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लॉकडाउन में बेटी के लिए पिता ने बनाई लकड़ी की गाड़ी, ये दास्तां सुन रो देंगे आप

कोरोना महामारी ने जीवन को केवल मौत के सिरहाने नहीं खड़ा किया है, बल्कि इस महामारी से जो बच रहे हैं उनकी जिंदगी भी बदहाल कर दिया है। पूरे देश में 17 मई तक लॉकडाउन है।

suman
Published on: 12 May 2020 4:34 PM GMT
लॉकडाउन में बेटी के लिए पिता ने बनाई लकड़ी की गाड़ी, ये दास्तां सुन रो देंगे आप
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बालाघाट: कोरोना महामारी ने जीवन को केवल मौत के सिरहाने नहीं खड़ा किया है, बल्कि इस महामारी से जो बच रहे हैं उनकी जिंदगी भी बदहाल कर दिया है। पूरे देश में 17 मई तक लॉकडाउन है।लेकिन इसी बीच कई लोग बिना साधन के अपने घरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इनमें वो लोग शामिल है जो मजदूरी करते थे।

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ऐसा ही एक करुण मार्मिक दृश्य देख आपका दिल भी पिघल जाएगा। जब आप प्रवासी मजदूरों की घर वापसी को ये तस्वीर देखेंगे।, जिसमें एक मजबूर पिता 800 किमी दूर से अपनी नन्ही बेटी को हाथ से बनी गाड़ी पर खींचकर लाता दिख रहा है। उसके साथ उसकी गर्भवती पत्नी भी है। यह सब मध्य प्रदेश की बालाघाट सीमा पर मंगलवार दोपहर को देखने को मिला।

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हैदराबाद से लौटा घर

हैदराबाद में नौकरी करने वाला रामू नाम का शख्स 800 किलोमीटर का सफर अपनी गर्भवती पत्नी और दो साल की बेटी के साथ पूरा कर बालाघाट में आया। बता दें हैदराबाद में रामू को जब काम मिलना बंद हो गया तो वापसी के लिए उसने कई लोगों से मदद मांगी, लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई, तो उसने पैदल ही घर लौटने का मन बनाया। कुछ दूर तक तो रामू अपनी दो साल की बेटी को गोद में उठाकर चलता रहा और उसकी गर्भवती पत्नी सामान उठाकर। लेकिन बाद में रामू ने रास्ते में ही बांस बल्लियों से सड़क पर खिसकने वाली गाड़ी बनाई। उस गाड़ी पर सामान रखा और दो साल की बेटी को उसपर बैठाया। बेटी के पैरों में चप्पल तक नहीं थी। फिर उस गाड़ी को रस्सी से बांधा और उसे खींचते हुए 800 किलोमीटर का सफर 17 दिन में पैदल तय किया।

पुलिसवालों का भी दिल पसीजा

बालाघाट की रजेगांव सीमा पर जब वह पहुंचे तो वहां मौजूद पुलिसवालों का का भी दिल पसीज गया। उन्होंने बच्ची को बिस्किट और चप्पल लाकर दी और एक निजी गाड़ी का बंदोबस्त किया और उसे गांव तक भेजा।

लांजी के एसडीओपी नितेश भार्गव ने इस बारे में बताया कि हमें बालाघाट की सीमा पर एक मजदूर मिला जो अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद से पैदल आ रहा था। साथ में दो साल की बेटी थी जिसे वह हाथ की बनी गाड़ी से खींचकर यहां तक लाया था। पहले बच्ची को बिस्किट दिए और फिर उसे चप्पल लाकर दी। फिर निजी वाहन से उसे उसके गांव भेजा।।

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