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#KargilWar: भारत की सिफारिश पर इस पाकिस्तानी को मिला वीरता पुरस्कार
नई दिल्ली: साल 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ। इस युद्ध में कई जानें गईं। बता दें, ऐसा बहुत ही रेयर केस में हुआ है, जब शत्रु सेना किसी सैनिक की बहादुरी की तारीफ़ करे और दुश्मन देश को यह लिखित में दे कि इस सैनिक की वीरता का सम्मान किया जाना चाहिए। एक ऐसे ही सिपाही थे कैप्टन शेर खाँ। इनके लिए खुद भारत ने पाकिस्तान को खत लिखा था कि उन्हें निशान-ए-हैदर से नवाजा जाना चाहिए, जिसके बाद उन्हें मरणोपरांत निशान-ए-हैदर का ख़िताब दिया गया।
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'कारगिल अनटोल्ड स्टोरीज़ फ़्राम द वॉर' किताब लिखने वाली लेखिका रचना बिष्ट रावत ने कैप्टन कर्नल शेर ख़ाँ के बारे में बात करते हुए बताया कि वह नॉर्दर्न लाइट इंफ़ैंट्री के थे। उन्हें टाइगर हिल पर पांच जगहों पर बनाई थीं। उन्हें काम मिला था 8 सिख को कब्जे में लेने का। हालांकि, वह इसमें फेल हो गए थे।
इसके बाद 18 ग्रेनेडियर्स को भी कैप्टन शेर खाँ के साथ लगाया गया। तब वो एक चौकी पर किसी तरह कब्ज़ा करने में कामयाब हो गए। मगर ख़ाँ ने एक जवाबी हमला किया। बाद में उन्होंने अपने साथियों को फिर जोड़ा और दोबारा हमला किया, जबकि ये सब जानते थे कि भारतीय सेना उनसे नंबर में कई ज्यादा हैं।
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कैप्टन शेर खाँ के बारे में ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा ने बात करते हुए बताया कि वह एक लंबा-चौड़ा शख़्स था, जिसके कारगिल युद्ध काफी बहादुरी से लड़ा लेकिन आखिरी में उसे भारतीय सेना ने मार गिराया। वैसे खाँ के नाम की वजह से काफी उलझने भी पैदा हुईं।
उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के एक गांव नवा किल्ले में जन्मे कैप्टन शेर खाँ का नाम उनके दादाजी ने रखा था। उनके दादाजी को सैनिकों से बड़ा लगाव था, इसलिए उन्होंने अपने पोते का नाम ही यह रख दिया। अक्तूबर, 1992 में पाकिस्तानी मिलिट्री अकादमी ज्वाइन करने वाले कैप्टन शेर खाँ काफी लोकप्रिय अफसर थे।
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हालांकि, उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान 4 जुलाई, 1999 को टाइगर हिल पर दम तोड़ दिया था। मगर भारत ने कैप्टन शेर खाँ के मरणोपरांत एलानिया कह दिया कि कर्नल शेर हीरो हैं। ऐसे में भारत के कहने पर ही कैप्टन शेर खाँ को मरणोपरांत निशान-ए-हैदर से सम्मानित किया गया। बता दें, निशान-ए-हैदर पाकिस्तान का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार है। यह पुरस्कार परमवीर चक्र के बराबर है।