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क्या होती है ई वोटिंग, जिसके माध्यम से मतदाता कहीं से भी कर सकेगा मतदान

चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने को लेकर गंभीर चुनाव आयोग ने अब एक नई पहल की है। चुनाव आयोग को उम्मीद है कि इससे मतदान के प्रतिशत में इजाफा होगा।

Aditya Mishra
Published on: 16 Feb 2020 5:14 PM IST
क्या होती है ई वोटिंग, जिसके माध्यम से मतदाता कहीं से भी कर सकेगा मतदान
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नई दिल्ली: चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने को लेकर गंभीर चुनाव आयोग ने अब एक नई पहल की है। चुनाव आयोग को उम्मीद है कि इससे मतदान के प्रतिशत में इजाफा होगा।

साथ ही मतदान के वक्त अपने शहर से दूर रहने वाले लोगों को भी अपना मत डालने का मौका मिलेगा। आप जहां पंजीकृत मतदाता हैं अगर उससे अन्य राज्य में रह रहे हैं तो अब आपको मतदान के दिन निराश नहीं होना पड़ेगा।

चुनाव आयोग ऐसे मतदाताओं को ई वोटिंग के जरिए मताधिकार प्रयोग की सुविधा देने के विकल्पों पर विचार कर रहा है। आयोग को इस भावी पहल से मतदान प्रतिशत बढ़ने का साथ-साथ चुनावी खर्च पर भी नियंत्रण की उम्मीद है। आयोग इसके लिए ई वोटिंग के जरिए दूरस्थ मतदान (रिमोट वोटिंग) की सुविधा मुहैया कराने के विकल्पों को विकसित कर रहा है।

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने हाल ही में इस व्यवस्था के बारे में खुलासा किया था कि आईआईटी चेन्नई के सहयोग से विकसित की जा रही मतदान की इस पद्धति के तहत किसी भी राज्य में पंजीकृत मतदाता किसी अन्य राज्य से मतदान कर सकेगा।

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गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव में किया गया था प्रयोग

एक अनुमान के मुताबिक देश में लगभग 45 करोड़ प्रवासी लोग हैं जो रोजगार आदि के कारण अपने मूल निवास स्थान से अन्यत्र निवास करते हैं। इनमें से कई मतदाता अपनी विवशताओं के कारण मतदान वाले दिन अपने उस चुनाव चुनाव क्षेत्र में नहीं पहुंच पाते हैं जहां के वे पंजीकृत हैं।

इस परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि दूरस्थ मतदान का प्रयोग ई वोटिंग के रूप में सबसे पहले 2010 में गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव में किया गया था। इसमें राज्य के प्रत्येक स्थानीय निकाय के एक-एक वार्ड में ई वोटिंग का विकल्प मतदाताओं को दिया गया था।

इसके बाद 2015 में गुजरात राज्य निर्वाचन आयोग ने अहमदाबाद और सूरत सहित छह स्थानीय निकायों के चुनाव में मतदाताओं को ई वोटिंग की सुविधा से जोड़ा था। हालांकि पूरी तरह प्रचार न हो पाने के कारण इस चुनाव में 95.9 लाख पंजीकृत मतदाताओं में से सिर्फ 809 मतदाताओं ने ही ई वोटिंग का इस्तेमाल किया था।

ओपी रावत के कार्यकाल में तैयार की गई थी परियोजना

देशव्यापी स्तर पर ई वोटिंग को लागू करने के लिये पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत के कार्यकाल में मतदाता पहचान पत्र को आधार’ से जोड़कर सीडेक के सहयोग से ई वोटिंग सॉफ्टवेयर विकसित करने की परियोजना को आगे बढ़ाया था।

इस परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि आधार को मतदाता पहचान पत्र से लिंक करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के कारण यह परियोजना लंबित थीं, लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आधार संबंधी पूर्वनिर्धारित दिशानिर्देशों के तहत इसे मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने की मंजूरी दे दी है।

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31 करोड़ मतदाता का पहचान पत्र आधार से लिंक

उन्होंने बताया कि लगभग 31 करोड़ मतदाता पहचान पत्र को आधार से पहले ही लिंक किया जा चुका है। देश में फिलहाल पंजीकृत कुल 91.12 करोड़ मतदाताओं में अब लगभग 61 करोड़ मतदाताओं के मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ना बाकी है।

गुजरात मॉडल के तहत ई वोटिंग के लिए मतदाता को आयोग की वेबसाइट पर ई वोटर के रूप में खुद को पंजीकृत करने का विकल्प दिया गया था। ऑनलाइन पंजीकरण आवेदन में दिए गए तथ्यों की जांच में पुष्टि के बाद पंजीकृत मतदाता को एसएमएस और ईमेल के जरिए एक पासवर्ड मिलता था। मतदान के दिन निश्चित अवधि में मतदाता को पासवर्ड की मदद से ई बैलेट पेपर भरकर ऑनलाइन मतदान करने का विकल्प दिया गया था।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में बुजुर्गों को मिली थी घर से मतदान की सुविधा

झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनाव में ई वोटिंग की सुविधा सर्विस वोटर को इलेक्ट्रॉनिक डाक मतपत्र के रूप में मुहैया कराई गई है। आठ फरवरी को हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में 80 साल से अधिक उम्र वाले मतदाताओं, दिव्यांग और रेल, चिकित्सा एवं अन्य आपात सेवा कर्मियों को डाक मतपत्र के जरिए घर से ही मतदान की सुविधा देने की शुरुआत हुई है। अरोड़ा ने कहा है कि पूरे देश में इस श्रेणी के मतदाताओं को जल्द ही इस सेवा से जोड़ दिया जाएगा।

आयोग के विशेषज्ञों के अनुसार मतदान की विश्वसनीयता को ध्यान में रखते हुए फर्जी वोटिंग सहित अन्य गड़बड़ियों की समस्या से बचने में भी दूरस्थ मतदान कारगर विकल्प साबित होगा।

निर्वाचन प्रक्रिया में इस प्रकार के बदलाव के लिए आयोग को कानून मंत्रालय से जन प्रतिनिधित्व कानून के मौजूदा प्रावधानों में बदलाव की दरकार होगी। सूत्रों के अनुसार 18 फरवरी को चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय के आला अधिकारियों की प्रस्तावित बैठक में इन पहलुओं पर विचार हो सकता है।

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