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भारत को बिडेन से बड़ी उम्मीदें
बिडेन प्रशासन में ज्यादातर लोग बराक ओबामा के कार्यकाल वाले ही हैं सो भारत को वही उम्मीद करनी चाहिए जो ओबामा के समय में मिला था। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अब समय बदल चुका है।
नीलमणि लाल
लखनऊ। अमेरिका के नए प्रेसिडेंट जो बिडेन प्रशासन से भारत को बड़ी उम्मीदें हैं। अमेरिका के साथ 6 अरब डालर के व्यापार की बहाली, वीजा पर लगी बंदिशों को हटाया जाना, पाकिस्तान के खिलाफ सख्ती और चीन से टक्कर में मजबूत मदद ये सब तो चाहिए ही। साथ में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में एंट्री के लिए अमेरिका कि मदद चाहिए, एटमी सप्लायर्स ग्रुप में भी भारत को एंट्री चाहिये।
बिडेन प्रशासन
बिडेन ने अपने चुनाव अभियान में भारत के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रुख ही दिखाया था और वादा किया था कि ट्रम्प प्रशासन के समय लगे सभी प्रतिबन्ध हटा लिए जायेंगे। बिडेन प्रशासन में ज्यादातर लोग बराक ओबामा के कार्यकाल वाले ही हैं सो भारत को वही उम्मीद करनी चाहिए जो ओबामा के समय में मिला था। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अब समय बदल चुका है। कोरोना के कारण स्थितियां नार्मल नहीं हैं, अमेरिकी समाज बहुत बंटा हुआ है, आर्थिक संकट है, अमेरिका में ट्रम्प द्वारा लाया गया राष्ट्रवाद हावी है। ऐसे में बिडेन के लिए ट्रम्प की नीतियों को पूरी तरह पलट पाना मुश्किल है। जब तक कोरोना के साथ आया आर्थिक संकट दूर नहीं हो जाता तबतक आर्थिक मोर्चे पर भारत को बहुत उम्मीदें नहीं हैं।
वीजा का मसला
बिडेन ने अभी तक यही रुख अपनाया है कि वीजा के नियम आसान किये जायेंगे। बिडेन चाहते हैं कि हाई स्किल वाले वीजा की संख्या बढ़ा दी जाये। बिडेन के चुनाव अभियान की वेब साईट में कहा गया था कि विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में डॉक्टरेट करने के लिए अमेरिका छात्रों को तत्काल ग्रीन कार्ड देगा। लेकिन मेरिका में अभी जिस तरह की बेरोजगारी का आलम है उसमें बिडेन के लिए एच१बी वीजा नियमों को आसान नहीं करने का दबाव रहेगा।
व्यापार
डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यापर के मसले पर बहुत सख्त रुख अपना रखा था और भारत को 6 अरब डालर के लाभ रोक दिए थे। ये मसला अब भी लटका हुआ है। बिडेन ने सीमा शुल्क के मसले पर अपनी पोजीशन साफ़ नहीं की है। कोरोना के कारण अमेरिका पर आर्थिक संकट का काला साया है और नए प्रेसिडेंट को इससे अभी बहुत जूझना बाकी है। बिडेन ने ट्रम्प की तरह अमेरिकी कंपनियों के साथ खड़े होने का वादा किया है। सो भारत को बिडेन से व्यापार के मोर्चे पर कोई मदद या नरमी की उम्मीद नजर नहीं आ रही है।
डेमोक्रेट्स भले ही सोशलिस्ट रुख रखते हों लेकिन फ्री ट्रेड अग्रीमेंट यानी एफटीए के मसले पर तत्काल कोई नरमी नहीं दिखने वाली है। इसकी वजह ये है कि भारत श्रम और पर्यावरण सम्बन्धी अमेरिकी मानकों को पूरा करने से बहुत पीछे है और बिडेन भी पहले कह चुके हैं कि वो एफटीए पर पुनर्विचार नहीं करेंगे।
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चीन से टक्कर
अमेरिका और भारत, दोनों के लिए चीन एक बड़ी चिंता का विषय है। भारत-अमेरिका के रिश्तों में चीन का मसला बड़ी भूमिका निभा सकता है। वैसे तो बिडेन और कमला हैरिस सोशलिस्ट विचार रखते हैं सो देखना होगा कि चीन के प्रति उनका क्या रवैया होगा। चीन के रुख से लग रहा है कि वो बिडेन के प्रेसिडेंट बनने से खुश है। वैसे तो बिडेन ने कहा है कि वो मानवाधिकार के मसले पर चीन के खिलाफ हैं। चीन के राष्ट्रपति को बिडेन ‘ठग’ तक कह चुके हैं। ऐसे में ट्रम्प की सख्त एंटी चीन नीतियों को पलट पाना मुमकिन हैं लगता। अब चीन के खिलाफ भारत के साथ बिडेन क्या रुख अपनाएंगे ये देखने वाली बात होगी।
भारत का आन्तरिक मामला
भारत के आन्तरिक मामलों पर डोनाल्ड ट्रम्प ने कभी कोई विपरीत रुख प्रदर्शित नहीं किया था। लेकिन कमला हैरिस पहले से ही भारत की कश्मीर नीति की सार्वजानिक तौर पर निंदा करती रहीं हैं। डिप्लोमेसी एक्सपर्ट्स का कहना है कि बिडेन प्रशासन में भारत की ‘राष्ट्रवादी’ नीतियों पर सख्त रुख अपनाया जाएगा। 2015 में जब तत्कालीन अमेरिकी प्रेसिडेंट बराक ओबामा भारत आये थे तब उन्होंने भारत में धार्मिक असहिष्णुता की बात कही थी।
भले ही बिडेन प्रशासन अब खुले तौर पर कुछ न कहे लेकिन डिप्लोमेटिक तरीके से ये मसला उठाये जाने की आशंका रहेगी। सीएए के मसले पर डेमोक्रेट्स नेता भी भारत विरोधी बयानबाजी कर चुके हैं। अब देखने वाली बात होगी कि आगे बिडेन प्रशासन क्या रुख प्रदर्शित करता है।
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