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Indira Gandhi: ऐसी थीं इंदिरा, मुख्यमंत्री ने दलित की जमीन पर कर लिया था कब्जा, न्यूज पढ़ते ही कर दिया था बर्खास्त

Indira Gandhi: श्रीपति मिश्रा ने एक हरिजन जोखई की जमीन पर जो उसे सरकार ने दी थी, कब्जा कर लिया था। खबर को इंदिरा गांधी ने पढ़ा और तत्काल ऐक्शन लेते हुए स्वयं अपने स्तर से जांच करवाई और दो महीने के अंदर श्रीपति मिश्रा से इस्तीफा मांग लिया।

Ashish Pandey
Published on: 7 Aug 2023 11:40 AM GMT (Updated on: 7 Aug 2023 12:45 PM GMT)
Indira Gandhi: ऐसी थीं इंदिरा, मुख्यमंत्री ने दलित की जमीन पर कर लिया था कब्जा, न्यूज पढ़ते ही कर दिया था बर्खास्त
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भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी: Photo- Social Media

Indira Gandhi: श्रीपति मिश्रा ने एक हरिजन जोखई की जमीन पर जो उसे सरकार ने दी थी, कब्जा कर लिया था। जो रविवार पत्रिका की कवर स्टोरी बनीं, शीर्षक था-’श्रीपति जी, जोखई की जमीन वापस’ कर दीजिए। इस खबर को इंदिरा गांधी ने पढ़ा और तत्काल ऐक्शन लेते हुए स्वयं अपने स्तर से जांच करवाई और दो महीने के अंदर श्रीपति मिश्रा से इस्तीफा मांग लिया।

बात 1984 की है जब यूपी के मुख्यमंत्री ने दलित की जमीन पर कब्जा कर लिया था और इंदिरा गांधी ने न्यूज पढ़ते ही मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर दिया। यह बात 1984 की है। उस समय यूपी के मुख्यमंत्री थे श्रीपति मिश्रा। दो साल पहले वीपी सिंह के इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस ने श्रीपति मिश्रा को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया था। अपने वादे राज्य में दुस्यु डाकुओं के नरसंहार और जातीय सिंहा को रोकना। को निभा पाने में असफल रहे वीपी सिंह ने दोहरे हत्याकांड के बाद 29 जून 1982 को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी।

इसके बाद कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई जिसमें श्रीपति मिश्रा को विधायक दल का नेता चुना गया और 19 जुलाई 1982 को श्रीपति मिश्रा ने यूपी के 13वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। मिश्रा सुल्तानपुर जिले के शेषपुर गांव के रहने वाले थे। मुख्यमंत्री काल में ही उन पर गांव के एक दलित ने अपनी जमीन पर कब्जा करने का आरोप लगा। यह बात जून 1984 की है।

किसकी जमीन पर मुख्यमंत्री ने किया था कब्जा-

पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने अपनी किताब ’वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं’, में इस घटना कर उल्लेख करते हुए लिखा है। श्रीपति मिश्रा ने एक हरिजन जोखई की जमीन पर जो उसे सरकार ने दी थी, कब्जा कर लिया था। मैंने दो रिपोर्ट लिखी, जो रविवार पत्रिका की कवर स्टोरी बनीं, शीर्षक था-’श्रीपति जी, जोखई की जमीन वापस’ कर दीजिए।

बकौल भारतीय, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उस खबर को पढ़ा और तत्काल ऐक्शन लेते हुए स्वयं अपने स्तर से जांच करवाई और दो महीने के अंदर श्रीपति मिश्रा से इस्तीफा मांग लिया था। वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा है कि इंदिरा गांधी ऐसे मामलों में बहुत संवेदनशील थीं। हालांकि यह भी कहा जाता है कि इस दौरान राजीव गांधी और अरुण नेहरू से श्रीपति मिश्रा के संबंध खराब हो गए थे। इस कारण से श्रीपति मिश्रा को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। उनका मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यकाल 19 जुलाई 1982 से 3 अगस्त 1984 तक था।

पीएम मोदी भी कर चुके हैं जिक्र-

पीएम नरेंद्र मोदी भी इसका जिक्र कर चुके हैं। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले पीएम मोदी ने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन के बाद एक जनसभा को संबोधित करते हुए श्रीपति मिश्रा का नाम लिए बगैर कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि एक परिवार के दरबारियों ने एक मुख्यमंत्री को अपमानित कर उन्हें बर्खास्त कर दिया था। पीएम के संबोधन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्रा के बेटे प्रमोद मिश्रा ने पीएम के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था और कहा था कि उनके पिता का कांग्रेस ने नहीं बल्कि भाजपा ने अपमान किया था।

जज की नौकरी छोड़ लड़ा था प्रधानी का चुनाव-

श्रीपति मिश्रा ने जज की नौकरी छोड़ प्रधानी का चुनाव लड़ा था और जीत गए। राजनीति में गहरी रूचि होने के कारण ही उन्होंने जज की नौकरी छोड़ दी थी। राजनीति में आने से पहले वह फर्रुखाबाद की जिला कोर्ट में जूनियर जज के पद पर कार्यरत थे। हालांकि बीएचयू में पढ़ाई के दौरान भी वे छात्रसंघ के सचिव रह चुके थे। 1958 में उन्होंने चार साल की नौकरी के बाद जज की कुर्सी छोड़ दी थी और इसके कुछ दिनों बाद गांव के प्रधानी का चुनाव लड़ा और जीत गए। बाद में फिर से वह वकालत पेशे में चले गए। फिर उन्होंने 1962 में राजनीति का रूख किया और कांग्रेस के टिकट पर सुल्तानपुर जिले के कादीपुर विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गए।

दल-बदल में भी रहे माहिर-

1967 में वह जयसिंहपुर से विधानसभा का चुनाव जीते और विधानसभा में डिप्टी स्पीकर बनाए गए। 1969 में मिश्रा कांग्रेस छोड़कर चैधरी चरण सिंह के साथ हो लिए। उन्होंने उस समय भारतीय क्रांति दल के टिकट पर सुल्तानपुर से लोकसभा सांसद का चुनाव लड़ा और जीत गए। लेकिन चरण सिंह के सरकार में मंत्री बनाए गए और सांसदी छोड़ दी। 1971 में वे फिर से कांग्रेस में आ गए। 1980 में वह फिर कांग्रेस के टिकट पर सुल्तानपुर के इस्सौली सीट से विधायक चुने गए और दो साल बाद वीपी सिंह के इस्तीफे के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए थे।

Ashish Pandey

Ashish Pandey

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