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Karnataka Election Result 2023: कर्नाटक में क्यों कांग्रेस के खाते में जाती दिख रहीं इतनी सीटें, कहां मात खा गई BJP ?
Karnataka Election 2023: छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे कुछ अपवादों को छोड़ दें तो बीजेपी के लिए कांग्रेस को शिकस्त देना कोई बड़ी बात नहीं थी। लंबे समय बाद किसी राज्य में ऐसा चुनावी मुकाबला देखने को मिल रहा है, जहां कांग्रेस शुरू से ही बीजेपी पर हावी नजर आ रही है।
Karnataka Election 2023: साल 2014 से केंद्र और राज्य में जहां भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी चुनावी लड़ाई हुई है, वहीं भारतीय जनता पार्टी बीस साबित हुई है। छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे कुछ अपवादों को छोड़ दें तो बीजेपी के लिए कांग्रेस को शिकस्त देना कोई बड़ी बात नहीं थी। हालांकि, इस दौरान दिल्ली, बिहार और बंगाल में क्षेत्रीय पार्टियों ने मोदी-शाह की बीजेपी को हार की कड़वी घूंट जरूर पिलाई। लंबे समय बाद किसी राज्य में ऐसा चुनावी मुकाबला देखने को मिला है, जहां कांग्रेस शुरू से ही बीजेपी पर हावी रही है।
जैसा कि आप जानते हैं कि दक्षिणी राज्य कर्नाटक में आज विधानसभा चुनाव के नतीजे का दिन है। मध्यम आकार वाला यह राज्य देश की सियासत में अहमियत इसलिए रखता है क्योंकि दक्षिण में भारतीय जनता पार्टी का यह एकमात्र ठिकाना है। पार्टी दक्षिण के और किसी राज्य में अब तक अपना मुख्यमंत्री नहीं बना सकी है। अब तक के रूझानों से स्पष्ट हो गया है कि 10 मई को यानी मतदान के दिन यहां के मतदाताओं ने पार्टी को नकार दिया है। कांग्रेस स्पष्ट जनादेश के साथ सरकार बनाती नजर आ रही है।
बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता और स्टार प्रचारक पीएम मोदी ने राज्य में लंबे-लंबे रोड शो और बड़ी – बड़ी जनसभाएं कीं। इलेक्शन मशीन कही जाने वाली बीजेपी के नेताओं ने बीते कुछ दिनों में कर्नाटक के पूरे सियासी मैदान को नाप दिया था। सांप्रदायिक ध्रूवीकरण से लेकर नए लोगों को टिकट देने तक के तमाम पैंतरे अपनाए गए, लेकिन फिर भी भगवा दल दक्षिण के अपने इस एकमात्र गढ़ को बचाने में असफल रहा। अधिकांश सर्व पहले से ही राज्य में बीजेपी के खराब हालत को बयां कर रहे थे। एग्जिट पोल्स का इशारा भी इसी तरफ था। शऩिवार को जब ईवीएम खुले तो ये सारी भविष्यवाणियां सच साबित हुईं।
कर्नाटक में क्यों मजबूत दिख रही कांग्रेस ?
कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी द्वारा आक्रमक चुनाव अभियान चलाने के बावजूद कांग्रेस पार्टी बढ़त बनाए हुए थी। पीएम मोदी जैसे लोकप्रिय नेता की ताबड़तोड़ रैलियां गुजरात जैसा कमाल यहां नहीं दिखा पाईं। इसके पीछे राज्य में पार्टी का मजबूत जातीय जनाधार और भाजपा सरकार की अलोकप्रियता है। देश के अन्य राज्यों में आतंरिक गुटबाजी के लिए कुख्यात कांग्रेस ने कर्नाटक में जबरदस्त आतंरिक एका दिखाई है। जिसे देखकर सियासी जानकार भी हैरान हैं।
कांग्रेस पार्टी को अक्सर सेल्फ गोल करने वाली पार्टी माना जाता है। लेकिन कर्नाटक में जिस तरह से पार्टी एकजूट होकर चुनाव लड़ी, उसे एक बड़ी कामयाबी के तौर पर माना जाता है। इसलिए बीजेपी के मुकाबले यहां टिकट वितरण के दौरान नाराजगी भी कम उपजी है। सियासी जानकार कहते हैं कि कांग्रेस ने चुनाव को लेकर एक बड़ी लड़ाई यहीं जीत ली थी।
कर्नाटक में कांग्रेस बीजेपी से रही है मजबूत
हिंदी पट्टी के राज्यों में कांग्रेस का जनाधार तेजी से नीचे गया है। उत्तर के राज्यों में जब कभी कांग्रेस हारी है तो एक तरह से उसका पूरा सूफड़ा साफ हुआ है। लेकिन कर्नाटक में ऐसा नहीं हुआ है। यहां कांग्रेस बीजेपी के हाथों हारी जरूर लेकिन वो हार सम्मानजनक रही। क्योंकि पार्टी विपक्ष में बैठने के बावजूद सत्तारूढ़ दल से अधिक वोट प्रतिशत हासिल करती रही है। बीजेपी अब तक राज्य में स्पष्ट जनादेश के साथ सरकार नहीं बना पाई है। उसे निर्दलीयों या अन्य दलों में तोड़फोड़ करना पड़ा है। जबकि कांग्रेस ने स्पष्ट जनादेश के साथ हासिल की है। 1999, 2013 के बाद अब 2023 का विधानसभा चुनाव परिणाम इसके उदाहरण हैं।
कमजोर सीएम और अलोकप्रिय सरकार
भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक में अभी तक एकबार भी स्थिर सरकार नहीं दे पाई है। 2013 में भी हार का बड़ा कारण यही था। उस दौरान पार्टी ने 5 साल के अंदर तीन सीएम बदले थे। इस बार भी पार्टी दो सीएम बदल चुकी है। कद्दावर लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को हटाकर बीजेपी ने जनता दल से बीजेपी में आए एक अन्य लिंगायत नेता बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री जरूर बना दिया। लेकिन बोम्मई न तो संगठन में और न ही सरकार में अपना प्रभाव छोड़ पाए। इसके अलावा वे इतने समय में लिंगायतों के नेता भी नहीं बन पाए।
अन्य राज्यों के मुकाबले यहां पार्टी में आतंरिक रूप से जबरदस्त गुटबाजी है। पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार जैसे नेताओं को पार्टी छोड़कर जाना इसका उदाहरण है। कर्नाटक की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि कई पुराने हार्डकोर भाजपा नेताओं को दरकिनार कर दूसरे दल से बीजेपी में आए एक नेता को मुख्यमंत्री बनाना भी पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हुआ है।
कांग्रेस की तिकड़ी ने बिगाड़ा बीजेपी का गेम
कांग्रेस पार्टी देश के अन्य हिस्सों में लीडरशिप क्राइसिस से गुजर रही है। राज्यों में उसके बड़े नेता नाराज होकर या तो दूसरी पार्टी में चले गए या खुद का संगठन बना लिया। लेकिन कर्नाटक में ऐसा नहीं है। यहां कांग्रेस के पास तीन नेताओं की ऐसी तिकड़ी है, जिसने पीएम मोदी, अमित शाह और बीएस येदियुरप्पा जैसे भाजपाई दिग्गजों को पानी पिला दिया। कांग्रेस अपने जिस त्रिमूर्ति के सहारे कर्नाटक के रण में बीजेपी पर भारी पड़ती नजर आ रही है, वो हैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार, पूर्व मुख्यमंत्री एस सिद्धारमैया और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे।
डीके शिवकुमार
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार को कर्नाटक कांग्रेस का संकटमोचक माना जाता है। साल 2013 में जब कांग्रेस को बीजेपी पर बड़ी जीत मिली थी, तब वो ही अध्यक्ष पद पर आसीन थे। संयोगवश दस साल बाद यानी 2023 में एकबार फिर उनके हाथ में राज्य कांग्रेस की कमान है। शिवकुमार जोड़तोड़ वाली राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। 2018 में उन्हीं का प्रबंधन था कि बीएस येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा था और प्रदेश में जेडीएस – कांग्रेस की सरकार बनी थी। डीके शिवकुमार कर्नाटक की दूसरी सबसे प्रभावशाली जाति वोक्कालिगा से आते हैं। जिसकी आबादी सूबे में लिगायतों के बाद सबसे अधिक 11 प्रतिशत है और वे करीब 48 सीटों पर प्रभाव रखते हैं।
सिद्धारमैया
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस सिद्धारमैया कभी जनता दल सेक्यूलर में हुआ करते थे और पूर्व पीएम एच डी देवगौड़ा के काफी करीबी माने जाते थे। लेकिन जैसे ही देवगौड़ा ने पार्टी में अपने बेटे कुमारस्वामी को आगे बढ़ाना शुरू किया, सिद्धारमैया ने अपनी राह अलग कर ली और वे कांग्रेस में शामिल हो गए। इसका उन्हें फायदा भी मिला। 2013 में मल्लिकार्जुन खड़गे और डीके शिवकुमार जैसे दिग्गजों को दरकिनार कर कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री नियुक्त किया। सिद्धारमैया 1988 के बाद राज्य के पहले ऐसे सीएम बने जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
कुरूबा (7 फीसदी) ओबीसी समुदाय से आने वाले सिद्धारमैया कर्नाटक में विशाल जनाधार वाले नेता हैं। ओबीसी, दलित और मुस्लिम मतदाताओं के बीच उनकी खासी पकड़ है। विधायक, मंत्री, उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री रहे सिद्धारमैया के कद का कोई नेता कांग्रेस के पास भी नहीं है, जिसका पूरे राज्य में जनाधार हो। तमाम ओपिनियन पोल्स में उन्हें सीएम पद की रेस में सबसे आगे दिखाया जा रहा है। सिद्धारमैया ऐलान कर चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है। उनके बेटे ने रूझानों के बाद ही उन्हें सीएम बनाने की मांग आलाकमान के सामने रख दी है।
मल्लिकार्जुन खड़गे
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की गिनती भी कांग्रेस के जनाधार वाले नेताओं में होती है। एकदम नीचे से राजनीति शुरू कर आज शीर्ष तक पहुंचे खड़गे के पास पांच दशक का लंबा सियासी अनुभव है। दलित समुदाय से आने वाले खड़गे कई अहम पदों पर रह चुके हैं। वह राज्य के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए। दलित समुदाय की राज्य में आबादी में 20 प्रतिशत के करीब है।
कांग्रेस के ये तीन नेता जिन जातीय समुदायों से आते हैं, उन्हें मिला लें तो कुल 38 फीसदी वोट बैठता है। बीजेपी इस कन्नड़ तिकड़ी का कोई तोड़ निकाल नहीं निकाल पाई। प्रधानमंत्री की रैलियों में भीड़ तो खूब उमड़ी लेकिन वो वोट में परिवर्तित नहीं हो पाई।