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Maharashtra Politics: बिहार में 75 फीसदी आरक्षण के बाद महाराष्ट्र की सियासत गरमाई, पूर्व CM ने उठाया सवाल-जब वहां मुमकिन तो हमारे राज्य में क्या दिक्कत
Maharashtra Politics: राज्य की शिंदे सरकार इस मामले को सुलझाने की कोशिश में जुटी हुई है मगर इस बीच महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने सवाल उठाया है कि जब यह कदम बिहार में उठाया जा सकता है तो महाराष्ट्र में यह कदम क्यों नहीं उठाया जा सकता।
Maharashtra Politics: बिहार में जातिगत जनगणना के बाद 75 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव विधानसभा में पारित होने के बाद महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई है। मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर महाराष्ट्र में पिछले दिनों बड़े पैमाने पर आगजनी और हिंसा हुई थी। राज्य की शिंदे सरकार इस मामले को सुलझाने की कोशिश में जुटी हुई है मगर इस बीच महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने सवाल उठाया है कि जब यह कदम बिहार में उठाया जा सकता है तो महाराष्ट्र में यह कदम क्यों नहीं उठाया जा सकता।
मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल पिछले दिनों मराठा आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। राज्य सरकार की ओर से आश्वासन दिए जाने के बाद उन्होंने अपनी भूख हड़ताल तो समाप्त कर दी मगर उन्होंने राज्य सरकार को 60 दिनों का अल्टीमेटम दे रखा है। बिहार में नीतीश सरकार की ओर से उठाए गए कदम के बाद अब महाराष्ट्र में भी इस दिशा में कार्रवाई करने की मांग जोर पकड़ने लगी है।
पूर्व सीएम ने दिया बिहार का उदाहरण
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान मराठा समुदाय को आरक्षण देने की दिशा में ठोस कदम उठाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा में हाल में 75 फ़ीसदी आरक्षण दिए जाने का प्रस्ताव पारित किया गया है। चव्हाण ने कहा कि इस बाबत विधानसभा में पेश किए गए प्रस्ताव का भाजपा विधायकों ने भी समर्थन किया था।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस की ओर से आरक्षण की सीमा को बढ़ाए जाने का पहले से ही समर्थन किया जा रहा है। इसके साथ ही कांग्रेस ने देश भर में जातिगत जनगणना कराए जाने का भी समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण की सीमा को बढ़ाने के लिए ढील दी जानी चाहिए ताकि सभी वर्गों को इसका फायदा मिल सके।
शीतकालीन सत्र में सरकार उठाए कदम
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की ओर से बिहार का उदाहरण देकर महाराष्ट्र में आरक्षण की सीमा बढ़ाई जाने की मांग के बाद शिंदे सरकार पर दबाव बढ़ गया है। राज्य सरकार की ओर से अभी मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र दिया जा रहा है। इस जाति के लोगों को राज्य में पहले से ही आरक्षण हासिल है।
राज्य में मराठा समुदाय को अलग आरक्षण देने की मांग को लेकर सियासी माहौल गरमाया हुआ है। दूसरी ओर ओबीसी समुदाय से जुड़े संगठनों का कहना है कि उन्हें मराठा समुदाय को आरक्षण देने पर कोई आपत्ति नहीं है मगर यह आरक्षण ओबीसी वर्ग का हक छीनकर नहीं दिया जाना चाहिए। इस कारण शिंदे सरकार की मुश्किलें और बढ़ गई हैं।
आरक्षण आंदोलन के नेता का अल्टीमेटम
इस बीच महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की अगुवाई कर रहे मनोज जरांगे पाटिल ने कहा है कि राज्य में मराठाओं को आरक्षण न देने के लिए लंबे समय से ओबीसी नेताओं ने दबाव बना रखा था। उन्होंने कहा कि यदि मराठा समुदाय को 24 दिसंबर तक आरक्षण नहीं दिया गया तो हम ऐसे नेताओं के नामों का खुलासा करेंगे।
उन्होंने कहा कि आरक्षण की श्रेणी में शामिल होने के बाद जो सुविधाएं ओबीसी को दी जा रही हैं, वही सुविधाएं मराठा समुदाय को भी मिलनी चाहिए। राज्य सरकार को नौकरियों में भी मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देना चाहिए और इसके साथ ही मराठाओं को राजनीतिक लाभ के मौके भी दिए जाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था प्रस्ताव
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2021 को मराठा आरक्षण के प्रस्ताव को रद्द कर दिया था। इस मामला में पुनर्विचार करने के लिए भी शीर्ष अदालत में याचिकाएं दाखिल की गई थीं मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल महीने के दौरान पुनर्विचार याचिकाओं को भी खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का कहना था कि रिकॉर्ड में कोई त्रुटि नहीं मिली है जिससे इस मामले में फिर से विचार करने की जरूरत हो। ऐसे में अब सबकी निगाहें महाराष्ट्र की शिंदे सरकार के अगले कदम पर लगी हुई हैं।