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भारत को झटका: जल्द नहीं मिलेगी रूसी वैक्सीन, वजह है बेहद खास
रूस ने भले ही वैक्सीन बना ली हो लेकिन रूस के बाहर सबके लिए इसकी उपलब्धता अभी निकट भविष्य में नहीं होने वाली। वैक्सीन का प्रोडक्शन तुरंत शुरू होने की संभवना है।
नई दिल्ली: रूस ने भले ही वैक्सीन बना ली हो लेकिन रूस के बाहर सबके लिए इसकी उपलब्धता अभी निकट भविष्य में नहीं होने वाली। वैक्सीन का प्रोडक्शन तुरंत शुरू होने की संभवना है। गमालेया इंस्टिट्यूट के अलावा इस वैक्सीन का प्रोडक्शन रूस के एक बड़े बिजनेस हाउस सिस्टेमा द्वारा किये जाने की उम्मीद है। सिस्टेमा ने एक बयान में कहा है कि वैक्सीन का पहला बैच तैयार है और इनको सबसे पहले रूसी प्रान्तों में भेजा जायेगा और डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को इसकी खुराक दी जायेगी।
सिस्टेमा की क्षमता साल भर में 15 लाख खुराक बनाने की है जो दुनिया में तत्काल अरबों खुराक की मांग के सामने कुछ भी नहीं है। ऐसे में रूस द्वारा अन्य देशों की मांग को पूरा किया जाना बेहद मुश्किल है। हालाँकि रूस का कहना है कि उसने 50 करोड़ खुराक बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय करार किये हुए हैं। रूस के अनुसार उसे विदेशों से एक अरब खुराक सप्लाई के आग्रह प्राप्त हुए हैं।
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भारत में कब मिलेगी
अगर रूस वैक्सीन की खुराक बनाए की क्षमता को बहुत बढ़ा भी देता है तबभी भारत में इसकी उपलब्धता होने में काफी समय लग जाएगा। भारत में वैक्सीन के प्रयोग की मंजूरी दो तरह से होती है। भारत के नियामक सिस्टम के तहत किसी भी अन्य देश में डेवलप की गयी कोई भी दवा या वैक्सीन को भारत में इस्तेमाल की अनुमति दिए जाने से पहले स्थानीय जनता पर एडवांस चरण के मानव ट्रायल होना जरूरी है। ऐसा इसलिए कि किसी भी वैक्सीन का अलग अलग जनसमूहों पर अलग अलग इम्यून रिस्पांस होता है।
इसका मतलब ये हुआ कि रूसी डेवलपर्स या भारत में उनके पार्टनर्स को भारत में वालंटियर्स पर दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल करने होंगे। ये प्रक्रिया हाल में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और आस्ट्रा ज़ेनेका द्वारा डेवलप की गयी वैक्सीन पर भारत में अपनाई गयी थी। पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया का इस वैक्सीन के निर्माण के लिए डेवलपर्स के साथ करार हुआ है। सीरम इंस्टिट्यूट को हाल ही में नियामक संस्था से दूसरे और तीसरे चरण के मानव ट्रायल करने की इजाजत मिली है। अगर ये टेस्ट संतोषजनक होते हैं तभी ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन के भारतीय लोगों पर इस्तेमाल की अनुमति दी जायेगी।
रूसी वैक्सीन की बात करें तो अगर सुपर फ़ास्ट गति से भी काम हो तो भारत में दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल में कम से कम दो-तीन महीने लग जायेंगे। इसके पहले तो किसी दवा कंपनी को नियामक संस्था के पार आवेदन करना होगा और फिलहाल किसी ने अभी आवेदन नहीं किया है।
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रूस के दावे पर सवाल
रूस के गामालेया इंस्टीट्यूट और रक्षा मंत्रालय की साझेदारी में तैयार की गई इस वैक्सीन को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। दरअसल, इस वैक्सीन का इंसानी ट्रायल अभी तक पूरा नहीं हुआ है और उससे पहले ही इसे इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैक्सीन की प्रक्रिया में तेजी बरतने के लिए रूस को चेताया भी था। अमेरिकी विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फाउची भी तेजी को लेकर चिंता व्यक्त कर चुके हैं।
एडेनोवायरस के डीएनए पर आधारित
रूस की वैक्सीन सार्स कोव-2 जैसे सामान्य सर्दी जुकाम फैलाने वाले एडेनोवायरस के डीएनए पर आधारित है। यह वैक्सीन वायरस के छोटे-छोटे हिस्से को इस्तेमाल कर शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।
वैक्सीन तैयार करने वाले गामालेया इंस्टीट्यूट के निदेशक एलेक्जेंडर गिंत्सबर्ग ने कहा है कि वैक्सीन में मौजूदा कोरोना वायरस शरीर में जाने पर बढ़ते नहीं हैं जिससे इंसानी शरीर को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता।
ट्रायल के नतीजे
अभी तक रूस ने इस वैक्सीन के इंसानी ट्रायल के सिर्फ पहले चरण के नतीजे जारी किए हैं। इनमें दावा किया गया है कि यह वैक्सीन रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करती है। जुलाई में रूस के रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि ट्रायल में भाग लेने वाले किसी भी वॉलेंटियर ने वैक्सीन को लेकर कोई शिकायत नहीं की है और उनमें इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं देखा गया है। ट्रायल का पहला चरण जून में शुरू हुआ था।
दो तरीकों से दी गई खुराक
ट्रायल के पहले चरण में शामिल 76 वॉलेंटियर में से अधिकतर रूसी सेना का हिस्सा हैं। इनमें से आधों को इंजेक्शन दिया गया और बाकियों को पानी में घुल सकने वाले पाउडर के रूप में वैक्सीन दी गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वैक्सीन के दूसरे चरण के ट्रायल 13 जुलाई को शुरू हुए थे। इस महीने की शुरुआत में रूसी मीडिया में खबरें आईं कि गामालेया इंस्टीट्यूट ने इंसानी ट्रायल पूरा कर लिया है। हालांकि, इन रिपोर्ट्स में यह नहीं बताया गया था कि क्या इंसानी ट्रायल के तीनों चरण पूरे हो चुके हैं या सिर्फ दूसरा चरण पूरा हुआ है। आमतौर पर तीसरा चरण पूरा होने में कई महीनों का समय लगता है।
रूस की उप प्रधानमंत्री तातयाना गोलिकोवा ने कहा है कि सितंबर तक इस वैक्सीन का औद्योगिक उत्पादन शुरू हो जाएगा। वहीं रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि मेडिकल कर्मियों को इस महीने वैक्सीन की खुराक दी जा सकती है और अक्टूबर में बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन अभियान चलाया जाएगा। इसके तहत सबसे पहले डॉक्टरों और शिक्षकों को इसकी खुराक दी जाएगी।
रूस ने अभी तक इस वैक्सीन की कीमत का खुलासा नहीं किया है। ध्यान देने वाली है कि रूस ने पहले कहा था कि वह नियामकीय मंजूरी मिलने के बाद तीसरे चरण के ट्रायल शुरू करेगा। इस चरण में हजारों लोगों को वैक्सीन की खुराक देकर उसका असर देखा जाता है।
वैक्सीन को लेकर चिंता क्यों
रूस ने वैक्सीन बनाने की दौड़ में आगे चल रही कंपनियों को पछाड़ते हुए जिस गति से इसे तैयार किया है, उसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि हो सकता है कि तय प्रकिया को नजरअंदाज किया गया हो, जिससे लोगों की जान को खतरा हो सकता है। वो इसे लेकर भी चिंतित हैं कि इंसानी ट्रायल में महीनों या सालों का समय लगता है, लेकिन रूस ने दो महीनों में कैसे पूरा कर लिया।
जॉर्जटाउन यूनवर्सिटी में जन स्वास्थ्य कानून विशेषज्ञ लॉरेंस गॉस्टिन का कहना है, - मुझे चिंता है कि रूस ने कुछ प्रकियाओं को नजरअंदाज किया है। इससे जो वैक्सीन आ रही है वो न तो इच्छित नतीजे देगी और न ही लोगों के लिए सुरक्षित होगी। वैक्सीन ऐसे काम नहीं करती। सबसे पहले ट्रायल पूरे होने चाहिए।" डॉक्टर फाउची भी कह चुके हैं कि बिना पूरे ट्रायल के लाई गई वैक्सीन लोगों के लिए खतरा पैदा कर सकती है।
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कई देशों ने दिखाई रुचि
रूस के उद्योग और व्यापार मंत्री डेनिस मेंतरूव ने कहा था कि इस साल हर महीने कई हजार खुराक का उत्पादन किया जाएगा। अगले साल हर महीने कई लाख खुराकों का उत्पादन होगा। वहीं रूस के प्रत्यक्ष निवेश फंड के प्रमुख किरिल दिमित्रेव ने कहा कि 20 से ज्यादा देशों ने इस वैक्सीन के उत्पादन में रुचि दिखाई है। उन्होंने कहा कि भारत और ब्राजील समेत कई देश इस वैक्सीन को उम्मीद की नजर से देख रहे हैं।
फिलिपीन्स के राष्ट्रपति दुतर्ते ने तो कहा है वैक्सीन का परीक्षण उनपर किया जाए। उन्होंने कहा है कि उनपर सार्वजानिक स्थाप पर जनता के सामने वैक्सीन की खुराक दी जाए। दुतर्ते ने कहा है कि वे इस वैक्सीन के मामले में रूस के साथ हैं।
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