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शास्त्री जी की जयंती भी आज, मगर जन्मतिथि पर उठते हैं सवाल, जानें क्यों...

शास्त्री जी की जन्मतिथि को लेकर पहले भी कई बार सवाल उठ चुके हैं। बनारस के बगल में स्थित चंदौली जिले के पीडीडीयू नगर के जिस प्राइमरी स्कूल में शास्त्री जी का पहली बार दाखिला कराया गया था।

Shivani
Published on: 2 Oct 2020 5:09 AM GMT
शास्त्री जी की जयंती भी आज, मगर जन्मतिथि पर उठते हैं सवाल, जानें क्यों...
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अंशुमान तिवारी

लखनऊ। देश को ब्रिटिश राज से मुक्ति दिलाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती हर साल 2 अक्टूबर को मनाई जाती है। महात्मा गांधी के अलावा एक और महापुरुष की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है और वह महापुरुष हैं देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री। देश को जय जवान और जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री जी को सादगी और ईमानदारी की मिसाल माना जाता रहा है। हालांकि पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी इसी दिन बनाता है मगर एक हैरान करने वाली बात यह है कि स्कूली दस्तावेजों में शास्त्री जी की जन्मतिथि 8 जुलाई, 1903 दर्ज है।

बचपन में नाना ने दिया था सहारा

देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म बनारस में गंगा के दूसरे किनारे पर मौजूद रामनगर में हुआ था। जब वे तीन साल के थे तभी 1906 उनके नायब तहसीलदार पिता का निधन हो गया। परिवार पर आई इस बड़ी मुसीबत के दौरान शास्त्री जी के नाना ने उनकी मां और तीन बच्चों को काफी सहारा दिया। शास्त्री जी के नाना मुगलसराय के रेलवे बेसिक स्कूल में हेडमास्टर के पद पर तैनात थे मगर दो साल बाद ही उनका भी निधन हो गया। शास्त्री जी के नाना के निधन के बाद उनके भाई हनकू लाल रेलवे स्कूल के हेडमास्टर बने और उन्होंने शास्त्री जी के परिवार को काफी मदद की।

lal bahadur Shastri jayanti 8 july date of Birth Recorded in school documents

प्राइमरी स्कूल में जन्मतिथि 8 जुलाई दर्ज

शास्त्री जी की जन्मतिथि को लेकर पहले भी कई बार सवाल उठ चुके हैं। बनारस के बगल में स्थित चंदौली जिले के पीडीडीयू नगर के जिस प्राइमरी स्कूल में शास्त्री जी का पहली बार दाखिला कराया गया था वहां उनकी जन्मतिथि 8 जुलाई, 1903 लिखाई गई थी। इसी स्कूल के पूर्व छात्रों के नामांकन रजिस्टर संख्या 958 में शास्त्री जी के अभिभावक के रूप में हनकू लाल का ही नाम दर्ज है।

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मुगलसराय में शुरुआती पढ़ाई के बाद 1917 में शास्त्री जी आगे का अध्ययन करने के लिए बनारस चले गए। बाद में उन्होंने हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज और रेलवे इंटर कॉलेज में भी पढ़ाई की और वहां भी उनकी जन्मतिथि 8 जुलाई,1903 ही लिखाई गई। बाद के दिनों में उनकी जन्म देती सही कराकर दो अक्टूबर, 1904 लिखाई गई।

lal bahadur Shastri jayanti 8 july date of Birth Recorded in school documents

जब पंडित नेहरू ने दी शास्त्री जी को बधाई

इस बाबत शास्त्री जी के बेटे अनिल शास्त्री का कहना है कि सही बात तो यह है कि बाबू जी की सही जन्मतिथि 2 अक्टूबर ही है। उनका कहना है कि प्राइमरी स्कूल में पिताजी के नाना ने भूलवश जन्मतिथि 8 जुलाई लिखा दी थी। उन्होंने कहा कि मुझे आज तक याद है कि गांधी जयंती के दिन एक बार देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी बाबू जी को जन्मदिन की बधाई दी थी।

महात्मा गांधी को दिया था यह जवाब

शास्त्री जी के एक और बेटे सुनील शास्त्री का भी कहना है कि बाबूजी की असली जन्मतिथि 2 अक्टूबर ही थी। उनका कहना है कि एक बार महात्मा गांधी ने खुद बाबू जी से पूछा था कि वह अपना जन्मदिन क्यों नहीं मनाते। इस पर बाबूजी ने जवाब दिया था कि आपके जन्म दिवस का जश्न मना लेने पर मुझे अपना जन्मदिन मनाने की जरूरत ही महसूस नहीं होती।

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सादगी और ईमानदारी की मिसाल

लाल बहादुर शास्त्री की सादगी की मिसाल माना जाता रहा है और अपनी सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति के बल पर ही वे देश के प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने में कामयाब हुए। उनकी ईमानदारी और स्वाभिमान वाली छवि के कारण ही आज भी शास्त्री जी को काफी सम्मान से याद किया जाता है। वे करीब 19 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान उन्होंने दुनिया को भारत की शक्ति का एहसास कराया।

lal bahadur Shastri jayanti 8 july date of Birth Recorded in school documents

जय जवान और जय किसान का नारा

1965 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद में जब देश सूखे की विपदा से घिरा तो इन विषम परिस्थितियों से उबरने के लिए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने का अनुरोध किया था। उन्होंने देश को जय जवान और जय किसान का नारा दिया और महिलाओं को रोजगार देने की दिशा में सबसे पहले काम किया। देश की आजादी की लड़ाई में गई उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

भारत छोड़ो आंदोलन में लिया हिस्सा

उन्होंने 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। क्रांतिकारियों की एक बैठक में हिस्सा लेने के लिए वे रूप बदल करने नैनी जा रहे थे, लेकिन मुखबिरी होने के बाद 19 अगस्त 1942 को उन्हें अंग्रेज पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। वे देश का प्रधानमंत्री बनने के बावजूद सादगी भरा जीवन जीते रहे और यही कारण है कि आज भी उन्हें हर कोई सम्मान के साथ याद करता है।

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