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इतिहास के पन्नों में दर्ज होगी आज की तारीख, पहली बार ऐसा करेगा कोई प्रधानमंत्री

आज अयोध्या में भूमि पूजन है पूरे देश में इसे लेकर उत्साह है।आज भूमि पूजन कार्यक्रम में पीएम मोदी खुद शामिल होंगे।रामलला की जन्मभूमि खुद में इतिहास के कई पन्नों को समेट रखी है। ऐसे में इस धार्मिक नगरी में पांच बैकुंठों में एक साकेत से भी सुंदर नगरी की संज्ञा स्वयं भगवान राम ने दी है

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 5 Aug 2020 3:15 AM GMT
इतिहास के पन्नों में दर्ज होगी आज की तारीख, पहली बार ऐसा करेगा कोई प्रधानमंत्री
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अयोध्या : आज अयोध्या में भूमि पूजन है पूरे देश में इसे लेकर उत्साह है।आज भूमि पूजन कार्यक्रम में पीएम मोदी खुद शामिल होंगे।रामलला की जन्मभूमि खुद में इतिहास के कई पन्नों को समेट रखी है। ऐसे में इस धार्मिक नगरी में पांच बैकुंठों में एक साकेत से भी सुंदर नगरी की संज्ञा स्वयं भगवान राम ने दी है।कहते हैं कि महात्मा राजा मनु के लिए स्वयं भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने इसे धरती पर उतारा था।

भगवान द्वारा रचित नगरी

लेकिन भगवान की रचित इस नगरी में दशकों तक मंदिर-मस्जिद का विवाद खड़ा रहा और वह इतना लंबा और दुखदायी रहा है कि कई तारीखें इतिहास बनती चली गईं। और आज की तारीख 5 अगस्त भी ऐतिहासिक होगी। क्योंकि पहली बार कोई प्रधानमंत्री यहां के कार्यक्रम में शामिल होंगे। नरेंद्र मोदी के हाथों श्रीरामजन्मभूमि मंदिर की शुरुआत के साथ अयोध्या के इतिहास में जुड़ेगा।

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इतिहास गवाह रहा

इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद कोई भी देश के प्रधानमंत्री अयोध्या गए नहीं। जो पीएम पिछले पांच दशकों में यहां आए, जैसे-इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी आए तो लेकिन, जन्मस्थान से दूरी रखी। इंदिरा गांधी 1966 में नया घाट पर बने सरयू पुल का लोकार्पण करने आईं फिर आचार्य नरेन्द्र देव विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में आईं। राजीव गांधी भी प्रधानमंत्री रहते दो बार और पूर्व प्रधानमंत्री के रूप में एक बार आए।

कांग्रेस ने की कोशिश पर दूरी बनाकर

उन्होंने 1984 में चुनावी सभा को यहां संबोधित किया और फिर 1989 के लोकसभा चुनाव के अभियान की फैजाबाद (अयोध्या) से शुरुआत कर प्रतीकात्मक रूप से राम नाम के सरोकारों का सियासी लाभ लेने की कोशिश की। माना जाता है रामराज्य की घोषणा के पीछे राजीव गांधी की मंशा 1986 में जन्मभूमि का ताला खुलवाने और नवंबर 1989 में शिलान्यास कराने के कामों का परोक्ष्य रूप से राजनीतिक लाभ लेने की थी।

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जब आएं अटल बिहारी वाजपेयी

केंद्र में भाजपा की दो बार सरकार बनी और दोनों प्रधानमंत्री सीधे अयोध्या आए। मोदी से पहले अटल बिहारी वाजपेयी 2003 में अयोध्या आए थे। पर, मंदिर के निमित्त किसी सीधे अनुष्ठान में शामिल होने के बजाय इस आंदोलन के प्रमुख व शीर्ष चेहरे महंत रामचंद्र परमहंस के अंतिम संस्कार में शामिल होने। उन्होंने सरयू तट पर महंत की चिता के सामने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण की उनकी इच्छा पूरी करने की घोषणा की थी। अटल 2003 से पहले भी सरयू तट पर आए थे, लेकिन अयोध्या के बजाय गोंडा की सीमा में। व्यावहारिक रूप से अयोध्या में, लेकिन तकनीकी तौर पर गोंडा में। हालांकि बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने उस यात्रा में अयोध्या से गोरखपुर और पूर्वांचल को जोड़ने के लिए सरयू पर बने रेलवे पुल और रेल लाइन का उद्घाटन कर अयोध्या की जन्मभूमि से दूरी रखी।

सारथी से बने रथि मोदी

वो फैजाबाद हवाई अड्डे पर बतौर प्रधानमंत्री एक बार चुनावी सभा को भी संबोधित किया। पर, जन्मभूमि स्थल से दूर रहे। लालकृष्ण आडवाणी उपप्रधानमंत्री के रूप में अपनी भारत उदय यात्रा के दौरान जरूर इस स्थान पर गए थे।अगर कहा जाए कि अयोध्या के विकास की बात पर कांग्रेस और भाजपा ने खूब प्रयास किए, लेकिन बतौर प्रधानमंत्री राम जन्मभूमि स्थल पर आने वाले मोदी पहले व्यक्ति है उनके हाथों मंदिर की शुरुआत किसी प्रधानमंत्री के लिए इतिहास में पहली बार होगा।

हनुमान जी ने खुद को भगवान राम का दास ही कहलाना पसंद किया है। लेकिन, राम-रावण युद्ध में एक तरह से उनकी भूमिका किसी सारथि और सहयोगी जैसी थी। संयोग ही है कि 1990 में लालकृष्ण आडवाणी के सहयोगी व सारथि के रूप में सोमनाथ से अय़ोध्या के लिए चले नरेंद्र मोदी दूसरी बार जब इन स्थानों पर पहुंचेंगे तो सारथि से रथी की भूमिका में आ गए।

पीएम मोदी ने अपनी बात की सच

1992 में श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर दर्शन करने जब नरेंद्र मोदी आए थे, लेकिन तब भी वह सारथि थे डॉ. मुरली मनोहर जोशी के साथ। नरेंद्र मोदी जब पहली बार 1992 में अयोध्या आए थे, तब उन्होंने कुछ लोगों के पूछने पर कहा था, दूसरी बार अयोध्या तब आऊंगा, जब मंदिर निर्माण की स्थिति बनेगी। और आज यह बात सत्यसिद्ध हो रही है। खास बात यह है कि मोदी यह काम शुरू करने तब आ रहे हैं, जब वह जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति करा चुके हैं। उनकी उस यात्रा के दोनों संकल्पों के साकार होने की तारीख 5 अगस्त ही बनने जा रही । पीएम नरेंद्र मोदी ही ऐसे सारथि और सहयोगी हैं, जो मंदिर निर्माण की शुरुआत से जुड़ चुके है और ईश्वर की कृपा से अंत तक साथ रहेंगे। उनके साथ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मुख्य भूमिका निभ् रहे है।

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राम अनादि से अनन्त तक

सदियों बाद एक ऐसा सपना साकार हो रहा है जिसके लिए लाखों लोगों ने अपनी जिंदगियां खपा दीं और लाखों लोगों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया, सिर्फ ये दिन देखने के लिए कि अयोध्या में एक न एक दिन भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा। आज की पीढ़ी बहुत ही सौभाग्यशाली है जिसे श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा। आज की पीढ़ी गर्व से कह सकती है कि हमने भव्य राम मंदिर की एक-एक ईंट को लगते देखा है। ये दिन देखने के लिये ना जाने कितनी पीढ़ियों ने संघर्ष किया होगा और न जाने कितने रामभक्तों ने अपना लहू बहाया होगा। आज ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे वनवास पूरा करके मर्यादा पुरुषोतम प्रभु श्रीराम अपने घर को लौट रहे हैं। 05 अगस्त 2020 को प्रस्तावित श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण भूमि पूजन में कोरोना महामारी के चलते सिर्फ कुछ ही प्रमुख लोग शामिल होंगे। इस भूमि पूजन कार्यक्रम में आम जनमानस की उपस्थिति कोरोना महामारी के चलते निषेध है। बेशक लोग इस महत्वपूर्ण और गर्व से भरे हुये पल के साक्षी न बन पायें लेकिन राम अनादि से अनन्त तक हैं और समस्त विश्व के राम भक्त राम में ही समाये हुए हैं।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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