इंडिया जस्टिस रिपोर्ट: महाराष्ट्र सबसे बेहतर, यूपी-बिहार फिसड्डी

raghvendra
Published on: 8 Nov 2019 11:05 AM GMT
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट: महाराष्ट्र सबसे बेहतर, यूपी-बिहार फिसड्डी
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नई दिल्ली: विधि-व्यवस्था का मसला यूपी और बिहार के लिए हमेशा से बड़ी चिंता का विषय रहा है। टाटा ट्रस्ट की हाल की एक रिपोर्ट बताती है कि अलग-अलग सरकारों द्वारा सुधार के दावों के विपरीत इन दो राज्यों में सबसे खराब न्याय प्रणाली है।

टाटा ट्रस्ट, सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, दक्ष, टीआईएसएस - प्रयास और विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने मिलकर देश की कानून व्यवस्था पर ‘इंडिया जस्टिस’ नाम से एक रिपोर्ट बनाई है। इसमें पुलिस, जेल, न्यायपालिका और कानूनी सहायता - इन चार मानकों पर देश की न्याय प्रणाली का आंकलन किया है। १८ बड़े राज्यों की स्टडी में पाया गया कि यूपी और बिहार में देश की सबसे खराब न्याय प्रणाली है। जहां यूपी सूची में सबसे नीचे रहा वहीं बिहार १७वें नंबर पर है।

रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में महाराष्ट्र की न्याय प्रणाली सबसे बेहतर है। इसके बाद केरल, तमिलनाडु, पंजाब और हरियाणा का नंबर आता है। छोटे राज्यों की बात करें तो गोवा में कानून-व्यवस्था सबसे बेहतर है, जबकि सबसे खराब हालत त्रिपुरा की है।

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पुलिस ट्रेनिंग

पुलिस ट्रेनिंग की स्थिति भी बहुत खराब है। पिछले पांच वर्षों में औसतन लगभग 6.4 फीसदी पुलिस फोर्स को ही सर्विस के दौरान प्रशिक्षण दिया गया। इसका मतलब है कि 90 फीसदी से अधिक पुलिस वाले बिना आधुनिक ट्रेनिंग के ही कानून-व्यवस्था को संभाल रहे हैं।

23 लाख मामले 10 साल से लटके

देश की निचली अदालतों में 2.8 करोड़ मामले लंबित हैं, जबकि 24 फीसदी मामले तो पांच वर्षों से लंबित हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गुजरात, मेघालय और अंडमान-निकोबार में हर चार मामलों में से एक केस पांच वर्षों से लटका पड़ा है। जबकि 23 लाख केस 10 वर्षों से लटके हैं।

क्या कहती है रिपोर्ट

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में लगभग 18,200 जज हैं, लेकिन अब भी जजों के 23 फीसदी पद खाली हैं। कैदियों की बात करें तो देश के करीब सभी जेलों में उनकी क्षमता से अधिक कैदी हैं। जबकि 67.7 फीसदी कैदी अभी अंडरट्रायल हैं। ये वो कैदी हैं जिनकी या तो जांच पूरी नहीं हुई है या फिर उनकी ट्रायल लंबित है। 33 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में अंडरट्रायल कैदियों की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा है। पांच सालों में केवल 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस संख्या को घटाने में सफलता मिली है।

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रिक्तियों की बात करें तो पुलिस में 22 फीसदी (1 जनवरी 2017 तक), जेल में 33 से 38 फीसदी (31 दिसंबर 2016) और अदालतों में 20 से 40 फीसदी (2016-2017) पद खाली पड़े हैं। गुजरात इकलौता राज्य है जहां पांच सालों में पुलिस, जेल और अदालतों में खाली पदों को भरने का बेहतर काम हुआ है। जबकि, झारखंड में खाली पड़े पदों की संख्या तेजी से बढ़ी है. एससी/एसटी/ओबीसी का कोटा किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में पूरा नहीं भरा गया है। हालांकि, कर्नाटक इसमें सबसे आगे है. वहां, एसटी और ओबीसी का कोटा तो भरा गया लेकिन एससी का कोटा भरने में अब भी 4 फीसदी बाकी है।

न्याय और कानून व्यवस्था में महिलाओं की संख्या काफी कम है। देश भर में 2.4 करोड़ पुलिस फोर्स में महज सात फीसदी महिलाएं हैं। जेल कर्मचारियों में 10 फीसदी ही महिलाएं हैं। जबकि महिला जजों की संख्या करीब 26.5 फीसदी हैं।

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रिपोर्ट का कहना है कि 2016 और 2017 में सिर्फ छह राज्य-केंद्र शासित प्रदेशों गुजरात, दमन-दीव, दादर-नगर हवेली, त्रिपुरा, ओडिशा, लक्षद्वीप, तमिलनाडु और मणिपुर ने ही कोर्ट में दर्ज सभी मामलों का निपटारा किया।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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