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स्वराज देने वाला, क्रांति से कुछ इस तरह जुड़ा है इनका नाता

सखाराम गणेश देउसकर एक ऐसी पर्सानाल्टी थे जिसकी रूट्स मराठों से जुड़ी थीं। लेकिन जन्म झारखंड में देवघर के पास करौं गांव में हुआ। लेकिन ये पले बढ़े बंगाली परिवेश में। कुल मिलाकर ये महाराष्ट्र और बंगाल के बीच सेतु थे।

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Published on: 23 Nov 2020 10:48 AM IST
स्वराज देने वाला, क्रांति से कुछ इस तरह जुड़ा है इनका नाता
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स्वराज देने वाला, क्रांति से कुछ इस तरह जुड़ा है इनका नाता (photo by social media)

नई दिल्ली: एक ऐसी शख्सियत जिसकी लेखनी से डर गया था ब्रिटिश साम्राज्य। जिसने सबसे पहले दिया स्वराज शब्द, जिन्हें कहा गया बंगाल का तिलक। जो क्रांतिकारी लेखक था। इतिहासकार था। और इस सबसे बढ़कर पत्रकार था। हम बात कर रहे हैं सखाराम गणेश देउसकर की।

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लेकिन जन्म झारखंड में देवघर के पास करौं गांव में हुआ

सखाराम गणेश देउसकर एक ऐसी पर्सानाल्टी थे जिसकी रूट्स मराठों से जुड़ी थीं। लेकिन जन्म झारखंड में देवघर के पास करौं गांव में हुआ। लेकिन ये पले बढ़े बंगाली परिवेश में। कुल मिलाकर ये महाराष्ट्र और बंगाल के बीच सेतु थे। बताया जाता है कि इनके पूर्वज महाराष्ट्र के रत्नागिरि ज़िले में आलबान नामक किले के निकट देउस गाँव के निवासी थे।

सखाराम को भारतीय जनजागरण का विचारक कहा जाता है। ये बाल गंगाधर तिलक के अनुयायी थे। और बंगाल में जागृति लाने के कारण इन्हें बंगाल का तिलक कहा गया। हिन्दी का विरोध करने वालों को इनसे सीख लेनी चाहिए। मराठा पृष्ठभूमि और बंगाली परिवेश में पले बढ़े होने के बावजूद हिन्दी के प्रति इनके मन में अगाध प्रेम था। और हिन्दी के प्रचार के लिए ये निरंतर लगे रहे।

बचपन में ही माँ का आंचल छूट गया

सखाराम गणेश देउसकर का जन्म प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के लगभग एक दशक बाद 17 दिसंबर, 1869 को उस समय बिहार अब झारखंड में देवघर के पास करौं गांव में हुआ था। बचपन में ही माँ का आंचल छूट गया। पालन- पोषण उनकी बुआ ने किया। बुआ मराठी साहित्य की जानकार थीं। इसलिए उनका प्रभाव बालक देउस्कर पर काफी रहा। उनकी दिलचस्पी इतिहास और साहित्य में हमेशा रही।

1893 में सखाराम ने पढ़ाई के बाद शिक्षक के तौर पर काम करना शुरू किया

उन्होंने वेदों का अध्य़यन तो किया ही साथ में बांग्ला भाषा भी सीखी। 1893 में सखाराम ने पढ़ाई के बाद शिक्षक के तौर पर काम करना शुरू किया। लगभग एक साल बाद 1894 में देवघर में हार्ड नामक एक मजिस्ट्रेट के अन्याय और अत्याचार से तंग आकर उन्होंने उसके विरोध में कोलकाता से प्रकाशित होने वाले ‘हितवादी’ नामक अख़बार में कई लेख दिये, जिसके कारण हार्ड ने उनको शिक्षक की नौकरी से निकालने की धमकी दी।

स्वाभिमानी देउस्कर यह सहन नहीं कर पाए और उन्होंने स्वयं ही नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद वे कोलकाता चले गये और हितवादी अख़बार के साथ काम करने लगे। उनकी असाधारण प्रतिभा को देखते हुए उन्हें इस अख़बार का संपादक नियुक्त कर दिया गया।

हिंदी अनुवाद 'देश की बात' बाबूराव विष्णु पराड़कर ने किया

सखाराम गणेश देउस्कर के प्रमुख ग्रंथ- महामति रानडे (1901), झासीर राजकुमार (1901), बाजीराव (1902), आनन्दी बाई (1903), शिवाजीर महत्व (1903), शिवाजीर शिक्षा (1904), शिवाजी (1906), देशेर कथा (परिशिष्ट) (1907), कृषकेर सर्वनाश (1904), तिलकेर मोकद्दमा ओ संक्षिप्त जीवन चरित (1908), आदि।

सखाराम के लिखे ग्रन्थ 'देशेर कथा' ने देश की आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। अरविंद घोष ने लिखा है कि 'स्वराज्य' शब्द का पहला प्रयोग 'देशेर कथा' में सखाराम गणेश देउस्कर ने ही किया था। इस ग्रन्थ का हिंदी अनुवाद 'देश की बात' बाबूराव विष्णु पराड़कर ने किया।

इस ग्रन्थ में देउस्कर ने एक पराधीन देश की दशा का हाल बयान किया। उनका 'स्वरज्य' शब्द स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गया और बहुत से युवा इस आंदोलन से जुड़ने लगे। ब्रिटिश सरकार घबड़ा गई और उसने इस किताब पर रोक लगा दी। लेकिन अंग्रेज हुकूमत देउस्कर के विचारों और उनकी लेखनी को रोक नहीं पाए।

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1905 में बंग-भंग के विरोध में सखाराम देउसकर का बड़ा योगदान रहा। साल 1910 में देउस्कर अपने मूल गाँव करौं लौट आए और यहीं रहने लगे। गांव लौटने के दो साल बाद 23 नवंबर, 1912 को इस राष्ट्रभक्त लेखक पत्रकार का निधन हो गया।

रिपोर्ट- रामकृष्ण वाजपेयी

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