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राजस्थान में आगे की रणनीति पर कांग्रेस में मतभेद, टकराव नहीं मोल लेना चाहती पार्टी

राजस्थान के सियासी संकट में कांग्रेस की उलझनें खत्म होती नहीं दिख रही हैं।

Newstrack
Published on: 28 July 2020 10:32 AM IST
राजस्थान में आगे की रणनीति पर कांग्रेस में मतभेद, टकराव नहीं मोल लेना चाहती पार्टी
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नई दिल्ली: राजस्थान के सियासी संकट में कांग्रेस की उलझनें खत्म होती नहीं दिख रही हैं। राज्यपाल कलराज मिश्र की ओर से गहलोत सरकार को शर्तों और सवालों में उलझाए जाने के बाद पार्टी आगे की रणनीति नहीं तय कर पा रही है। पार्टी इस मुद्दे पर राज्यपाल से सीधा टकराव नहीं मोल लेना चाहती। इसी कारण सोमवार को देशभर में राजभवनों के सामने कांग्रेश की ओर से प्रदर्शन किया गया मगर जिस राजस्थान के मुद्दे पर प्रदर्शन किया गया वहां राजभवन का घेराव या प्रदर्शन नहीं किया गया।

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राज्यपाल ने शर्तों के साथ दी सहमति

दरअसल राज्यपाल कलराज मिश्र ने विधानसभा सत्र बुलाने पर तो सहमति दे दी है मगर उन्होंने कुछ शर्तें भी लगा दी हैं। उनका कहना है कि विधानसभा सत्र आयोजित करने के लिए 21 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिए। वैसे यदि सरकार विश्वासमत हासिल करना चाहती है तो यह जल्द सत्र बुलाए जाने का आधार बन सकता है। हालांकि सरकार की ओर से राज्यपाल को भेजे गए प्रस्ताव में विश्वासमत का कोई जिक्र नहीं किया गया है।

राज्यपाल की शर्तों पर दो अलग-अलग राय

राज्यपाल की 21 दिनों की शर्त पर कांग्रेस में एक राय नहीं बन पा रही है। राजस्थान को लेकर पार्टी की रणनीति बनाने में जुटे एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राज्यपाल की शर्तों को लेकर पार्टी में दो तरीके की राय उभरी है। कुछ नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपनी शर्तों पर कायम रहना चाहिए और इसे लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहिए।

कुछ दूसरे नेताओं का मानना है कि मौजूदा हालात में राज्यपाल से टकराव का रास्ता नहीं अपनाया जाना चाहिए और उनकी 21 दिन के नोटिस की राय को मान लिया जाना चाहिए। पार्टी के वरिष्ठ नेता इन दोनों रायों को लेकर मंथन कर रहे हैं। हालांकि पार्टी की ओर से अभी तक अंतिम रणनीति नहीं बनाई जा सकी है।

पहले भी शार्ट नोटिस पर हुई है बैठक

विधानसभा का सत्र जल्द बुलाने की वकालत करने वाले नेताओं का कहना है कि राजस्थान में पहले भी कई बार विधानसभा की बैठक 21 दिन से कम के नोटिस पर बुलाई गई है। इसलिए इस तरह की शर्त को मानना उचित नहीं होगा। इन नेताओं का कहना है कि बारहवीं विधानसभा में दो बार, तेरहवीं विधानसभा में सात बार, चौदहवीं विधानसभा में एक बार और 15वीं विधानसभा में तीन बार 21 दिन से कम के नोटिस पर विधानसभा का सत्र आयोजित किया जा चुका है। ऐसे में राज्यपाल की शर्त को मानने का कोई आधार नहीं है।

विधायकों को गोलबंद रखने की समस्या

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सबसे बड़ी चिंता लंबे समय तक विधायकों को गोलबंद रखने की है। राजस्थान का सियासी संकट शुरू हुए करीब 3 हफ्ते का समय व्यतीत हो चुका है और तब से कांग्रेस के सभी विधायक जयपुर के पास एक होटल में डेरा डाले हुए हैं। विधायकों के छिटकने के डर से उन्हें होटल में एक ही जगह पर टिकाया गया है। अब राज्यपाल की शर्त मान लेने की स्थिति में करीब 3 हफ्ते और विधायकों को गोलबंद रखना होगा। ऐसे में अशोक गहलोत की मुश्किलें निश्चित तौर पर बढ़ेंगी।

विधायकों को होटल में टिकाए जाने के बाद अशोक गहलोत नियमित रूप से होटल जाते रहे हैं और विधायकों के साथ बैठक करते रहे हैं। उन्होंने विधायकों को नजदीकी का एहसास कराने के लिए उनके साथ काफी वक्त बिताया है। ऐसे में हर किसी की नजर अब कांग्रेस की अगली रणनीति पर टिकी हुई है।

राज्यपाल से टकराव का इरादा नहीं

वैसे एक बात तो तय है कि मौजूदा हालात में कांग्रेस राज्यपाल से टकराव मोल लेने के मूड में नहीं है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने जयपुर में भी राजभवन के घेराव की घोषणा की थी मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कहने पर ही अंतिम समय में रणनीति में बदलाव किया गया।

गहलोत को था इस बात का डर

जानकारों का कहना है कि गहलोत को लगा कि अगर कांग्रेस के नेता जयपुर में राजभवन का घेराव करने के दौरान उत्तेजित हुए तो कानून व्यवस्था बिगड़ने का सारा दोष उनकी सरकार पर ही मढ़ा जाएगा। इस आधार पर राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश भी कर सकते हैं। राज्यपाल पहले भी राजभवन की सुरक्षा को लेकर गहलोत से सवाल पूछे चुके हैं। यही कारण है कि अंतिम समय में जयपुर में राजभवन का घेराव करने का कार्यक्रम बदल दिया गया। मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने विधायकों के साथ होटल में ही बैठकर रघुपति राघव राजा राम गाकर गांधीगीरी की।

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राज्यपाल के सवालों को गलत बताया

इस बीच राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि कैबिनेट का नोट जाने के बाद अब राज्यपाल के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल का पद गरिमा का है और वह यह नहीं पूछ सकते कि विधानसभा में सदस्य कैसे बैठेंगे और क्या व्यवस्था होगी। उन्होंने कहा कि विधायकों के बैठने की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी स्पीकर की होती है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के सभी सवाल गलत हैं। फिर भी हमने उनके पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए उन्हें सभी जानकारियां मुहैया कराई हैं।

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