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Kuno Cheetahs Death: इसलिए मर रहे कुनो के चीते, रेडियो कॉलर बने जानलेवा, अब हटाये जाएंगे

Kuno Cheetahs Death: विशेषज्ञों ने कहा था कि चीतों की गर्दन में लगे रेडियो कॉलर की वजह से जानलेवा इन्फेक्शन हुआ और चीतों की मौत हो गई।

Neel Mani Lal
Published on: 17 July 2023 10:03 AM IST
Kuno Cheetahs Death: इसलिए मर रहे कुनो के चीते, रेडियो कॉलर बने जानलेवा, अब हटाये जाएंगे
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Kuno Cheetahs Death (फोटो: सोशल मीडिया )

Kuno Cheetahs Death: तीन दिनों के भीतर दो चीतों की मौत के बाद अधिकारियों ने मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में 10 चीतों से रेडियो कॉलर हटाने का फैसला किया है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम दो दक्षिण अफ्रीकी चीता विशेषज्ञों के बयानों के बाद आया है। इन विशेषज्ञों ने कहा था कि चीतों की गर्दन में लगे रेडियो कॉलर की वजह से जानलेवा इन्फेक्शन हुआ और चीतों की मौत हो गई।

मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) जे एस चौहान के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि “मानसून में रेडियो कॉलर के कारण संक्रमण फैलने की संभावना रहती है। स्किन गीली रहने के कारण वह टूट सकती है और मक्खी के संपर्क के बाद संक्रमण फैल सकता है। चीतों की मौत का एक कारण यह भी हो सकता है। हमें यह देखने के लिए गहन जांच की ज़रूरत है कि क्या इसके अन्य कारण भी हैं। दोनों चीतों के अंगों को समान क्षति हुई - उनके गुर्दे, हृदय, प्लीहा और गुर्दे क्षतिग्रस्त हो गए। रेडियो कॉलर कोई घातक मुद्दा नहीं है, यह एक कारक हो सकता है और इसका समाधान किया जाना चाहिए।”

इसके पहले इससे पहले, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) ने कहा था कि रेडियो कॉलर के कारण चीतों की मौत की रिपोर्ट वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित नहीं है, और "सभी मौतें प्राकृतिक कारणों से हुईं हैं"।

विशेषज्ञ ने क्या कहा है

द इंडिपेंडेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण अफ्रीका के एक प्रमुख विशेषज्ञ एड्रियन टॉर्डिफ़ ने कहा है कि इस सप्ताह कूनो राष्ट्रीय उद्यान में दो अफ्रीकी चीतों की मौत रेडियो कॉलर के नीचे की गीली त्वचा में कीड़ों के संक्रमण और फिर उनके रक्त में बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण हुई है। कुनो में चीतों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए लगभग 400 ग्राम वजन वाले सैटेलाइट रेडियो कॉलर उनकी गर्दन में लगाये गए हैं।

14 जुलाई को दूसरे चीते सूर्या के शव परीक्षण के वीडियो की जांच पशुचिकित्सा वन्यजीव विशेषज्ञ एड्रियन टॉर्डिफ़ द्वारा की गई, जिसमें दिखाया गया कि चीते की गर्दन पर और कॉलर के नीचे की गीली त्वचा से उन्हें सेप्टीसीमिया होने का खतरा था। यह खून में जीवाणु संक्रमण है जो त्वचा संक्रमण से पैदा होता है।

चीता री इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट के विशेषज्ञ टॉर्डिफ़ ने बताया कि यह स्पष्ट था कि चीते में बहुत अधिक डर्मेटाइटिस था, जो कॉलर के नीचे की त्वचा का संक्रमण था। बहुत गीले मौसम के कारण कॉलर के नीचे पानी जमा हो जाता है और त्वचा लगातार गीली रहती है। अगर कॉलर वहां नहीं होता तो ऐसा कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा: “इससे डर्मेटाइटिस हो जाता है, त्वचा में संक्रमण हो जाता है, जो फिर उस क्षेत्र में मक्खियों को आकर्षित करता है, ये मक्खियाँ अंडे देती हैं और फिर कीड़े लग जाते हैं, मक्खी का लार्वा संक्रमित ऊतकों को खाना शुरू कर देता है, वह त्वचा में छेद कर देता है और घाव बना देता है।” वे घाव फिर सेप्टिसीमिया का कारण बनते हैं, जो 10 जुलाई को मरे चीते के साथ बहुत हद तक मेल खाता है।

परियोजना के प्रभारी वन अधिकारियों ने पहले दावा किया था कि चीतों की मौत हिंसक संघर्ष के कारण हुईं हैं।

एड्रियन टॉर्डिफ़ ने कहा : “मेरे विचार से, ये घाव निश्चित रूप से किसी अन्य जानवर के कारण नहीं हुए हैं। वे वास्तव में एक ऐसी समस्या के कारण उत्पन्न हुए हैं जिसके घटित होने की हमने वास्तव में कल्पना नहीं की थी, क्योंकि हमने अफ्रीका में चीतों में बिना किसी समस्या के कॉलर लगाए थे।"

Neel Mani Lal

Neel Mani Lal

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