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शमशेर बहादुर सिंह: ऐसे कवि जो सहज रहे सरल नहीं, गायत्री मंत्र बोलते त्यागा शरीर
शमशेर का स्थान हमेशा प्रयोगवाद और नई कविता के प्रमुख कवियों में रहा है। उन्होंने अपने आखिरी समय में गायत्री मंत्र सुनने की इच्छा जताई थी। उन्होंने गायत्री मंत्र बोलते-बोलते अपना शरीर त्याग दिया।
लखनऊ: आधुनिक हिंदी कविता के प्रगतिशील कवि शमशेर बहादुर सिंह का जीवन सहजता की मिसाल रही है। शमशेर बहादुर सिंह को अगर हिंदी और उर्दू का विद्वान कहा जाए तो कुछ गलत नहीं है। इनका स्थान हमेशा प्रयोगवाद और नई कविता के प्रमुख कवियों में रहा है। उन्होंने जैसा जीवन जिया, वैसा ही लिखा। शमशेर बहादुर सिंह सहज तो थे, लेकिन सरल बिल्कुल नहीं।
शमशेर बहादुर सिंह अंग्रेजी कवि एजरा पाउंड से काफी प्रभावित थे। निराला को अपना प्रिय कवि कहते थे। उनकी याद में उन्होंने कुछ लाइनें भी उकेर दीं। उन्होंने लिखा-
भूल कर जब राह
जब जब राह
भटका मैं
तुम्हीं झलके हे महाकवि
सघन तम की आंख बन मेरे लिए
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(फोटो- सोशल मीडिया)
कैसा रहा निजी जिंदगी
अगर उनकी निजी जिंदगी की बात की जाए तो शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 13 जनवरी 1911 को देहरादून में हुआ। जब शमशेर आठ या नौ साल के थे तो उनकी मां का साया उनके सिर से उठ गया। छोटी सी उम्र में मां का साथ छूट जाना शमशेर के लिए गहरी क्षति रही। उनके एक छोटे भाई भी थे जिनका नाम तेज बहादुर था। उनकी मां दोनों भाईयों को राम लक्ष्मण कहा करती थीं। जब शमशेर 18 साल के हुए तो उनकी शादी धर्मवती नाम की युवती से करा दी गई।
24 साल की उम्र में छूट गया पत्नी का साथ
शादी के करीब छह साल बाद ही उनकी पत्नी धर्मवती की मृत्यु हो गई। मात्र 24 साल की उम्र में उनकी जिंदगी में एक खालीपन आ गया, लेकिन इससे शमशेर सिंह ने निराश होने की बजाय अपनी शक्ति का स्रोत बनाया। उन्होंने हमेशा इस अभाव को कविता में विभाव बनाकर पेश किया। शमशेर को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें कबीर सम्मान और मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से भी नवाजा गया है।
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ये हैं मुख्य काव्य
शमशेर के मुख्य काव्य संग्रह की बात की जाए तो उनमें 'कुछ कविताएँ, 'कुछ और कविताएँ, 'इतने पास अपने, 'चुका भी नहीं हूँ मैं, 'बात बोलेगी, 'उदिता’ और 'काल तुझसे होड़ है मेरी’ शामिल है। प्रयोगवाद और नई कविता के प्रमुख कवियों में शामिल शमशेर ने एक भी मौका नहीं छोड़ा अपनी कविताओं से लोगों का दिल जीतने में।
आखिरी समय में पढ़ रहे थे गायत्री मंत्र
12 मई 1993 को शमशेर बहादुर सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके आखिरी दिनों के बारे में 2011 में अहमदाबाद में गुजरात विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्यक्षा रह चुकीं रंजना अरगड़े बताती हैं कि जब हार्ट अटैक आया तो हॉस्पिटल में करीब 72 घंटे से भी कम रहे। उन्हें शायद तब अंदाजा हो गया था कि अब दुनिया को अलविदा कहने का समय आ गया है। वो बताती हैं कि जब उन्होंने शमशेर से पूछा कि वे क्या सुनना चाहेंगे।
उन्होंने सोचा कि शायद शमशेर गालिब या कुछ और सुनना चाह रहे होंगे, लेकिन इन सभी से उन्होंने इनकार कर दिया। एक मीडिया रिपोर्ट में रंजना के हवाले से बताया गया है कि रंजना याद करती हैं कि शमशेर ने अपने आखिरी समय में गायत्री मंत्र सुनने की इच्छा जताई थी। मैं गायत्री मंत्र बोल रही थी और वे साथ में बोलते जा रहे थे। मंत्र बोलते-बोलते जब वे चुप हो गए तो मैं जान गई थी कि अब वे नहीं हैं।
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