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गजब का संयोग: देश की सुरक्षा की कमान तीन दोस्तों के हाथ

देश की आजादी के बाद दूसरी बार ऐसा दुर्लभ संयोग बना है जब तीन गहरे दोस्त तीनों सेनाओं के मुखिया हुए हैं। इसके पहले यह संयोग 1991 में बना था। अब जब यह ऐलान हो चुका है कि लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवणे अगले आर्मी चीफ होंगे तो फिर यह दुर्लभ संयोग बन गया है।

Shivakant Shukla
Published on: 31 Dec 2019 12:45 PM IST
गजब का संयोग: देश की सुरक्षा की कमान तीन दोस्तों के हाथ
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नई दिल्ली: देश की आजादी के बाद दूसरी बार ऐसा दुर्लभ संयोग बना है जब तीन गहरे दोस्त तीनों सेनाओं के मुखिया हुए हैं। इसके पहले यह संयोग 1991 में बना था। अब जब यह ऐलान हो चुका है कि लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवणे अगले आर्मी चीफ होंगे तो फिर यह दुर्लभ संयोग बन गया है।

बहुत कम लोगों को पता है कि लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह और एयर चीफ मार्शल राकेश कुमार सिंह भदौरिया 43 साल पहले एनडीए के एक ही बैच के कोर्समेट रहे हैं। मौजूदा आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत 31 दिसम्बर को रिटायर होने वाले हैं और तब आर्मी चीफ के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवण कमान संभालेंगे। उनके कमान संभालते ही देश की सेनाओं के तीनों शीर्ष पदों पर तीन दोस्त आसीन होंगे।

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1976 में तीनों साथ पहुंचे थे एनडीए

1976 में 17-17 साल की उम्र में जब केबी, छोटू और मनोज ने नेशनल डिफेंस अकेडमी ज्वाइन की थी तो शायद किसी को अंदाजा नहीं रहा होगा कि एक दिन ये बैचमेट लडक़े एक साथ तीनों सेनाओं के चीफ रहेंगे। मजे की बात तो यह है कि तीनों में एक और समानता है। तीनों के ही पिता इंडियन एयर फोर्स में सेवा दे चुके थे। आज 43 साल बाद तीनों दोस्त अपनी-अपनी सर्विस में शीर्ष पर पहुंचने में कामयाब हुए हैं।

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1980 में साथ ही अफसर के रूप में तैनाती

एडमिरल सिंह 31 मई को देश के 24वें नेवी चीफ बने थे और उनके वाइट यूनिफॉर्म पर हेलिकॉप्टर पायलट का विंग शोभा बढ़ाता है। एयर चीफ मार्शल भदौरिया 30 सितंबर को एयर फोर्स के चीफ के रूप में कार्यभार संभाला था और उनके भी ब्लू यूनिफॉर्म पर फाइटर पायलट का विंग शान से दिखता है। लेफ्टिनेंट जनरल नरवणे इस महीने के आखिर में 28वें आर्मी चीफ की जिम्मेदारी संभालेंगे। उनके ओलाइव-ग्रीन यूनिफॉर्म पर पैराट्रूपर विंग है। तीनों एनडीए के 56वें कोर्स का हिस्सा थे। एनडीए कैडेट के तौर पर 3 साल का कोर्स पूरा करने के बाद तीनों अपने-अपने सर्विस अकेडमी में पहुंचे जहां जून-जुलाई 1980 में तीनों ऑफिसर्स के तौर पर कमिशंड हुए।

यह बहुत ही दुर्लभ संयोग

सेना से जुड़े एक वरिष्ठ ऑफिसर ने बताया कि एनडीए के कोर्समेट का अपनी-अपनी सेनाओं के प्रमुख पद पर पहुंचना मामूली बात नहीं है। यह एक बहुत ही दुर्लभ संयोग है। ऐसा इसलिए क्योंकि सेना प्रमुख की नियुक्ति बहुत सारी बातों का ख्याल रखा जाता है। इसके लिए जन्मतिथि, कॅरियर का रेकॉर्ड, मेरिट, वरिष्ठता जैसी तमाम बातें देखी जाती हैं। इन सबके साथ भाग्य की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए इसे दुर्लभ संयोग माना जाना चाहिए जब तीन दोस्त तीनों सेनाओं के मुखिया के रूप में तैनात होंगे।

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ऑफिसर ने बताया कि सर्विस चीफ 62 साल की उम्र तक या 3 साल तक (जो भी पहले हो) सेवा दे सकता है और दूसरी तरफ थ्री-स्टार जनरल (लेफ्टिनेंट जनरल, एयर मार्शल और वाइस एडमिरल) 60 साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं। इसी से समझा जा सकता है कि तीनों बैचमेट का अपनी-अपनी सर्विस में चीफ बनना कितना दुर्लभ है।

आजादी के बाद दूसरी बार ऐसा संयोग

देश की आजादी के बाद पहली बार ऐसा दुर्लभ संयोग 1991 में बना था। सेना से जुड़े तमाम वेटरंस का कहना है कि उनकी याददाश्त में उससे पहले कभी ऐसा संयोग नहीं बना। दिसंबर 1991 में एनडीए के 81वें कोर्स के पासिंग आउट परेड में तीनों सेनाओं के तत्कालीन प्रमुख जनरल एस. एफ.रोड्रिक्स, एडमिरल एल. रामदास और एयर चीफ मार्शल एन.सी.सूरी मौजूद थे। यह भी दुर्लभ दृश्य था क्योंकि तीनों ही एनडीए के बैचमेट थे। उसके बाद यह संयोग दूसरी बार बना है।

दो सेना प्रमुख तो स्कूली दोस्त भी

इन तीनों दोस्तों के बारे में एक और बात भी काबिलेगौर है। लेफ्टिनेंट जनरल नरवणे और एयर चीफ मार्शल भदौरिया जहां एनडीए में लीमा स्क्वॉड्रन का हिस्सा थे तो एडमिरल सिंह हंटर स्क्वॉड्रन में थे। सेना के एक ऑफिसर ने बताया कि पहले दोनों तो स्क्वॉड्रन मेट भी थे। एक और बात ध्यान देने की यह है कि एडमिरल सिंह और लेफ्टिनेंट जनरल नरवणे तो एनडीए जॉइन करने से पहले के दोस्त रहे हैं। इन दोनों ने एनडीए में आने से पहले कई साल तक एक ही स्कूल में पढ़ाई भी की थी। बाद में ये दोनों स्कूली दोस्त एक साथ ही एनडीए में भी पहुंचे।



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