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क्या आप जानते हैं! 72 साल पहले जम्मू-कश्मीर-भारत विलय की पूरी कहानी
राजा हरि सिंह ने कबायली आक्रमण से घबराकर भारत से मदद की गुहार लगाई। ऐसी स्थिति में भारत ने भी बिना विलय हुए मदद करने से साफ इनकार कर दिया।
श्रीनगर: जब से भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ है, तब से जम्मू-कश्मीर को लेकर दोनों देशों में जंग जारी है। साल 1947 में आजाद होने के बाद से ही जम्मू-कश्मीर में माहौल काफी तनावपूर्ण रहा। आज भी यहां के हालात तनावपूर्ण हैं, जिसकी वजह से सैनिकों की संख्या में लगातार इजाफा होता रहा है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि 72 साल पहले यानि साल 1947 में भारत में कश्मीर का विलय कैसे हुआ था?
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15 अगस्त 1947 यानि भारत के आजाद होने से पहले देश के तकरीबन 500 से ज्यादा रियासतें थी। इनमें से तीन देशी रियासतों ने भारत का हाथ नहीं थामा था, लेकिन बाकी सब भारत के साथ थे और उन्होंने भारत में विलय कर लिया। जिन तीन रियासतों ने भारत में विलय नहीं किया था, वो थीं जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ने दिया था ये हक
जब आजादी की बात हुई तो भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत ये हक रियासतों के शासकों के पास था कि वह चुन सकें कि उनको भारत का हिस्सा बनना है या फिर पाकिस्तान का। ऐसे में जूनागढ़ और हैदराबाद बाद में भारत में शामिल हो गए लेकिन असली फैसला कश्मीर में लिया जाना था। कश्मीर रियासत की करीब तीन चौथाई आबादी मुस्लिम थी, लेकिन राजा हरि सिंह हिंदू थे और वो बेहद धीमी गति से विचार कर रहे थे।
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ऐसे में 15 अगस्त 1947 को भी राजा हरि सिंह यह तय नहीं कर पाये कि उनको किसके साथ जाना है। 24 अक्टूबर 1947 का दिन था, जब कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित हजारों कबायली पठानों ने घुसपैठ शुरू कर दी। इस दौरान काफी मार-काट भी हुई और मारपीट करते हुए कबायली पठानों ने राजधानी श्रीनगर की ओर बढ्न शुरू किया। दरअसल पाकिस्तान मन बना चुका था कि वह कश्मीर पर कब्जा करेगा।
कब्जा करने की हो रही थी तैयारी
पाकिस्तान लगातार कब्जा करने की योजना बना रहा था और उसके तहत काम कर रहा था। उधर, राजा हरि सिंह को अब अपनी रियासत की चिंता होने लगी। ऐसे में 25 अक्टूबर 1947 को वह श्रीनगर छोड़कर भाग गए। ऐसे में उनको जम्मू स्थित महल पहुंचा दिया गया।
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राजा हरि सिंह ने कबायली आक्रमण से घबराकर भारत से मदद की गुहार लगाई। ऐसी स्थिति में भारत ने भी बिना विलय हुए मदद करने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद 26 अक्टूबर 1947 को विलय के दस्तावेज पर सरदार पटेल के करीबी और गृह मंत्रालय के सचिव वीपी मेनन ने कश्मीर पहुंचकर राजा हरि सिंह से दस्तखत करवा लिए। इसके बाद 27 अक्टूबर 1947 से जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया।