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झारखंड गठन के 20 साल: आज भी हाशिए पर आदिवासी, सरकारों से उम्मीद नहीं
15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य का गठन हुआ। आदिवासी पहचान के साथ भारत के मानचित्र पर झारखंड का उदय हुआ। हालांकि, गठन के 20 वर्षों बाद भी आदिवासी समाज की उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं।
15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य का गठन हुआ। आदिवासी पहचान के साथ भारत के मानचित्र पर झारखंड का उदय हुआ। हालांकि, गठन के 20 वर्षों बाद भी आदिवासी समाज की उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं। आदिवासियों का विकास एक चुनावी शिगूफा बनकर रह गया है। आज भी आदिवासी समाज हाशिए पर खड़ा है। आदिवासियों के नाम पर सियासत ज़रूर होती है लेकिन विकास की किरणों से आदिवासी समाज आज भी दूर है। जल, जंगल और ज़मीन के वजूद के साथ अपने नाम को जोड़ने वाला आदिवासी समाज आज खुद को ठगा महसूस कर रहा है। राज्य गठन के बाद पहली बार आदिवासियों की प्रमुख मांग सरना धर्म कोड को झारखंड विधानसभा से पारित कर केंद्र को भेजा गया है। अलग राज्य के आंदोलन से खुद को जोड़ने वाली पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा आज सत्ता पर काबिज है। लिहाजा, आदिवासी समाज की उम्मीदें एकबार फिर से जाग उठी हैं।
बिरसा के सपनों का झारखंड
तमाम सरकारों ने भगवान बिरसा मुंडा के सपनों का झारखंड बनाने का वादा किया। वर्तमान हेमंत सोरेन की सरकार भी बिरसा के पद चिन्हों पर चलने का दावा करती है। हालांकि, राज्य गठन के 20 वर्षों बाद न तो बिरसा मुंडा के गांव का विकास हुआ, न उनके वंशजों का और न ही संपूर्ण झारखंड को विकास की रोशनी मिली। आदिवासी समाज इसके लिए सत्ता पर काबिज रही सरकारों को ज़िम्मेदार ठहराती हैं। आदिवासियों का कहना है कि, किसी भी सरकार ने आदिवासी समाज के विकास को लेकर गंभीर प्रयास नहीं किए।
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आदिवासी समाज की पुकार
आदिवासी समाज में पाहन को विशेष दर्जा प्राप्त है। सोमनाथ पाहन कहते हैं कि, तमाम सरकारों ने केवल लूट-खसोट किया है। आदिवासियों के विकास को लेकर ध्यान नहीं दिया। इसके लिए आदिवासी समाज भी ज़िम्मेदार है जो अबतक जागरुक नहीं हो पाया है। रांची की ममता उरांव कहती हैं कि, जल, जंगल और ज़मीन से आदिवासियों की पहचान जुड़ी है। उद्योग के नाम पर आज ज़मीन की बंदरबांट की जा रही है। जंगल काटे जा रहे हैं। ऐसे में आदिवासी समाज आज जागरुक हो रहा है। अपने हक़ और अधिकार के लिए आगे आ रहा है। धनबाद की अनुराधा कहती हैं कि, वर्तमान सरकार से काफी उम्मीदें हैं। पूर्व की सरकारों ने आदिवासियों को छला है।
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झारखंड आंदोलनकारियों की पहचान
झारखंड आंदोलन में शामिल लोगों की आजतक पहचान नहीं हो सकी है। यही वजह है कि, आंदोलनकारियो की पहचान के लिए लोगों को सड़क पर उतरना पड़ा है। झारखंड के आंदोलनकारियों को मान-सम्मान, पहचान और पेंशन देने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन का भी सहारा लिया जा रहा है। झारखंड आंदोलनकारी मोर्चा ने राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर धरना दिया। मोर्चा का कहना है कि, वर्तमान सरकार उनकी मांगों को लेकर गंभीरता दिखाए। 20 वर्षों बाद भी अगर आंदोलनकारियों की पहचान नहीं हो पाई है तो सरकारों की नीयत पर सवाल उठना लाज़िमी है।