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जानें कहाँ रखी है तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस', हनुमान जी ने स्वयं दिये थे दर्शन

तुलसीदास का महत्व भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के अनुयायियों के लिये जो है, उसे शायद शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता। क्योंकि इन्होंने 'रामचरितमानस' की रचना की इसलिये इनका सम्मान नहीं है।

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Published on: 27 July 2020 8:20 AM GMT
जानें कहाँ रखी है तुलसीदास रचित रामचरितमानस, हनुमान जी ने स्वयं दिये थे दर्शन
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शाश्वत मिश्रा

सन 1511 में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में जन्में तुलसीदास को आज दुनिया गोस्वामी तुलसीदास या आदिकवि तुलसीदास के नाम से जानती है। इनके जन्म स्थान पर काफी चर्चा हुई, लेकिन अंततः सभी ने इनके जन्म स्थान को राजापुर ही माना। इनके पिता का नाम आत्मारामदुबे और माता का नाम हुलसी था।

पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर।

श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर।।

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हिंदी साहित्य के 'तुलसीदास'

तुलसीदास का महत्व भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के अनुयायियों के लिये जो है, उसे शायद शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता। क्योंकि इन्होंने 'रामचरितमानस' की रचना की इसलिये इनका सम्मान नहीं है। बल्कि इन्होंने ऐसी रचनाओं को जन्म दिया, जिनका हिंदी साहित्य में स्थान सर्वमान्य है।

महाकवि तुलसीदास ने अवधी और ब्रज भाषा में कई रचनाओं को जन्म दिया। उनकी अवधी में रामचरितमानस, रामलाल नहछू, बरवाई रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल और रामाज्ञा प्रश्न। ब्रज भाषा में कृष्णा गीतावली, गीतावली, साहित्य रत्न, दोहावली, वैराग्य संदीपनी और विनय पत्रिका। इसके साथ ही उन्होंने हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक, हनुमान बाहुक और तुलसी सतसई की भी रचना की।

लेकिन बात आज तुलसीदास की नहीं है। मुद्दा रामचरितमानस का है। उसकी वास्तविक प्रति कहाँ है? किस स्थान पर वो रखी है? लोग वहाँ कैसे पहुँच सकते हैं? कितने समय में वो बनकर तैयार हुई?

तो इन सवालों के आपको एक-एक कर जवाब देते हैं।

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वास्तविक 'रामचरितमानस'

आज से 427 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी। जिसकी मूल पांडुलिपि चित्रकूट से 35 किलोमीटर दूर उनके जन्म स्थान राजापुर में सुरक्षित है। पांडुलिपि के अनेक पन्ने गायब हो चुके हैं। बचे हुए हिस्से को पुरातत्व विभाग ने जापानी टिश्यू पेपर और केमिकल से संरक्षित कर दिया है। इस रामचरितमानस का दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

बचपन में ही विद्वानों की शरण में आने के बाद तुलसीदास को रामबोला कहा जाता था। गोस्वामी जी ने अयोध्या और काशी में अपने प्रवास के दौरान 1587 से रामचरितमानस के लेखन का काम किया था। जिसे पूरा करने में उन्हें 2 वर्ष 7 माह और 26 दिन लगे। हस्तलिखित पांडुलिपि के 170 पृष्ठ राजापुर तुलसी मंदिर में सुरक्षित हैं। इनको तुलसी कालीन ही माना गया, इसीलिए उन्हें पुरातत्व विभाग ने लेमिनेशन करवाकर मंदिर के पुजारी रामाश्रय त्रिपाठी को सौंप दिया है। पुजारी बताते हैं ''कि अयोध्या कांड की प्रत्येक पृष्ठ का आकार 11×5 सेंटीमीटर है। हर पृष्ठ पर श्री गणेशाय नमः और श्री जानकी वल्लभो विजयते लिखा है। पुस्तक की सुरक्षा के लिए पुलिस भी मौजूद रहती है।

हनुमानजी के दर्शन प्राप्त हुए तुलसीदास को

तुलसीदास को हनुमान जी के दर्शन प्राप्त हुए थे। गोस्वामी तुलसीदास जी के वे इष्ट देव थे। हनुमान जी ने साक्षात तुलसीदास जी को दर्शन दिया था। तुलसी घाट से ही 1 किलोमीटर दक्षिण में वन के बीच गोस्वामी गोस्वामी तुलसीदास जी को उनके इष्ट देव हनुमान जी का प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने इष्ट देव हनुमान जी का नाम संकट मोचन दिया। गोस्वामी को सभी मनोवांछित फल संकट मोचन हनुमान जी ने संकट मोचन मंदिर पर दिए।

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।

तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास की मृत्यु

महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने संवत्‌ 1680 (1623 ई।) में श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन ‘राम-राम’ का जप करते हुए काशी में अपना शरीर त्याग कर दिया।

संवत सोलह सौ असी असी गंग के तीर।

श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यों शरीर।।

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