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मौलाना आजाद पर बवाल: CBI के पूर्व चीफ नागेश्वर राव बने वजह, मचा घमासान

सीबीआई (केंद्रीय जांच एजेंसी) के पूर्व निदेशक और सेवारत आईपीएस अधिकारी एम नागेश्वर राव इन दिनों एक बार फिर चर्चा का विषय बने हुए हैं।

Newstrack
Published on: 27 July 2020 2:53 PM IST
मौलाना आजाद पर बवाल: CBI के पूर्व चीफ नागेश्वर राव बने वजह, मचा घमासान
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नई दिल्ली। सीबीआई (केंद्रीय जांच एजेंसी) के पूर्व निदेशक और सेवारत आईपीएस अधिकारी एम नागेश्वर राव इन दिनों एक बार फिर चर्चा का विषय बने हुए हैं। एम नागेश्वर राव ने शनिवार को इस्लाम धर्म और देश के पहले शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को लेकर बेहद आपत्तिजनक ट्वीट किया हैं। जिसके बाद से वे चर्चा में हैं। उन्होंने दावा किया कि भारत के इतिहास को खूनी इस्लामिक धर्मों/ शासन ने बड़ी सफाई से 'विकृत' किया।

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एक ट्वीट में पोस्ट किया

इसके साथ ही ऐसा करने वाले को शिक्षामंत्री का नाम दिया गया। शिक्षामंत्री रहते हुए मौलाना अबुल कलाम आजाद 30 में से 20 साल मतलब सन् 1947-77 तक भारतीय मन-मस्तिष्क के प्रभारी बने बैठे थे।

ऐसे में आईपीएस एम नागेश्वर राव ने ट्वीट किया- 'मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के 11 साल (1947-58) के बाद, हुमायूं कबीर, एम सी छागला और फकरुद्दीन अली अहमद- 4 साल (1963-67), फिर नुरुल हसन- 5 साल (1972-77)।

शेष 10 साल अन्य वामपंथी जैसे वीकेआरवी राव... ने ये जिम्मेदारी संभाली'। एम नागेश्वर राव ने ये लाइनें चार स्लाइड की एक सीरीज से ली, जिसे उन्होंने एक ट्वीट में पोस्ट किया था।



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हिंदू सभ्यता के अब्राहमनिकरण

इसकी शुरुआत में लिखा है- 'हिंदू सभ्यता के अब्राहमनिकरण की कहानी।' इसमें नागेश्वर राव ने छह बिंदुओं को सूचीबद्ध किया-

1: हिंदुओं को उनके ज्ञान से वंचित करें।

2. हिंदू धर्म को अंधविश्वासों के संग्रह के रूप में सत्यापित करें।

3. अब्राहम शिक्षा।

4. अब्राहम मीडिया और मनोरंजन।

5. अपनी पहचान के बारे में शर्म आनी चाहिए।

6. हिंदू धर्म और समाज की मृत्यु हो जाती है।

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साथ ही एम नागेश्वर राव ने रविवार को एक और पोस्ट किया। उन्होंने लिखा- 'क्या हम अपने राष्ट्रीय आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते के लिए असल में प्रतिबद्ध हैं। क्या सत्य अकेले विजय हो सकता है? ज्यादातर नहीं।

इसके विपरीत, हम राजनीतिक शुद्धता के नाम पर झूठ को झूठ बताते हैं, जिसे हम अपनी शिक्षा में ही सीखते हैं। इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है कि हम पाखंडियों के राष्ट्र हैं, न कि विजेताओं के।'

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