सिर्फ चिल्ला भर दें कि "अरे, क्या चल रहा है?" या "पुलिस आ रही है।" इतना भर बोलने से दूसरों को भी कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। एक सक्रिय बाईस्टैंडर उस समय सबसे प्रभावी होता है जब वह मानता है कि वह स्वयं एकमात्र व्यक्ति है जो चार्ज ले रहा है इसलिए, सहायता के लिए अन्य बाईस्टैंडर्स को दिशा देना गंभीर रूप से महत्वपूर्ण हो सकता है।