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जयंती विशेष: पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर की 93 वीं जयन्ती, इस नेता ने रखा उपवास
अवधेश सिंह के अनुसार, चन्द्र शेखर जी का कहना था कि हर समाज की एक परंपरा होती है। हर राष्ट्र की एक मर्यादा होती है। हर राष्ट्र की अपनी एक मान्यता होती है। जो राष्ट्र अपनी मर्यादा, मान्यता औऱ अपनी परंपराओं को छोड़ देते हैं अनजाने में वे राष्ट्र विनष्ट होने के लिये विवश होते है औऱ दुनिया की कोई भी ताकत उसे बचा नही सकती।
गोंडा: युवा तुर्क, राजनैतिक प्रतिबद्धता के सजग प्रहरी, समाजवादी चिंतक, पूर्व प्रधानमंत्री और बागी बलिया के लाल पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्र शेखर की जन्म जयंती भारतीय राष्ट्रीय क्षत्रिय कल्याण परिषद के नेतृत्व में मनाया जा रहा है। परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अवधेश सिंह पूरे दिन उपवास रख कर कोरोना महामारी से निजात के लिए प्रार्थना भी करेंगे।
कोरोना महामारी से निजात के लिए ईश्वर से कर रहे प्रार्थना
देश में युवा तुर्क नेता के नाम से चर्चित एवं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर की आज जयन्ती है। भारतीय कल्याण परिषद भी उनकी जयंती मना रहा है। इस अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री के अनन्य सहयोगी रहे परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अवधेश सिंह उपवास रखकर ईश्वर तथा कुलदेवी से समूचे विश्व सहित भारत में फैला वैश्विक महामारी कोरोना से निजात पाने के लिए प्रार्थना करेंगे।
राष्ट्रीय अध्यक्ष अवधेश सिंह ने बताया कि वह पूर्व वर्षों की भांति इस बार भी पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर की जयन्ती पर मनाएंगे। लेकिन इस बार उन्होंने सुबह से शाम 05 बजे तक उपवास रखा है और भारत समेत पूरे विश्व को कोरोना महामारी से निजात के लिए ईश्वर तथा अपने कुलदेवी से प्रार्थना करेंगे। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर की जयंती पर वृक्षारोपण का भी कार्यक्रम है। उन्होंने अपने साथियों और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चन्द्र शेखर के अनुयायियों से भी अपील की है कि हो सके तो वे भी उपवास रखकर ईश्वर से वैश्विक महामारी कोरोना से निजात पाने की प्रार्थना करें।
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उन्होंने कहा कि राष्ट्र पुरुष चन्द्रशेखर कहते थे कि ‘जिन हाथों में शक्ति है राजतिलक देने की, उन्ही हाथों में ही ताकत है सर उतार लेने की।‘ वे आजीवन नफरत की आंधी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत में लाने की होड़ से लड़ते रहे। अगर लोहिया राज नारायण के बाद कोई समस्त विपक्ष हुआ करता था वह चंद्र शेखर ही थे, जो सदन से लेकर कहीं भी बिना लाग लपेट के गलत के खिलाफ आवाज उठा देते थे।
अनुभूति ट्रस्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं अवधेश सिंह
समाजवादी पुरोधा पूर्व प्रघानमंत्री चन्द्र शेखर के साथ भारत यात्रा ट्रस्ट के कई यात्राओं में सहभागी रहे अवधेश सिंह तमाम वर्षों तक राजनीति में रहे। 1982 में संजय विचार मंच के प्रदेश संगठन मंत्री पद से शुरुआत कर जनता पार्टी, जनता दल में उच्च पदों पर रहे। 09 जुलाई 2009 में जनता दल का विलय हुआ तो 500 साथियों के साथ कांग्रेस की सदस्यता ली। कांग्रेस पार्टी में भी प्रदेश सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहकर जनमानस की सेवा की। स्वास्थ्य कारणों से 2016 में उन्होंने राजनीति को अलविदा कह दिया।
लेकिन विभन्न संगठनों के माध्यम से वे आज भी सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। जिले के कर्नलगंज तहसील क्षेत्र के प्रतापपुर गांव निवासी अवधेश सिंह प्रख्यात साहित्यिक संस्था अनुभूति ट्रस्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं और जनकवि स्व. रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी की जयंती पर हर वर्ष ‘साहित्यिक संतों की स्मृति को नमन’ समारोह आयोजित कराते हैं। इस के बैनर तले तमाम महापुरुषों की जयंती, पुण्यतिथि पर संगोष्ठियां, सम्मेलन और प्रतिभाओं का सम्मान समारोह भी आयोजित कराते हैं।
लाक डाउन में पढ़ रहे चन्द्र शेखर का कृतित्व
अवधेश सिंह ने बताया कि इन फुरसत के दिनों में धीरेंद्र श्रीवास्तव द्वारा संपादित ‘राष्ट्र पुरुष चंद्र शेखर संसद में दो टूक‘ पुस्तक पढ़ रहा हूं। इस पुस्तक में चंद्र शेखर द्वारा संसद में दिए गए भाषण का संकलन है। चंद्र शेखर कहते हैं कि बेबस-निरीह लोगों को, इस देश को, गांधी ने हौसला दिया था, इच्छा शक्ति दी थी। सबसे बड़ा राजनैतिक अपराध ये ही हो रहा है कि हम उस इच्छा शक्ति को तोड़ रहे हैं। राजनीतिक विचारों में अन्तर होने के कारण हम एक दूसरे से छुवा-छूत का ब्यवहार करने लगे हैं।
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एक दूसरे से नफरत ओर घृणा करने लगे हैं। कोई भी ब्यक्ति इस देश मे ऐसा नही है, जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा ब्यक्ति नही जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े, जिसके सहयोग की जरूरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है, लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रक्रिया राजनीति में चल रही है वह एक बड़ी भयंकर बात है।
हर समाज की एक परंपरा और हर राष्ट्र की एक मर्यादा होती है- चन्द्र शेखर
अवधेश सिंह के अनुसार, चन्द्र शेखर जी का कहना था कि हर समाज की एक परंपरा होती है। हर राष्ट्र की एक मर्यादा होती है। हर राष्ट्र की अपनी एक मान्यता होती है। जो राष्ट्र अपनी मर्यादा, मान्यता औऱ अपनी परंपराओं को छोड़ देते हैं अनजाने में वे राष्ट्र विनष्ट होने के लिये विवश होते है औऱ दुनिया की कोई भी ताकत उसे बचा नही सकती।
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कभी भी दुनिया मे क्रांतियां, दुनिया में अराजकता पार्लियामेंट के प्रस्तावों से नही होती, सुप्रीमकोर्ट के जजमेंट से नही होती। उच्चतम न्यायालय के निर्णय रखे रह जाते है। पार्लियामेंट बैठी रहती है औऱ लोग बगावत के रास्ते पर खड़े हो जाते हैं। वे कहते हैं कि याद रखिये इंसान का दिमागी परिंदा कभी कफ़न में कैद नही होता। उनका कहना था कि मानव चेतना को कोई बन्दी नही बना सकता, भूख की पीड़ा से उपजी हुई आग बड़े बड़े महलों को जला देती है।
रिपोर्ट- तेज प्रताप सिंह