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घटेगा रेमिटेंस: भारतीय अपने घर कम भेज पाएंगे पैसे, रिपोर्ट में आई ये बड़ी वजह   

रेमिटेंस को अगर आसान शब्दों में समझे तो मान लीजिए खाड़ी के देशों में काम कर रहे भारतीयों, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में डॉक्टर और इंजीनियर की नौकरी कर रहे एनआरआई भारतीय जब भारत में अपने माता-पिता या परिवार को धनराशि भेजते हैं तो उसे रेमिटेंस कहते हैं।

SK Gautam
Published on: 23 April 2020 12:17 PM GMT
घटेगा रेमिटेंस: भारतीय अपने घर कम भेज पाएंगे पैसे, रिपोर्ट में आई ये बड़ी वजह   
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नई दिल्ली: जबकि पूरा विश्व कोरोना वायरस की महामारी के खिलाफ जंग लड़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ दुनियाभर में अब आर्थिक मंदी की चिंता बढ़ गई है। वर्ल्ड बैंक ने इन हालातों तो देखते हुए बताया है कि इस साल भारत के रेमिटेंस में 23 फीसदी की बड़ी गिरावट आ सकती है।अर्थात विदेश में नौकरी करने गए लोग अपने देश में पैसा भेजते हैं तो उसको रेमिटेंस कहते हैं।

अब हम आपको विस्तार से बताते हैं की ये क्या है? ये रेमिटेंस 8300 करोड़ डॉलर (करीब 6.30 लााख करोड़ रुपये) से गिरकर 6400 करोड़ डॉलर (करीब 4.86 लाख करोड़ रुपये) पर आ सकती है। इस तरह ये रकम करीब 1.44 लाख करोड़ रुपये बैठती है। जबकि, पिछले साल 2019 में रेमिटेंस 5.5 फीसदी बढ़कर 8300 करोड़ डॉलर (करीब 6.30 लाख करोड़ रुपये) हो गया था।

यहां रेमिटेंस को जानें आसान शब्दों में

रेमिटेंस को अगर आसान शब्दों में समझे तो मान लीजिए खाड़ी के देशों में काम कर रहे भारतीयों, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में डॉक्टर और इंजीनियर की नौकरी कर रहे एनआरआई भारतीय जब भारत में अपने माता-पिता या परिवार को धनराशि भेजते हैं तो उसे रेमिटेंस कहते हैं।

रेमिटेंस में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिल सकता है

वर्ल्ड बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस की वजह से ग्लोबल रेमिटेंस में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है। दुनियाभर में जारी लॉकडाउन की वजह से ये 20 फीसदी तक गिर सकता है। क्योंकि, लोगों की नौकरियां जा रही है। सैलरी में कटौती हो रही है।

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FDI से ज्यादा मिलता है रेमिटेंस

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, कम या मध्य आय वाले देशों को 2017 के मुकाबले 2018 में 9.6 प्रतिशत ज्यादा रेमिटेंस मिले और 2018 में यह आंकड़ा 529 अरब डॉलर (करीब 37,030 अरब रुपये) रहा।

ग्लोबल रेमिटंस बढ़कर 689 अरब डॉलर (करीब 48,230 अरब रुपये) तक पहुंच गया जो 2017 में 633 अरब डॉलर (करीब 43,044 अरब रुपये) था। 2018 में चीन को छोड़कर कम एवं मध्यम आय वाले देशों को एफडीआई से ज्यादा रेमिटेंस मिले।

रेमिटेंस कैसे डालती है अर्थव्यवस्था पर असर

जो देश रेमिटेंस प्राप्त करता है, उसके लिए यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने का जरिया होता है और वहां की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। खासकर छोटे और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को गति देने में रेमिटेंस ने अहम भूमिका निभाई है। कई देश ऐसे हैं, जिनके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में रेमिटेंस से प्राप्त राशि का योगदान अन्य क्षेत्रों के मुकाबले काफी अधिक है।

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ये देश अपने जीडीपी के एक चौथाई के बराबर प्राप्त करते हैं रेमिटेंस

नेपाल, हैती, ताजिकिस्तान और टोंगा जैसे देश अपने जीडीपी के एक चौथाई के बराबर राशि रेमिटेंस के रूप में प्राप्त करते हैं। बाग्लादेश में उनके प्रवासियों द्वारा भेजे गए धन में 2018 में 15% की वृद्धि दर्ज की गई।पिछले तीन साल में विदेश से भारत को भेजे गए पैसे में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।

साल 2016 में यह 62.7 अरब डॉलर से बढ़कर 2017 में 65.3 अरब डॉलर हो गया था। वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि केरल में आई बाढ़ के चलते प्रवासी भारतीय अपने परिवारो को अधिक आर्थिक मदद भेजेंगे।

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