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बिस्तर पर 54 करोड़ महिलाओं को पति से है खतरा, इस सर्वे को देख हिल जाएंगे
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में चौकाने खुलासे हुए हैं। इस सर्वे में देश के परिवारों के बारे में ऐसी जानकारियां सामने आई है जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे आप। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदुस्तान में कॉन्ट्रेसेप्शन यानि गर्भनिरोधक तरीकों का इस्तेमाल करने वाले मर्दों की संख्या सिर्फ 5.9 प्रतिशत है।
नई दिल्ली: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में चौकाने खुलासे हुए हैं। इस सर्वे में देश के परिवारों के बारे में ऐसी जानकारियां सामने आई है जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे आप। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदुस्तान में कॉन्ट्रेसेप्शन यानि गर्भनिरोधक तरीकों का इस्तेमाल करने वाले मर्दों की संख्या सिर्फ 5.9 प्रतिशत है।
यानी सेक्सुअली एक्टिव प्रत्येक 100 मर्दों में सिर्फ 5.9 फीसदी ऐसे हैं, जो सुरक्षित तरीके से यौन संबध बनाते हैं। मतलब साफ है कि दुनिया का दूसरी सबसे ज्यादा आबादी वाला देश, जहां इस वक्त तकरीबन 50.6 करोड़ मर्द सेक्सुअली एक्टिव हैं, उनमें से सिर्फ 5.9 प्रतिशत मर्दों को अपनी महिला पार्टनर के स्वास्थ्य और सुरक्षा की चिंता है। बाकी को इस बात से कुछ लेना देना नहीं है। भारत में कानूनी और गैरकानूनी ढंग से कितनी एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी) किट बिक रही हैं।
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इस सर्व रिपोर्ट में बताया गया है कि कहानी औरतों की जिंदगी बयां करती है। असुरक्षित सेक्स आदमी करता है और असर औरतों की जिंदगी पर पड़ता है।
अगर आपको इस देश में औरतों की सेक्सुअल और रिेप्रोडक्टिव हेल्थ (प्रजनन स्वास्थ्य) की जमीनी हकीकत जाननी है तो बड़े अस्पतालों में नहीं, छोटे-छोटे गली-मोहल्लों, शहरों, कॉलोनियों में गाइनिकॉलजिस्ट के क्लिनिक में जाकर बैठिए और सरकारी अस्पतालों के महिला विभाग में। जैसे इंसानी रिश्तों की हकीकत फैमिली कोर्ट में दिखाई देती है, औरतों की सेहत की हकीकत वहां दिखती है।
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मातृ मृत्यु दर के मामले में दुनिया के 200 देशों में भारत का 52वां स्थान है। हमसे खराब सिर्फ अफ्रीका है। हमारी औरतें कुपोषण और एनीमिया की शिकार हैं। यूएन की रिपोर्ट कहती है कि भारत में पैदा होने वाली 23 फीसदी लड़कियां अपना 15वां जन्मदिन भी नहीं देख पातीं।
पिछले साल की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की ही रिपोर्ट थी, जिसके मुताबिक भारत में 23 फीसदी मर्द और सिर्फ 20 फीसदी औरतों के पास हेल्थ इंश्योरेंस है। औरतों की सेहत पर खर्च किए जाने वाले पैसे का राष्ट्रीय अनुपात मर्दों के मुकाबले 32 फीसदी कम है।