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विस्फोटक बना किसान आंदोलन: भयानक खतरे की ओर बढ़ा देश, कैसे भी शुरू करें बात
किसान आंदोलन का हल चाहने वाले लोगों का कहना है हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। लगता है सरकार किसानों से बात करना ही नहीं चाहती है।
रामकृष्ण वाजपेयी
टिकैत का 40 लाख ट्रैक्टरों की रैली का एलान, केंद्र सरकार की छह लेयर की कील कांटे से लैस सुरक्षा व्यवस्था और संसद में किसानों के मसले पर विपक्ष का बवाल। अगर इन सब बातों पर गौर करें तो एक काल की दूरी की बात सिर्फ जुमला बनती दिख रही है।
किसान आंदोलन का हल कब
किसान आंदोलन का हल चाहने वाले लोगों का कहना है हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। लगता है सरकार किसानों से बात करना ही नहीं चाहती है। राकेश टिकैत का भी कहना है कि वो नंबर बताइए, हम तुरंत फोन लगाते हैं। किसान नेता बोले कि जो हमारा फोन है, उसपर लोग हमें गालियां देते हैं। ऐसे में अगर प्रधानमंत्री ऐसे किसी फोन कॉल की बात कर रहे हैं, तो हमें नंबर दीजिए।
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52 प्रतिशत किसान कृषि कानूनों के विरोध में
किसान आंदोलन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अगर सरकार सच्चे मन से किसानों की समस्याओं का हल चाहती तो इस तरह के उकसाने वाले काम न करती। पिछले दिनों एक निजी सर्वे में जब किसानों से पूछा गया कि आप इन कानूनों के पक्ष में हैं या विरोध में, जवाब में 52 प्रतिशत किसानों ने कहा ‘विरोध में’ जबकि कानून के पक्ष में बताने वाले किसानों की संख्या महज 35 प्रतिशत थी। ऐसे में यह कहना कि बहुसंख्यक किसान कृषि कानूनों के पक्ष में हैं गलत है।
निहत्थे किसानों को बदनाम करने का सरकार पर आरोप
आंदोलनकारी किसानों का मानना है कि निहत्थे किसानों को बदनाम करने के लिए ही सरकार ने पहले ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा कराई। तिरंगे का अपमान कराया। यह बात साबित हो चुकी है।
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सरकार की मंशा थी कि भावुक किसान हिंसा और तिरंगे के अपमान की घटनाओं से दुखी होकर घर लौट जाएगा और सरकार अपने मिशन में कामयाब हो जाएगी। लेकिन यह साजिश नाकाम हो गई।
किसान आंदोलन से अलग थलग हुए संगठन
सरकार की ओर से किसान आंदोलन से अलग थलग किये जा चुके दो संगठनों से आंदोलन से अलग होने का एलान कराकर किसानों को वापसी के लिए प्रेरित करने की कोशिश की जिनकी बहुत थोड़े से किसानों पर पकड़ है लेकिन यह कोशिश भी फ्लाप रही।
लालकिले पर निशान साहब का झंडा फहरा कर इस आंदोलन को अलगाववाद से जोड़ने की कोशिश हुई लेकिन झंडा फहराने वाले भाजपा के पिट्ठू निकले। बावजूद इसके सरकार जब अंतिम चरण में धरने पर बैठे किसानों को मारपीट कर बेइज्जत कर भगाने की तैयारी में थी तो सरकार की रणनीति उल्टी पड़ गई। सरकार का गुर्जरों और जाटों को लड़ाने का दांव उल्टा पड़ा।
राकेश टिकैत के आंसूओं ने बदला गेम
सरकार का इरादा था कि राकेश टिकैत और अन्य किसान नेताओं को जब बेइज्जत किया जाएगा और धरने पर बैठे किसानों को अपमानित कर भगाया जाएगा तो दोबारा टिकैत के नेतृत्व में किसान फिर नहीं एकजुट होंगे। सरकार मनमानी करने में कामयाब हो जाएगी।
लेकिन सरकार की गंदी नीयत को भांप कर बेबसी में टिकैत के जो आंसू निकले उन्होंने पूरा गेम पलट दिया। सरकार का यह हथकंडा भी फेल हो गया।
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अब सरकार निहत्थे हल चलाने वाले किसानों के साथ आतंकवादियों का सा सलूक कर अभेद्य सुरक्षा कवच बनाकर किसानों की सहानुभूति खत्म करना चाहती है।
इस पूरे खेल में सर्वदलीय बैठक और उसके बाद मन की बात में प्रधानमंत्री की किसानों से एक काल की दूरी कहीं और लंबी होती दिख रही है।
किसान तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग पर अड़े हैं। बदले हालात में किसान लगातार अपना आंदोलन तेज कर रहे हैं।
टिकैत ने सरकार को दिया अक्टूबर तक का समय
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता राकेश टिकैत अब सरकार को अक्टूबर तक का समय देने की बात कही है। उसके बाद देशभर में 40 लाख ट्रैक्टरों की रैली निकालने की चेतावनी दी है। जब किसान दिल्ली में एक लाख ट्रैक्टर लेकर घुस सकते हैं तो पूरे देश में ये संख्या कोई बड़ी बात नहीं है। राकेश टिकैत ने कहा, 'हमने सरकार को अक्टूबर तक का समय दिया है, अगर वे हमारी बात नहीं मानते हैं, तो हम 40 लाख ट्रैक्टरों की एक देशभर में ट्रैक्टर रैली निकालेंगे।'
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किसानों ने 6 फरवरी को दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक पूरे देशभर में चक्का जाम करने का एलान किया है। यह संयुक्त किसान मोर्चा का फैसला है कि 6 फरवरी को देशभर की मुख्य सड़कों पर दिन के 12 से 3 बजे तक कोई गाड़ी नहीं चलने दी जाएगी। जो हालात बन रहे हैं उससे ऐसा लग रहा है कि अगर किसानों की न सुनी गई तो न तो संसद चल पाएगी और न ही देश।
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