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स्वातंत्र्यवीर सावरकरः जिनके इस काम पर फैला है भ्रम, सच जानकर आप करेंगे नमन

हर राजबंदी को एक वकील करके अपना केस फाइल करने की छूट होती है। वह एक वकील थे, उन्हें पता था कि जेल से छूटने के लिए कानून का किस तरह से इस्तेमाल किया जाना चाहिए । उनको 50 साल का आजीवन कारावास सुना दिया गया था। तब वो 28 साल के ही थे।

SK Gautam
Published on: 25 Feb 2021 11:10 AM IST
स्वातंत्र्यवीर सावरकरः जिनके इस काम पर फैला है भ्रम, सच जानकर आप करेंगे नमन
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स्वातंत्र्यवीर सावरकरः जिनके इस काम पर फैला है भ्रम, सच जानकर आप करेंगे नमन

Yogesh Mishra

योगेश मिश्र

(Yogesh Mishra)

सावरकर जी को लेकर बहुत बड़ा भ्रम फैलाया जाता है। बताया जाता है उन्होंने मर्सी पिटीशन फाइल कर माफी मांगी थी। पर इस बात का मतलब यह नहीं जो मुट्ठीभर लोग लगाते हैं।

पिटीशन भेजने को तो खुद गांधी ने कहा था

हर राजबंदी को एक वकील करके अपना केस फाइल करने की छूट होती है। वह एक वकील थे, उन्हें पता था कि जेल से छूटने के लिए कानून का किस तरह से इस्तेमाल किया जाना चाहिए । उनको 50 साल का आजीवन कारावास सुना दिया गया था। तब वो 28 साल के ही थे। सजा काटने के बाद तो वह 78 साल के हो जाते। देश की आजादी की लड़ाई में योगदान दे पाने का उनका सपना अधूरा रह जाता। वह चाहते थे कि किसी तरह जेल से छूटकर देश के लिए कुछ किया जाए।

Mahatma Gandhi

नतीजतन, 1920 में उनके छोटे भाई नारायण ने महात्मा गांधी से बात की और कहा कि आप पैरवी कीजिए कि कैसे भी ये छूट जाएं। गांधी जी ने खुद कहा था कि आप बोलो सावरकर को कि वो अंग्रेज सरकार को एक पिटीशन भेजें । मैं उसकी सिफारिश करूंगा। गांधी ने लिखा था कि सावरकर मेरे साथ ही शांति के रास्ते पर चलकर काम करेंगे, इनको आप रिहा कर दीजिए।

पेंशन क्यो मिली

एक सवाल यह भी बुद्धि पर जीने वालों की तरफ़ से उठाया जाता है कि आख़िर सावरकर जी को अंग्रेजों से पेंशन क्यों मिलती थी? उत्तर यह है कि जेल से रिहा होने के बाद सावरकर जी को रत्नागिरी में ही रहने को कहा गया था। अंग्रेज उन पर नजर रखते थे, उनकी सारी डिग्रियाँ और संपत्ति जब्त कर ली गई थीं। ऐसे राज बंदियों को जिन्हें कंडीशनल रिलीज मिलती थी, उन सभी को पेंशन दी जाती थी। क्योंकि उस समय अंग्रेजों का यह नियम था कि हम आपको काम करने की छूट नहीं देंगे, आपकी देखभाल हम करेंगे।

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मिथ का पर्दाफाश

'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम द फॉरगॉटन पास्टी' के लेखक विक्रम संपथ ने भी अपनी किताब लिखते समय सावरकर जी से जुड़े 40 हज़ार पेज के दस्तावेज़ों का अध्ययन किया था। यह किताब वीर सावरकर के बारे में कई ऐसे तथ्य उजागर करती है जो हमें नहीं पता हैं। जिनके आधार पर हमने सावरकर को लेकर तमाम मिथ बना लिये हैं। ब्रिटिश हुकूमत द्वारा सबसे ज़्यादा यातना झेलने वाले वह स्वतंत्रता सेनानी थे।

Freedom fighter Veer Savarkar-5

रानी विक्टोरिया की शोक सभा का विरोध किया

वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें ? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है ?

वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ..।

विदेशी वस्त्रों की पहली होली जलाई

विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी। सावरकर पहले भारतीय थे, जिनको विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रुपये जुरमाना किया गया। इसके विरोध में हड़ताल हुई।

तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र 'केसरी' में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी। इस घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले। 11 जुलाई, 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया।

वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफ़ादार होने की शपथ नहीं ली। इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नहीं दिया गया।

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पहला स्वतंत्रता संग्राम सिद्ध किया

वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सिद्ध कर दिया। इस पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था। इस पुस्तक को विदेशों में छापा गया। एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी। भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह गीता थी।

वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई, 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँचते इससे पहले दाताराम में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

इनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नहीं मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया।

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इन मामलों में सावरकर पहले थे

वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी। सजा सुनते ही हंसकर बोले - 'चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया।"

सावरकर ने काला पानी की सज़ा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आज़ादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला। इन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखीं और 6000 पंक्तियाँ याद रखीं।

वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आज़ादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा। हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि :

"आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका,

पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः।

अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभूमि है, जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भूमि है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है..! (हिन्दू की इस परिभाषा को सभी स्वीकार नहीं करते। )

सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा । आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने महात्मा गाँधी की हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा। पर आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया। देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था।

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मरणोपरांत संसद में लगी मूर्ति

26 फरवरी, 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नहीं थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था।

हालाँकि मरणोपरांत 26 फरवरी, 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था.। वीर सावरकर के चित्र का अनावरण राष्ट्रपति अबुल कलाम आज़ाद ने किया।

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