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Independence Day 2023: बोल कि लब हम आज़ाद हैं !
Independence Day 2023: पूरी दुनिया में हम फैले हुए हैं, कोई ऐसा देश नहीं जहां हम नहीं हैं। हमारी अनोखी पहचान हैं क्योंकि हम बदले नहीं हैं, हम वही हैं। हम बहुत कुछ जानते हैं, जरूरत से ज्यादा जानते हैं और हम आजाद हैं।
Independence Day 2023: आज़ादी का पर्व है। 76 साल पूरे हुए हमें आजाद हुए। एक लंबा समय है, एक औसत भारतीय की जीवन प्रत्याशा से भी ज्यादा। इन बरसों में बहुत कुछ बदल गया है। हम चाँद तक पहुँचने वाले हैं। पूरी दुनिया में हम फैले हुए हैं, कोई ऐसा देश नहीं जहां हम नहीं हैं। हमारी अनोखी पहचान हैं क्योंकि हम बदले नहीं हैं, हम वही हैं। हम बहुत कुछ जानते हैं, जरूरत से ज्यादा जानते हैं और हम आजाद हैं। हम अपनी आज़ादी की फसल को खूब लहलहा रहे हैं। हमें कोई सिखाये नहीं, हम सिखेसिखाये हैं।
अब देखिये, सरकारें 75 साल से सड़क सुरक्षा के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए पखवाड़ा, सप्ताह और महीना मना रही हैं । लेकिन हम जागरूक होने को राज़ी ही नहीं क्यों कि हमें सब पता है। असली आज़ादी का मंजर सड़कों पर बेहतरीनी से पसरा है। सड़क ही क्यों, किसी भी पब्लिक प्लेस में चले जाइये। आज़ादी ही आज़ादी है। आपको कुछ भी कर देने, किसी के हाथों बेइज्जत होने, किसी को बेईज्जत करने, मरने-मारने सब कुछ की आज़ादी है। आज़ाद वह भी हैं जो रॉंग साइड में खूब इत्मीनान से ड्राइविंग करते हैं। बस, ट्रक, कार, ईरिक्शा, बाइक सब आज़ाद हैं। जान क्या है, सब ऊपरवाले की देन है, जब चाहेगा उठा लेगा। हमारे पास काम नहीं है । लेकिन टाइम की कमी है। तेल भी महंगा है। सो दोनों को बचाने की राष्ट्रभावना के चलते एक्स्ट्रा आधा-एक किलोमीटर जा कर सही रास्ता नहीं पकड़ते। आप वन वे बनाने को आज़ाद, हम न मानने को आज़ाद।
चौराहों के पास नो पार्किंग, नो गाड़ी का आदेश निकालने, ऐलानिया बोर्ड लगाने की पूरी आजादी पुलिस और म्यूनिसपैलिटी को है । जिसे वह पूरी ईमानदारी से करती रहती है। ई रिक्शा, ऑटो, टेम्पो, बस, ठेले, खोमचे वाले भी आज़ाद हैं। वो आज़ादी से मनमुताबिक ऐन वहीं खड़े रहते हैं। वह भी आज़ाद, होमगार्ड और पुलिसवाले भी आज़ाद। आज़ादी का आलम यह है कि पुलिस, अफसर, नेता नो पार्किंग से पूरी तरह आज़ाद हैं। कभी कभार कोई कभार कोई क्रांतिकारी इनकी गाड़ी का चालान कर दे तो खबर बन जाता है। ज्यादा क्रांति करे तो नौकरी से आज़ादी भी तय है।
न सड़क किसी के बाप की, न फुटपाथ किसी के बाप का
फुटपाथ बने हैं, लेकिन हम उन्हीं पर दुकान लगाने, कब्जा करने को आजाद हैं, पैदल चलने वाले सड़क पर चलने को आजाद हैं। गाड़ी वाले हमें टक्कर मरने को आजाद। न सड़क किसी के बाप की, न फुटपाथ किसी के बाप का। आप साईकिल पाथ बनाने को आजाद हम उस पर ठेला लगा देने, पार्किंग बना देने को आजाद। बड़े चले हमें यूरोपियन बनाने, देखते रहिये हम यूरोप में एक दिन यही कर दिखायेंगे। हम उनको भी असली आज़ादी सिखा देंगे। हम सड़क पर कुत्ता टहलायेंगे अब वो आपके घर के सामने पॉटी करे तो हम क्या करें? कुत्ते की भी तो कुछ आज़ादी है कि नहीं?
आप ट्रेन में स्लीपर बर्थ बुक करके यात्रा करने को आज़ाद तो बिना रिजर्वेशन और बिना टिकट चलने वाले भी जहाँ मन चाहे वहां लेटने-बैठने को आजाद। टीटी और पुलिसवाले भी आज़ाद क्योंकि सब अपने ही भाई हैं। पैंट्री कार वाले भी आज़ाद फिक्स्ड रेट की ऐसी तैसी करके मनमर्जी के दाम पर समान बेचने को। चायवाले भी आज़ाद, चाय के नाम पर बर्तन की धोवन बेचने को। आजाद वो ट्रेन यात्री भी जो गुटका खा कर वाश बेसिनों में जी भर कर थूकते हैं और नाली चोक हो जाने पर दूसरों को कोसते हैं। आजाद सफाई वाले भी जो रास्ते भर नज़र नहीं आएंगे। हमें कहाँ थूकना है और कहाँ नहीं, हमें कोई क्या सिखाएगा, हम सब जानते हैं, हमें पता है कि अपने घर में बेसिन में नहीं थूकना है। आप प्लेटफार्मों में, ट्रेनों में लिख कर - बोल कर सिखाते रहिये, हम न पढ़ते हैं न सुनते हैं, हमें सब पता है। आज़ादी ही है कि हम आज तक राष्ट्रभाषा नहीं बना पाये। अंग्रेज़ी को हिंदी से प्रतिस्थापित नहीं कर पाये।
आप बढ़िया बढ़िया ट्रेनें चलाने को आज़ाद तो हम उनपर पत्थर मरने को आजाद। आप परीक्षाएं करवाने को आजाद और हम परीक्षाएं देने जाने के लिए ट्रेनों में कब्जा करने को आजाद। आज़ाद हैं हम जातिवादी राजनीति करने के लिए। आज़ाद हैं हम विपक्ष व पक्ष की राजनीति में मुद्दे, चेहरे व स्टैंड बदल लेने के लिए। किसी भी प्रतीक पुरुष पर कुछ भी आरोप चस्पा कर देने के लिए ।
दूसरों की खिल्ली उड़ाने और मन भर कर अपनी उड़वाने की भी आज़ादी
आज़ादी है व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर कुछ भी अंडबंड परोसने की। अपना मेन्टल लेवल जगजाहिर करने, दूसरों की खिल्ली उड़ाने और मन भर कर अपनी उड़वाने की भी आज़ादी। आज़ादी है चौबीसों घण्टे मैसेज फारवर्ड करने की, रील - स्टोरी बनाने और नकलची बंदर बनने की। हमें कोई क्या सिखाएगा, हम रील के चक्कर में नदी में बह जाने, ट्रेन से कट जाने और पहाड़ से गिरने को तैयार हैं, हम आजाद हैं, हमें न सीख दीजिये। हमें सड़क पर हाफ की हाफ पैंट पहन कर घूमने की भी आज़ादी है। क्लबों में धोती कुर्ता वालों को रोकने की भी आज़ादी है।
आज़ादी का मंजर कहाँ कहाँ नहीं देखें। सरकारी जमीन, तालाब, जंगल, फुटपाथ, सड़क - जहां हाथ रखिये वहां कब्जियाने की आज़ादी है। सड़क पर मज़ार ऐर मंदिर बनाने की आज़ादी है। हमको जंगल कब्जाने की आज़ादी है। आप काग़ज़ पर पेड़ लगाओ। हमें पेड़ कटवाने की आज़ादी है। तो जानवरों को इंसानों के बीच आ जाने और जन गंवाने की आज़ादी। हमें खूबसूरत पहाड़ों में जाने की आज़ादी और वहां कूड़े-कचरे के रूप में अपनी पहचान छोड़ आने की आज़ादी। हमें टूरिज्म न सिखाइये , हमें सब पता है। हजारों साल पुराने इमारतों, स्मारकों में हमें ‘आई लव यू’ लिखने की आज़ादी। हमें पता है अपना नाम अमर कैसे बनायें, हमें न सिखाइए।
हमें सवाल पूछने की खूब आज़ादी है । लेकिन जवाब न देने की, जवाबदेह न बनने की उससे भी डबल आज़ादी है। अदालतों को टिप्पणी करने, आदेश निर्देश देने की आज़ादी तो विभागों और अफसरों को आदेश निर्देश में लूपहोल निकालने में पूरी ऊर्जा लगाने की आज़ादी। टीचर को सवाल पूछने की आज़ादी तो हमें नक़ल करने की आज़ादी। आपको एमबीबीएस बनाने की आज़ादी तो हमें मुन्ना भाई बनने की आज़ादी।
बांग्ला भाषी ने घर का कूड़ा कचरा बीनने की जिम्मेदारी संभाली
आज़ादी की सीमाओं की ही देन है कि आज जगह जगह बांग्ला भाषी बंधु हैं, जो अड़ोस पड़ोस के किसी भी देश के हो सकते हैं। उन्होंने हमारे आपके घर का कूड़ा कचरा बीनने की पूरी जिम्मेदारी बड़ी शाइस्तगी से संभाल रखी है। उन्होंने हमको हमारे कूड़े से आज़ाद कर दिया। यही नहीं, वे लज़ीज़ कबाब पराठे बनाने का भी दायित्व उठाये हुए हैं। ये बात दूसरी है कि वो यदाकदा कभी एनआरसी या किसी यात्रा को लेकर फसाद करके अपनी आजादी का परचम लहरा देते हैं। लेकिन फिर आज़ाद बुलडोजर वाला नतीजा भी भुगतते हैं। आज़ादी ही आज़ादी।
वाह आज़ादी। आजाद पंछी को क्या कोई कुछ सिखा पाया है? सैकड़ों साल बाद तो हम आजाद हुए हैं, अब तो जी भर कर जी लेने दो। जब देखो सिखाते रहते हो – ऐसे चलो, वैसे न चलो, यहाँ न थूको वहां न कूड़ा फेंको, ऐसे बैठो, वैसे हाथ धो, खेतों में लोटा ले कर न जाओ और न जाने क्या क्या। हमें जागरूक करते रहिये, उम्मीद पर दुनिया टिकी है, शायद हम भी सीख जाएँ।
आज़ादी का पर्व मानिए, झंडा फहराइये, देशभक्ति के गाने बजाइए, गालों पर तिरंगा पेंट करवाईए, लेकिन इतना जरूर जान लीजिये कि आज़ादी बहुत बड़ी नेमत है। जिसे नहीं मिलती वो तरसते हैं। जिनको मिल जाती है उनपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी इसे संभालने की होती है। नहीं वकत समझेंगे तो खत्म होते, सीमित होते और छिनते देर नहीं लगती। आज़ादी का पर्व मनाइए और अपने को खुशकिस्मत मानिए। जो नहीं समझेंगे उनको पछताना ही पड़ेगा। आज़ादी को अनुशासन का विपरीत न समझिये। अनुशासित नहीं थे तभी आज़ादी गँवा बैठे थे। अब तो संभल जाइये। ऐसा न करिए कि दुनियावाले हमें देख कर डरने लगें कि “देखो, आजाद आ गया, अब यहाँ भी … कर देगा।“ दीवारों पर नाम कुरेदने से कुछ नहीं होने वाला। खुद ही समझ जाइये। आपको कुछ अच्छा करने की भी भरपूर आज़ादी है। आज़ादी के रंगो का इन्द्रधनुष बनाइये। अच्छा ही लगेगा।
( लेखक पत्रकार हैं । दैनिक पूर्वोदय से साभार।)