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दांडी मार्च: एक ऐसी यात्रा जिसने लिख दी बदलाव की गाथा, जानिए इतिहास
आज दांडी यात्रा की 91 वीं वर्षगांठ है। भारत की स्वतंत्रता के लिए कई सत्याग्रह और आंदोलन हुए, लेकिन 12 मार्च की तारीख भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में बहुत अहम तारीख है।
नई दिल्ली: आज दांडी यात्रा की 91 वीं वर्षगांठ है। भारत की स्वतंत्रता के लिए कई सत्याग्रह और आंदोलन हुए, लेकिन 12 मार्च की तारीख भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में बहुत अहम तारीख है। आज ही के दिन महात्मा गांधी ने भारत की आजादी के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन का आगाज करते हुए दांडी यात्रा की शुरुआत की थी। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से शुरू हुई इस यात्रा का उद्देश्य इसके अंत में नमक कानून को तोड़ना था जो अंग्रेजों के खिलाफ देश भर में विरोध का एक बड़ा संकेत था।
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एक सुनियोजित आंदोलन
यह वाकया 12 मार्च 1930 का है। महात्मा गांधी ने नमक विरोधी कानून के विरोध में दांडी मार्च अर्थात् दांडी यात्रा निकाली थी। इस यात्रा की पूरी तरह से योजना बनाई गई थी। इसमें कांग्रेस ने सभी नेताओं की भूमिकाएं तय गई थीं। यह भी तय किया गया था कि अगर अंग्रेजों ने गिरफ्तारी की तो कौन से कौन से नेता यात्रा को संभालेंगे। इस यात्रा को भारी तादात में जन समर्थन मिला और जैसे जैसे यात्रा आगे बढ़ती गई बहुत सारे लोग जुड़ते चले गए।
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25 दिन तक चली थी यह यात्रा
यह यात्रा अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक 78 व्यक्तियों के साथ पैदल निकाली गई। गांधीजी अपने साथियों के साथ 240 मील यानी 386 कोलीमीटर लंबी यात्रा कर नवसारी के एक छोटे से गांव दांडी पहुंचे जहां समुद्री तट पर पहुंचने पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से नमक कानून बनाकर नमक कानून तोड़ा। 25 दिन तक चली इस यात्रा में बापू रोज 16 किलोमीटर की यात्रा करते थे, जिसके बाद वे 6 अप्रैल को दांडी पहुंचे थे। गांधी जी ने 6 अप्रैल, 1930 को कच्छ भूमि में समुद्रतल से एक मुट्ठी नमक उठाया था। इस मुट्ठीभर नमक से गांधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत को जितना सशक्त संदेश दिया था, उतना मजबूत संदेश शायद शब्दों से नहीं दिया जा सकता था।
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अहिंसा ने तोड़ा अंग्रेजी हुकूमत का गुरूर
दांडी मार्च खत्म होने के बाद चल असहयोग आंदोलन के तहत बड़े पैमाने पर गिरफतारियां हुईं। कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के सभी नेता गिरफ्तार होते रहे, लेकिन आंदोलनकारियों और उनके समर्थकों ने किसी तरह से हिंसा का सहारा नहीं लिया। कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियां भी खाई थीं परंतु पीछे नहीं मुड़े थे।
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भारतीय स्वतंत्रता की नींव
ये आंदोलन पूरे एक साल तक चला और 1931 को गांधी-इर्विन के बीच हुए समझौते के साथ खत्म हो गया। इसके बाद अंग्रेजों ने भारत को स्वायत्तता देने के बारे में विचार करना शुरू कर दिया था। 1935 के कानून में इसकी झलक भी देखने को मिली और सविनय अवज्ञा की सफलता के विश्वास को लेकर गांधी जी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया जिसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।