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कोरोना वैक्सीन: एडवांस में बुक हैं अरबों खुराकें, क्या सबको लगेगा टीका
भारत ने 1.90 अरब डोज खरीदने के करार किये हैं जो कि यूरोपीय यूनियन की 1.2 अरब डोज और अमेरिका की 1 अरब डोज से अधिक है लेकिन अमेरिका और यूरोपीय यूनियन अपनी संभावित खुराक खरीद के कारण आगे हैं।
नील मणि लाल
लखनऊ: कोरोना की वैक्सीनों की बड़े पैमाने पर एडवांस बुकिंग कर ली गयी है। भारत ने ही अलग अलग वैसीनों की कोई 190 करोड़ खुराकें बुक कर ली हैं। चूँकि ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना की वैक्सीन की दो खुराकें लगानी होंगे सो इस लिहाज से भारत को करीब 260 करोड़ डोज़ की जरूरत होगी। अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के 'लॉन्च एंड स्केल स्पीडोमीटर इनिशिएटिव' के मुताबिक अब तक 960 करोड़ वैक्सीन डोज की बुकिंग हो चुकी है। वैक्सीन की एडवांस बुकिंग के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है और इससे आगे अमेरिका और यूरोपियन यूनियन हैं।
भारत ने 1.90 अरब डोज खरीदने के करार किये हैं
भारत ने 1.90 अरब डोज खरीदने के करार किये हैं जो कि यूरोपीय यूनियन की 1.2 अरब डोज और अमेरिका की 1 अरब डोज से अधिक है लेकिन अमेरिका और यूरोपीय यूनियन अपनी संभावित खुराक खरीद के कारण आगे हैं। अमेरिका ने 1.5 अरब से अधिक संभावित डोज खरीदने के लिए हस्ताक्षर किए हैं. वहीं, यूरोपीय यूनियन ने 76 करोड़ से अधिक संभावित डोज खरीदने के लिए हस्ताक्षर किए हैं। अमेरिका 1.5 अरब संभावित डोज खरीद और 1 अरब डोज की बुकिंग के साथ करीब 2.6 अरब डोज के लिए हस्ताक्षर कर चुका है। इससे पता चलता है कि दुनिया का सबसे ताकतवर देश अपनी पूरी आबादी का एक से अधिक बार टीकाकरण कर सकता है।
अन्य देशों की बात करें तो कनाडा ने अपनी 3 करोड़ 80 लाख जनसँख्या के लिए 35 करोड़ 80 डोज़ का प्री आर्डर दे रखा है। यही नहीं, कनाडा का इरादा अभी 5 करोड़ 60 लाख और डोज़ खरीदने का है। यूनाइटेड किंगडम और आस्ट्रेलिया ने अपनी जनसँख्या से 5 गुना ज्यादा डोज़ बुक की हैं।
गरीब देशों का क्या होगा
वैक्सीन की एडवांस बुकिंग की दौड़ में गरीब देश पिछड़ते नजर आ रहे हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि गरीब और विकासशील देशों को वैक्सीन हासिल करने में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में अरबों लोग टीके से महरूम हो सकते हैं। इस बात की संभावना कम है कि कोरोना वायरस की शुरुआती वैक्सीन गरीब देशों तक पहुंच पायेगी।
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जहाँ अमीर देशों ने भरी भरकम ऑर्डर दे दिए हैं वहीं गरीब देश चुपचाप बैठे हैं। उनकी समस्या जायज है। एक तो वैक्सीन खरीदने के लिए बहुत बड़ी रकम चाहिए और दूसरी बात ये कि फाइजर जैसी वैक्सीन के स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए बहुत तामझाम बनाना पड़ेगा। मध्यम आय वाले और गरीब देशों को ऐसी वैक्सीन चाहिए जो उनकी जनसँख्या और हैसियत के अनुकूल हो।
डब्लूएचओ की पहल
कोरोना की किसी भी वैक्सीन का वितरण सभी देशों में समान रूप से हो, इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अप्रैल में ‘कोवैक्स’ केंद्र बनाया था। इस सेंटर से सरकारें, वैज्ञानिक, सामाजिक संस्थायें और निजी क्षेत्र एक साथ जुड़े हैं। जापान और ब्रिटेन जैसे जिन देशों ने वैक्सीन के लिए पहले से ऑर्डर दे रखा है, वे कोवैक्स के सदस्य हैं। ऐसे में हो सकता है कि वे जो वैक्सीन खरीदें, उनमें से कुछ गरीब और विकासशील देशों को मिलें। लेकिन अमेरिका ‘कोवैक्स’ में शामिल नहीं है। अमेरिकी सरकार ने वैक्सीन डेवलपमेंट में 11 अरब डालर लगा रखे हैं। और स्वाभाविक है कि सबसे पहले वो अपने नागरिकों के लिए खुराकें चाहता है।
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क्या है कोवैक्स
वैक्सीन के लिए बने पब्लिक–प्राइवेट पार्टनरशिप ‘गावी’ ने इस साल अप्रैल में घोषणा की थी कि वो कोरोना के लिए ‘कोवैक्स’ अभियान शुरू करेगा। इस अभियान का उद्देश्य है कि सभी देश मिल कर पैसा लगायें, चन्दा एकत्र किया जाए और फिर उसी फंड से एक सर्वसुलभ वैक्सीन ‘कोवैक्स’ के सदस्य देशों में बांटी जाए। कोवैक्स के तहत गरीब देश वैक्सीन की प्रत्येक दो डोज़ के लिए 4 डालर तक की सब्सिडी देंगे ।
पहले ये तय हुआ था कि गरीब देशों को मुफ्त में वैक्सीन मिलेगी लेकिन सितम्बर में ‘गावी’ के बोर्ड ने कॉस्ट शेयरिंग का फार्मूला अपनाने का निर्णय लिया। कोवैक्स को उम्मीद है कि वह 2021 के अंत तक 2 अरब डोज़ खरीद लेगा और सदस्य देशों की बीस फीसदी जनसँख्या का टीकाकरण कर लिया जाएगा।
कोवैक्स में 82 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं और अब तक इस अभियान में 2 अरब डालर का फण्ड जमा हो चुका है। दिक्कत ये है कि अस्सी फीसदी जनसंख्या का क्या होगा इसका जवाब अभी किसी के पास नहीं है। डब्लूएचओ ने कहा है कि सब देशों को सामान रूप से वैक्सीन मिल सके इसके लिए तत्काल 4.3 अरब डालर की दरकार है। ये फण्ड कहाँ से आयेगा ये बहुत बड़ा सवाल है।
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