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जसवंत पर कभी नहीं लगा भ्रष्टाचार का दाग, मुश्किल मौकों पर अटल को उबारा

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे जसवंत सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। 82 वर्षीय जसवंत सिंह बाथरूम में गिरने के बाद काफी दिनों से कोमा में चल रहे थे।

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Published on: 27 Sept 2020 10:41 AM IST
जसवंत पर कभी नहीं लगा भ्रष्टाचार का दाग, मुश्किल मौकों पर अटल को उबारा
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जसवंत पर कभी नहीं लगा भ्रष्टाचार का दाग, मुश्किल मौकों पर अटल को उबारा (social media)

नई दिल्ली: अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे जसवंत सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। 82 वर्षीय जसवंत सिंह बाथरूम में गिरने के बाद काफी दिनों से कोमा में चल रहे थे। उनके निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित कई प्रमुख हस्तियों ने शोक जताया है। एनडीए सरकार में वित्त, विदेश और रक्षा मंत्री रह चुके जसवंत सिंह अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत से लेकर कोमा में जाने तक लगातार सक्रिय बने रहे। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हनुमान कहा जाता था। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का टिकट न मिलने पर उन्होंने बागी उम्मीदवार के रूप में पार्टी को चुनौती दी थी।

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शेखावत के आशीर्वाद से बढ़ा सियासी सफर

जसवंत सिंह ने अजमेर के मेयो कॉलेज से पढ़ाई की थी और फिर उन्होंने देश सेवा के लिए आर्मी ज्वाइन कर ली थी। 1966 में उन्होंने सियासी पिच पर उतरने का फैसला किया मगर सियासी नदी में उनकी नाव काफी दिनों तक हिचकोले खाती रही।

बाद में उनकी नाव को भैरो सिंह शेखावत रूपी पतवार का सहारा मिला और वह 1980 में पहली बार राज्यसभा का सदस्य बनने में कामयाब हुए। इसके बाद वे धीरे धीरे भाजपा की सियासत में काफी महत्वपूर्ण बनते गए और उन्हें भाजपा के तत्कालीन दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेई का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

राजस्थान की सियासत में रही बड़ी भूमिका

राजस्थान की सियासत में भी जसवंत सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वसुंधरा राजे को पहली बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने में भैरो सिंह शेखावत के साथ उनकी भी भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है, मगर बाद में वसुंधरा राजे ने शेखावत को महत्व देना कम कर दिया था।

अपने राजनीतिक गुरु का यह अपमान जसवंत सिंह भी नहीं सह सके और दोनों के बीच रिश्ते खराब हो गए। दोनों के बीच रिश्ते खराब होने का एक और कारण राजस्थान की सियासत में वर्चस्व की लड़ाई भी थी। सियासी जानकारों का कहना है कि इसी नाराजगी के कारण 2014 के लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने उनका टिकट कटवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

अटल जी के रहे संकटमोचक

एनडीए शासनकाल में जसवंत सिंह को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का काफी करीबी माना जाता था। उन्हें अटल जी का हनुमान भी कहा जाता रहा है। उन दिनों में जसवंत सिंह ने अटल जी के लिए एक संकटमोचक की भूमिका निभाई। 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद जब भारत आर्थिक प्रतिबंधों के दबाव से जूझ रहा था तब अटल जी ने दुनिया को जवाब देने के लिए जसवंत सिंह को ही आगे किया था।

atal-bihari-vajpayee atal-bihari-vajpayee-L.K.Advani-Jaswant Singh (social media)

विमान अपहरण कांड के समय विदेश मंत्री

जिस समय पूरे देश को हिला देने वाली कंधार विमान अपहरण कांड की घटना हुई थी उस समय जसवंत सिंह देश के विदेश मंत्री थे। अपहर्ताओं की मांग पर तीन खूंखार आतंकवादियों को कंधार छोड़ने के लिए वही गए थे। अपनी एक किताब में उन्होंने उस घटना का जिक्र करते हुए कहा है कि लालकृष्ण आडवाणी और अरुण शौरी ने आतंकियों को छोड़ने का विरोध किया था।

इसलिए लेना पड़ा मुश्किल फैसला

जसवंत सिंह ने लिखा है कि उन्हें मालूम था कि फैसले के लिए उन्हें तमाम लोगों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा और शुरुआत में मैं भी आतंकियों से किसी भी तरह का समझौता करने के खिलाफ था। लेकिन बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय पर अपह्रत यात्रियों के बिलखते परिजनों को देखकर मेरा मन पसीज गया। मौके पर कोई गड़बड़ी न हो, इसलिए मैंने खुद कंधार जाने का फैसला किया था। विदेश मंत्री के रूप में जसवंत सिंह के इस कदम की उस समय भी खासी आलोचना हुई थी।

किताब को लेकर हुआ विवाद

जसवंत सिंह की एक किताब को लेकर भी काफी विवाद हुआ। उनकी यह किताब जिन्ना: इंडिया पार्टीशन ,इंडिपेंडेंस काफी चर्चाओं में रही है। इस किताब में वे जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष होने का सर्टिफिकेट देते नजर आए और इसी कारण इस किताब को लेकर काफी विवाद पैदा हो गया।

उन्होंने अपनी इस किताब में देश के विभाजन के लिए पंडित नेहरू और सरदार पटेल को जिम्मेदार ठहराया है। उनकी यह सोच भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच से बिल्कुल विपरीत थी और इस कारण उन्हें 2009 में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।

2014 में पार्टी ने नहीं दिया टिकट

2014 के लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे मगर पार्टी की ओर से उन्हें टिकट नहीं दिया गया। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा में वे अकेले पड़ गए थे। उन्हें पसंद करने वाले नेता अटल जी सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके थे और लालकृष्ण आडवाणी तक खुद संघर्ष कर रहे थे। ऐसे में वे जसवंत की पैरवी क्या करते। पार्टी की ओर से इस सीट पर कुछ ही दिन पहले पार्टी में शामिल हुए पूर्व कांग्रेसी नेता सोनाराम चौधरी को टिकट दिया गया था।

बागी उम्मीदवार के रूप में लड़ा चुनाव

पार्टी हाईकमान के फैसले से जसवंत सिंह के समर्थक नाराज हो गए। जसवंत सिंह ने बागी उम्मीदवार के रूप में बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से नामांकन कर दिया। नामांकन वापसी के आखिरी दिन जब उन्होंने अपना पर्चा वापस नहीं लिया तो पार्टी की ओर से उन्हें 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया।

इस चुनाव में जसवंत सिंह कई करीब एक लाख मतों से हार हुई। सोनाराम चुनाव तो जीत गए मगर उनको टिकट देने का हाईकमान का फैसला भाजपा के कई समर्थकों को भी खला था।

कभी नहीं लगा भ्रष्टाचार का दाग

देश की सियासत में जसवंत सिंह की पहचान हमेशा बाकी नेताओं से अलग रही। अपनी विद्वता, बेहतरीन अंग्रेजी और सोच समझकर बोलने के कारण वे अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे।

जसवंत सिंह की एक खूबी यह भी रही कि वे विवादों में भले रहे हों मंगल लंबे सियासी जीवन के दौरान उन पर कभी भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा। उन्हें सियासी मैदान के चंद ईमानदार नेताओं में गिना जाता रहा है। संगीत, किताबें पढ़ना और घुड़सवारी उनका सबसे प्रिय शौक था।

हमेशा अपनी शर्तों पर की राजनीति

जसवंत सिंह की एक खूबी यह भी थी कि उन्होंने हमेशा अपनी शर्तों पर राजनीति की। भाजपा का प्रमुख नेता होने के बावजूद उन्होंने कभी भी बाबरी प्रकरण है या हिंदुत्व के राजनीतिकरण का पक्ष नहीं लिया। यही कारण है कि उन्हें अपने क्षेत्र के मुसलमानों का भी समर्थन हासिल था। भाजपा का प्रखर विरोध करने वाली कांग्रेस के नेता भी जसवंत सिंह पर सीधा हमला करने से परहेज किया करते थे।

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लंबे समय तक यादों में रहेंगे जसवंत

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह ही जसवंत सिंह के आखिरी दिन भी बीमारी में ही कटे। पिछले लोकसभा चुनाव के कुछ दिन बाद ही वे एक दिन अपने घर के बाथरूम में गिर गए थे और उसके बाद से लगातार कोमा में चल रहे थे और आखिरकार 82 वर्ष की अवस्था में उन्होंने आखिरी सांस ली। जसवंत सिंह भारतीय सियासत का हुआ चेहरा रहे हैं जिन्हें लंबे समय तक याद रखा जाएगा।

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