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Deputy is Constitutional: संविधान में पीएम-सीएम के अधिकार हैं लिखित, जानिए- क्या डिप्टी पोस्ट भी है संवैधानिक...
Deputy CM is Constitutional: उपमुख्यमंत्री राज्य सरकार का सदस्य होता है और आमतौर पर अपने राज्य की मंत्रिपरिषद का दूसरा सर्वोच्च रैंकिंग कार्यकारी अधिकारी होता है।
Deputy CM is Constitutional: कर्नाटक में कांग्रेस बहुमत से विधानसभा चुनाव जीत लिया लेकिन बीते एक हफ्ते से दो दिग्गज नेताओं के बीच मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद के लिए खींचातानी जारी थी। मुख्यमंत्री के नाम को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी की, कोई यह संवैधानिक उपाधि दी जाएगी। कांग्रेस के दो बड़े नेता इस पोस्ट के दावेदारी रखते थे, हालांकि, अब नामों पर मुहर लगा दिया गया है। कांग्रेस ने कर्नाटक में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। इस जीत के नतीजतन सिद्धारमैया को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया जा रहा। वही दूसरे दावेदार डीके शिवकुमार को सरकार का उपमुख्यमंत्री घोषित किया गया है। जिसको दूसरे नंबर की मान्यता लोगों द्वारा दी जाती है।
आपको बता दे कि यह दोनो ही नेता में कोई भी सीएम पद के लिए कम नहीं था। कर्नाटक के इस मुख्य्मंत्री पद के दौड़ से दो बड़े सवाल उठते है पहला, कोई भी नेता पार्टी की जीत के बाद खुद को सीएम के पद पर ही क्यों देखता है? डिप्टी सीएम क्यों नहीं बनना चाहता है? दूसरा सवाल यह है की क्या शिवकुमार सरकार बनाने में नंबर दो के पोस्ट को पाकर संतुष्ट रहेंगे। आइए संविधान के अनुसार जानते हैं कि सीएम और डिप्टी सीएम पद के लिए खींचातानी की क्या वजह हो सकती है? सब नेता सीएम बनने को तैयार पर डिप्टी सीएम से आपत्ति क्यों जताते है?
उपमुख्यमंत्री(Deputy Chief Minister) राज्य सरकार का एक सदस्य होता है आमतौर पर अपने राज्य की मंत्रिपरिषद का दूसरा सर्वोच्च रैंकिंग कार्यकारी अधिकारी होता है। संवैधानिक कार्यालय नहीं होने के बावजूद, इसमें शायद ही कभी कोई विशिष्ट शक्तियाँ होती हो।
सामान्यत: क्या करते है डिप्टी सीएम
हर राज्यों में उपमुख्यमंत्री को कोई भी विशेष जिम्मेदारी नहीं दी गई होती है। इस की अहमियत केवल प्रतीकात्मक है। यह पैड केवल यह बताता है की आप राज्य सरकार में उच्च नेता में नंबर 2 पर मौजूद है। ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य का पुरा संचालन की बागडोर राज्य के मुख्यमंत्री के हाथ में होती है। राज्य में कई बार एक की जगह दो उपमुख्यमंत्री भी बनाए जाते है। जोकि केवल मंत्रिपरिषद में जातीय संतुलन को बनाए रखने का सूत्र होता है। किसी नेता को खुश करने के लिए भी केवल इस पद पर बैठा दिया जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो डिप्टी सीएम पद का होना पार्टी के लिए तो कार्यकारी हो सकता हैं और अहमियत भी रख सकता है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा राज्य संचालन में इस पद के होने या ना होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। भारतीय संविधान द्वारा संवैधानिक तौर पर राज्य सरकार में इस पद को कोई पद नहीं माना जाता है।
संविधान में उप मुख्यमंत्री शब्द का प्रयोग भी नहीं हैं,
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विराग गुप्ता के अनुसार, राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद् का जिक्र अनुच्छेद 164 में उल्लेखित है जहां राज्य सरकार के लिए इस विषय का पूरा प्रावधान दिया गया है। वहीं, संविधान में उपमुख्यमंत्री शब्द का प्रयोग ही नहीं है, इसके साथ उप-प्रधानमंत्री पद का भी कहीं जिक्र नहीं है। किसी राज्य सरकार में यदि हम उपमुख्यमंत्री के कामों की बात करे तो बता दे कि उपमुख्यमंत्री केवल मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए विभाग और मंत्रालय को ही संचालित कर सकता है। उपमुख्यमंत्री का वेतन(Salary), अन्य भत्ते और नेताओं को मिलने वाली सुविधाएं कैबिनेट मंत्री के समतुल्य ही होती है, उनका कहना है कि उपमुख्यमंत्री पद उप-प्रधानमंत्री पद बनने के बाद शुरू किया गया है।
संवैधानिक मान्यता कैसी है?
किसी भी राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री को अन्य सामान्य मंत्रिपरिषद के अन्य मंत्रियों की जैसी ही कैबिनेट मीटिंग होती है। इसके अतिरिक्त अन्य की तरह ही किसी मुद्दे के निर्णय में अपना देने का अधिकार होता है। वह सुझाव मानने योग्य है या नहीं यह फैसला मुख्यमंत्री का होता है। संविधान में उपमुख्यमंत्री जैसे कोई पद का जिक्र नहीं है। साफतौर पर कहा जाए तो उपमुख्यमंत्री को मुख्यमंत्री के जैसे कोई विशेष अधिकार नहीं दिए गए है। और तो और डिप्टी सीएम को राज्य के शासन में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करने का भी अधिकार नहीं है। आपको बता दे शपथ के दौरान राज्यपाल जब उपमुख्यमंत्री को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं तो वह अन्य कैबिनेट मंत्री के जैसे ही शपथ ग्रहण करते है।
पहला डिप्टी सीएम कब और कौन बना था?
अधिवक्ता विराग गुप्ता का कहना है कि डिप्टी सीएम पद देने का रिवाज तो पुराना है लेकिन फिर भी संवैधानिक नही है। संविधान निर्माण हो जाने के बाद भारत देश का पहला उपमुख्यमंत्री नीलम संजीव रेड्डी को बनाया गया था। यह पद की शुरुआत इनसे ही मानी जाती है। साल 1953 में मद्रास प्रेसिडेंसी से तेलुगु भाषी लोकेलिटी को काटकर आंध्र राज्य बना था। इसके बाद टी. प्रकाशम नए राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए थे। उन्होंने नीलम संजीव रेड्डी को पहला उपमुख्यमंत्री बनाया। जिसके बाद देशभर में डिप्टी सीएम बनाने की परंपरा का विस्तार हुआ। वर्तमान में दो या उससे अधिक डिप्टी सीएम की नियुक्ति भी की जा रही है। डिप्टी सीएम बनाने का कारण ज्यादातर राजनीति से संबंधित होता है। गठबंधन सरकारों में सभी पार्टियों को सरकार में प्रतिनिधित्व के रूप में अधिकार देने के लिए भी ऐसा किया जा रहा है।
पहले डिप्टी पीएम की नियुक्ति भी होती थी,
हरियाणा के दिग्गज नेता और राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया चौधरी देवी लाल दो बार देश के उप-प्रधानमंत्री बनाए गए है। पहली बार वह साल 1989 से 1990 और दूसरी बार 1990 से 1991 तक इस पद पर कार्यरत रहे थे। उप-प्रधानमंत्री रहते हुए इस पद के अधिकारों की स्पष्ट मांग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में इससे संबंधित एक याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला दिया कि देश में उप-प्रधानमंत्री का पद संवैधानिक नहीं हैं , उप-प्रधानमंत्री बाकी कैबिनेट मंत्रियों की ही तरह मंत्रिमंडल का सदस्य होता था। डिप्टी पीएम को भी बाकी मंत्रियों के बराबर अधिकार ही अधिकार दिए जाती थे।
भारत के पहले उपप्रधानमंत्री कौन थे?
भारत के पहले उप प्रधान मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल थे, जो जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में गृह मंत्री भी थे। जिन्होंने 15 अगस्त 1947 को शपथ ली थी, जब भारत ने ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता प्राप्त की थी । दिसंबर 1950 में अपनी मृत्यु तक सेवा करते हुए, पटेल भारत के सबसे लंबे समय तक रहने वाले उप प्रधान मंत्री बने रहे। कार्यालय तब से केवल आंतरायिक रूप से कब्जा कर लिया गया है। सातवें और अंतिम उप प्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणी थे। जिन्होंने 2002 से 2004 तक कार्य किया। वर्तमान सरकार में कोई उप प्रधान मंत्री नहीं है और यह पद 23 मई 2004 से रिक्त है।