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साबुन का ये इतिहास: कोई नहीं जानता, यकीन नहीं तो देखें ये रिपोर्ट

क्‍या आप जानते हैं कि भारत में साबुन कब और कैसे आया। इसका पहला कारखाना देश के किस शहर में और किस कंपनी ने लगाया। भारत में साबुन और डिटर्जेंट और साबुन ने एक लंबा सफर तय किया है।

Shivakant Shukla
Published on: 20 Jan 2020 6:28 AM GMT
साबुन का ये इतिहास: कोई नहीं जानता, यकीन नहीं तो देखें ये रिपोर्ट
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दुर्गेश पार्थ सारथी

साबुन आम से लेकर खास लोगों की जरूरत बन चुका है। हर कोई अपनी पसंद अनुसार इसका इस्‍तेमाल नहाने से लेकर कपड़े धोने तक में करता है। समय के अनुसार यह विभिन्‍न रंग-रूप और खुशबू में देश के बाजारों में अपनी मौजूदगी दर्ज करता है। यही नहीं यह अब बदलते समय के साथ लिक्विड यानी शैंपू के रूप में भी मौजूद है।

लीवर ब्रदर्स ने की साबुन की मार्केटिंग

क्‍या आप जानते हैं कि भारत में साबुन कब और कैसे आया। इसका पहला कारखाना देश के किस शहर में और किस कंपनी ने लगाया। भारत में साबुन और डिटर्जेंट और साबुन ने एक लंबा सफर तय किया है।

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ब्रिटिश शासन के दौरान लीबर ब्रदर्स इंग्‍लैंड ने भारत में पहली बार आधुनिक साबुन बाजार में उतारने का खतरा मोल लिया। कंपनी ने साबुन आयात किए और यहां उनकी मार्केटिंग की। हलांकि नॉर्थ वेस्‍ट सोप कंपनी पहली ऐसी कंपनी थी जिसने 1897 में यहां पहला कारखाना लगाया।

उत्‍तर प्रदेश के मेरठ में लगा पहला कारखाना

उत्‍तर प्रदेश के मेरठ शहर में साबुन का पहला कारखाना लगा। प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान साबुन उद्योग बुरु दौर से गुजर रहा था लेकिन इसके बाद देशभर में यह कारोबार खूब फला-फूला।

जमशेद जी टाटा ने लगाया पहला स्‍वदेशी कारखाना

साबुन की कामयाबी की एक अहम कड़ी में जमशेद जी टाटा ने 1918 में केरल के कोच्चि में ओके कोकोनटा हॉयल मिल्‍स खरीदी और देश की पहली स्‍वदेशी साबुन निर्माण इकाई स्‍थापित की। इसका नाम बदलकर टाटा ऑयल मिल्‍स कंपनी कर दिया गया। और उसके पहले ब्रांडेड साबुन बाजार में 1930 की शुरूआत में दिखने लगे।

1937 में धनाढ्य वर्ग की जरूरत बन गया था साबुन

साबुन का क्रेज लोगों में इस कदर बढ़ा कि यह 1937 में धनाढ्य वर्ग के लोगों की जरूरत बन गया। साबुन को लेकर ग्राहकों की पसंद अलग-अलग रही है। इसे हम क्षेत्रवार वर्गीकरण के तहत समझ सकते हैं। उत्‍तर भारत में उपभोक्‍ता गुलाबी रंग के साबुन को तरजी देते हैं, जिसका प्रोफाइल फूल आधारित होता है।

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यहां साबुन की खुशबू को लेकर ज्‍यादा आधुनिक प्रोफाइल चुने जाते हैं जो उनकी जीवन शैली का अक्‍स दिखाएं। नींबू की महक के साथ आने वाले साबुन भी खासी लोकप्रियता रखते हैं। क्‍योंकि उत्‍तर भारत में मौसम बेहद गर्म रहता है और नींबू के खुशबू रखने वाले साबुन को तरोताजा होने के लिए अहम माना जाता है। साबुन को लेकर पूर्वी भारत ज्‍यादा बड़ा बाजार नहीं है। यहां साबुन तथा डिटर्जेंट की खुशबू को लेकर ज्‍यादा संजीदगी नहीं दिखाई जाती है। पश्चिमी भारत में गुलाब की महक रखने वाले साबुन पसंद किए जाते हैं।

साबुन की मार्केटिंग में महिलाओं को दी जाती है तवज्‍जो

देश के दक्षिणी भाग में हर्बल-आयुर्वेदिक औ चंदन आधारित साबुन की गांग ज्‍यादा है। यहां का ग्राहक किसी ब्रांड विशेष को लेकर ज्‍यादा लॉयल नहीं होता और दूसरी कंपनी का सबुन इस्‍तेमाल करने को लेकर खुला रुख रखता है।

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साबुन की मार्केटिंग करते वक्‍त महिलाओं को खास तवज्‍जो दी जाती है, क्‍योंकी कौन सा साबुन खरीदना है, यह फैसला परिवार में काफी हद तक उन पर निर्भर करता है। इसके अलावा परिवारों को प्रीाावित करने के लिए कीटाणु मारने वाले एंटी-बैक्‍टीरियल और शरीर की दुर्गंध दूर करने वाले साबुन भी पेश किए जाते हैं।

देश की पुरानी कंपनियों में से एक है मैसूर सैंडल सोप

बदलते समय के साथ आज देश में कई तरह के साबुन उपलब्‍ध है। इसमें सबसे पुराना साबुन मैसूर सैंडल सोप एंड डिटर्जेंट देश की पुरानी साबुन निर्माता कंपनियों में से एक है। इसकी स्‍थापना तत्‍कालीन मैसूर के महाराजा ने करी सौ साल पहले की थी। देश की आजादी के बाद यह राज्‍य सरकार का उपक्रम हो गया। लेकिन आज भी यह बाजार में कई विदेशी कंपनियों को टक्‍कर दे रहा है।

Shivakant Shukla

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