गांधीजी का प्यार थीं ये महिला: बचपन में हुईं जुदा, फिर भी मरते दम तक दिया साथ

Ashiki
Published on: 22 Feb 2020 7:55 AM GMT
गांधीजी का प्यार थीं ये महिला: बचपन में हुईं जुदा, फिर भी मरते दम तक दिया साथ
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लखनऊ: गांधी जी का एक ऐसा साथी, एक ऐसा हमसफर, जिसने पल-पल उनके कदम से कदम मिलाए। चाहे जेल की यातनाएं सहना हो, गिरफ्तारी देनी हो या महिलाओं को आंदोलनों में साथ लाना हो। गांधीजी के उस साथी ने हमेशा उनका साथ देने की भरपूर कोशिश की। हम बात कर रहे हैं महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी की। कस्तूरबा को लोग बा नाम से भी जानते हैं।

यरवदा जेल की कहानी

महज 13 साल की उम्र में ही शादी होने के बाद केवल 3 साल तक बापू के साथ रहीं। उन्हें गृहस्थ जीवन का सुख कम ही मिला। 1888 में गांधीजी इंग्लैंड चले गए। फिर वहां से कुछ दिन बाद आए तो अफ्रीका चले गए। इस तरह से 12 साल बाद जब गांधी जी देश वापस आए तो उनकी अहिंसा वाली लड़ाइयों में बा भी साथ हो लीं। बापू कोई भी उपवास रखते तो बा भी रखतीं। बापू जेल जाते तो बा भी जेल जातीं। 1932 में जब यरवदा जेल में बापू ने उपवास शुरू कर दिया तो साबरमती जेल में बंद बा व्याकुल हो गईं। तब उन्हें भी यरवदा जेल भेजा गया।

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विवाह कानून के लिए खूब लड़ीं बा

साल 1913 में अंग्रेज विवाह संबंधी कानून लाए। उसके अंतर्गत यह था कि जिन विवाहों का पंजीकरण नहीं होगा वह अवैध माने जाएंगे। इस पर गांधी जी ने सत्याग्रह शुरू कर दिया। उन्होंने महिलाओं का आवाह्न किया। शामिल महिलाओं का बा ने ही नेतृत्व किया और कई महिलाओं के साथ गिरफ्तार हो गईं। जेल में खाना अच्छा ना मिलने की वजह से धीरे-धीरे करके उनका शरीर कमजोर होता गया।

चंपारण में कस्तूरबा बनीं शिक्षिका

चंपारण सत्याग्रह में वह बापू के साथ ही उन्होंने घूम-घूम कर महिलाओं को जागरूक किया, बच्चों को पढ़ाया। वह और बापू एक छप्पर तान कर रहा करते थे। गोरों ने उस छप्पर में आग लगवा दी। उसी में कस्तूरबा गरीब बच्चों को पढ़ाया करती थीं। छप्पर जल जाने पर रातों-रात कस्तूरबा ने दूसरी झोपड़ी तैयार कर ली।

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1939 का संघर्ष

राजकोट के ठाकुर ने राजा को कुछ अधिकार देने की बात कही थी लेकिन बाद में वह मुकर गए। इसे जनता में विरोध की भावना आ गई। गांधीजी भी लोगों को साथ लिए और सत्याग्रह शुरू कर दिया। जब कस्तूरबा को पता चला कि उनके जन्म स्थान राजकोट में ही इतना बड़ा सत्याग्रह चल रहा है तो वह भी राजकोट पहुंच गईं। सत्याग्रह में उनके शामिल होने से पहले ही उन्हें नजरबंद कर लिया गया और दूर किसी राजमहल में रखा गया। फिर उनसे यह बताया गया कि वह चाहें तो बापू से मिल सकती हैं। इसके लिए उन्हें कहीं दूर ले जाकर छोड़ दिया गया। जब बापू को यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि उन्हें राजकोट जेल में बंद किया जाए न कि ऐसे छोड़ा जाए। सरकार के पांव हिल गए। फिर कस्तूरबा को जेल में बंद किया गया और अगले दिन बाइज्जत छोड़ा गया।

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...कुछ यूं अलविदा कह गई थीं कस्तूरबा

1942 में जब बापू गिरफ्तार कर लिए गए तो महाराष्ट्र की शिवाजी पार्क में, जहां बापू भाषण दिया करते थे वहां कस्तूरबा ने भी भाषण देने प्रण किया। उनके शिवाजी पार्क पर पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वह पहले से ही अस्वस्थ चल रही थीं। 2 दिन बाद उन्हें पुणे के आगा खां महल भेज दिया गया, जहां बापू पहले से कैद थे। वहां बा की तबीयत धीरे-धीरे ढलती गई और 22 फरवरी 1944 को उन्होंने देश को अलविदा कह दिया।

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