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चुनाव में सोशल मीडियाः आयोग की गाइडलाइन में बड़े बदलाव, लग सकती है ये रोक
इस बार चुनाव आयोग सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के लिए क्या कड़े कदम उठाता है। क्योंकि अभी दो दिन पहले ही सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए गाइड लाइन जारी की है।
रामकृष्ण वाजपेयी
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम जारी होने के साथ अब सबकी निगाहें इस बात पर लग गई हैं कि इस बार चुनाव आयोग सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के लिए क्या कड़े कदम उठाता है। क्योंकि अभी दो दिन पहले ही सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए गाइड लाइन जारी की है। अब निष्पक्ष और भय रहित चुनाव सम्पन्न कराने के लिए चुनाव आयोग की बारी है।
चुनाव में सोशल मीडिया के लिए गाइडलाईन
अगर पिछले चुनावों की बात करें तो 2014 के आम चुनाव, 2017 के कई राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव में चुनाव आयोग की सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया पर कड़ी नजर रही है।
जानकारों की मानें तो इस बार भी चुनाव आयोग फेसबुक सहित तमाम सोशल वेबसाइटों के लिए जरिये होने वाले प्रचार पर सख्ती बरतने की तैयारी में है।
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सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार के लिए आयोग की मंजूरी लेना हो सकता है जरूरी
संभावना जतायी जा रही है कि सोशल मीडिया की बढ़ती पहुंच को देखते हुए इस पर चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक दलों को आयोग की मंजूरी लेना जरूरी किया जा सकता है।
आयोग कह सकता है कि सभी पार्टियों और उम्मीद्वारों को चुनाव प्रचार से जुड़ा कोई भी कंटेंट सोशल मीडिया पर अपलोड करने से पहले आयोग की इजाजत लेनी होगी।
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इसके अलावा अगर पार्टियां या उम्मीद्वार बिना इजाजत के कंटेंट सोशल मीडिया साइट्स पर अपलोड करते हैं तो आयोग के निर्देश पर सोशल वेबसाइट ऐसी सामग्रियों को हटाने पर बाध्य किया जा सकता है।
आयोग हर पार्टी और उम्मीद्वार को यह बताना अनिवार्य कर सकता है कि सोशल मीडिया पर डाले गए कंटेंट पर कितने खर्च हुए हैं।
फेसबुक या व्हाट्सएप के ग्रुप पर प्रचार-प्रसार पर रोक भी संभव
संभावना इस बात की भी है कि आयोग सोशल मीडिया से जुड़े फेसबुक या व्हाट्सएप के किसी भी ग्रुप में प्रत्याशियों के प्रचार-प्रसार पर पूरी तरह रोक लगा दे और यदि कोई प्रत्याशी या उसका समर्थक ऐसा करे तो उसके साथ ही ग्रुप के एडमिन को भी जेल जाना पड़ सकता है।
इस संबंध में चुनाव आयोग पुलिस अधीक्षकों को फेसबुक या व्हाट्सएप ग्रुप में चुनाव के मुद्दे पर किसी भी वाद-विवाद और चर्चा, बहस की मॉनिटरिंग के बाद संबंधित निर्देश जारी कर सकता है। ताकि ऐसी स्थिति में ये अधिकारी आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करके कानूनी कार्रवाही कर सकें।
देना पड़ सकता है सोशल मीडिया अकाउंट्स का ब्योरा
आयोग यह कह सकता है कि सभी उम्मीदवारों को अपना नामांकन दाखिल करते वक्त अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स का ब्योरा चुनाव आयोग को सौंपना होगा।
आयोग ने गूगल, फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब से राजनीतिक दलों से मिलने वाले विज्ञापनों का वेरिफिकेशन करने को भी कह सकता है। इस तरह से चुनाव आयोग किसी भी तरह के दुष्प्रचार या प्रोपेगंडा पर रोक लगा सकता है।
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आयोग सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर जारी विज्ञापनों के खर्च को उम्मीदवारों के कुल खर्च में जोड़ने के आदेश भी दे सकता है। इसके अलावा इन प्लेटफॉर्म्स पर जारी विज्ञापनों से जुड़ी शिकायतों की सुनवाई के लिए एक अधिकारी भी नियुक्त कर सकता है।
चुनाव आयोग ने चूंकि पिछले चुनाव में इस तरह के कदम उठाए थे। इसलिए संभावना यही जताई जा रही है कि इस बार सख्ती कुछ ज्यादा ही बरती जा सकती है क्योंकि कोरोना के चलते सभी दलों का जोर सोशल मीडिया साइट्स के जरिये चुनाव प्रचार पर केंद्रित रहेगा।