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UCC: लाॅ कमीशन को मिले अब तक 50 लाख सुझाव, चुनिंदा सुझाव पर होगी चर्चा, जानिए क्या होगा इसके बाद!
UCC: यूसीसी पर लाॅ कमीशन के सुझाव के बाद, कुछ चुनिंदा सुझावों पर आयोग चर्चा होगी और उसके बाद इस पर अमल के लिए आगे बढ़ाया जाएगा।
UCC: यूसीसी को लेकर देश भर में चर्चाएं जोरों पर हैं। पिछले दिनों भोपाल में पीएम मोदी द्वारा इस पर दिए गए बयान के बाद इस पर बहस छिड़ गई है। कोई इसके विरोध में है तो कोई इसके समर्थन में। वहीं लाॅ कमीशन ने यूसीसी पर सार्वजनिक रूप से लोगों और संगठनों के सुझाव मांगे थे और इसके लिए 30 दिन का समय सीमा तय किया गया था। जिसका आज अंतिम दिन है।
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लाॅ कमीशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) पर 14 जून को नोटिस जारी किया था। यूसीसी पर सुझाव की आखिरी तारीख 14 जुलाई तय की गई थी। अब तक लाॅ कमीशन को 50 लाख से अधिक सुझाव मिल चुके हैं। विधि आयोग का मानना है कि यह मुद्दा भारत के हर नागरिक से जुड़ा है। इस पर कोई निर्णय लेने से पहले जनता की राय जानना जरूरी है।
27 जून को मध्य प्रदेश में एक जनसभा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि वर्तमान में यूसीसी के नाम पर भड़काने का काम हो रहा है। एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे के लिए दूसरा, तो वो घर नहीं चल पाएगा। ऐसे में दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट भी कह रही है कि कॉमन सिविल कोड लाओ।
इसके बाद कई विपक्षी पार्टियां पीएम मोदी और भाजपा पर हमला बोलने लगीं। पीएम के इस बयान को कांग्रेस, एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन आवैसी समेत कई पार्टियों ने भाजपा पर मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की साजिश बताया था। वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड ने भी मंगलवार को बैठक बुलाई और अपना पक्ष लॉ कमीशन के सामने रखने की बात कही।
विधि आयोग के चेयरमैन जस्टिस ऋतुराज अवस्थी का भी बयान सामने आया था, जिसमें उन्होंने कहा, यूसीसी कोई नया मुद्दा नहीं है। हमने कंसल्टेशन प्रोसेस भी शुरू कर दी है। इसके लिए आयोग ने देश की जनता की राय मांगी है।
जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने देशद्रोह कानून पर भी बात की। उन्होंने कहा-देश की एकता और अखंडता के लिए देशद्रोह कानून जरूरी है। कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में भी देशद्रोह से जुड़ी हुई धारा 124। को इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) में बरकरार रखने की सिफारिश की है।
लागू हुआ, तो क्या होगा असर
यूसीसी के लागू होने पर कई बदलाव हो जाएंगे। देश में सबके लिए एक समान कानून हो जाएगा। इसका कहीं लाभ तो कहीं हानी भी होगा। आइए जानते हैं कि यूसीसी के लागू होने पर क्या होगा?
पर्सनल लॉ पर आ जाएगा संकट
भारत में विविधता के आधार पर अलग-अलग धर्म और समुदायों के अपने-अपने पर्सनल लॉ हैं और यूसीसी के लागू होने पर इन पर्सनल लॉ पर संकट आएगा। कारण यह है कि किसी भी व्यक्तिगत मामले में जब दोनों पक्षों का पर्सनल लॉ अलग-अलग हो, तो कोर्ट के सामने भी समस्या हो जाती है या फिर पर्सनल लॉ की बाध्यता के चलते कोर्ट भी किसी व्यक्ति के अधिकार की रक्षा करने में अक्षम नजर आती है। यूसीसी का असर पर्सनल लाॅ पर साफ दिखेगा।
शरीयत को भी चुनौती मिलेगी
यूसीसी का बहुसंख्यक आबादी पर कोई खास असर नहीं होगा। लेकिन, मध्यप्रदेश में मुसलमानों की 7 प्रतिशत और आदिवासियों की 21 प्रतिशत आबादी पर इसका अधिक प्रभाव पड़ेगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि बहुविवाह, तलाक और उत्तराधिकार को लेकर इनके व्यक्तिगत कानून बहुसंख्यक हिंदुओं से अलग हैं।
एक से अधिक विवाह भी अपराध
मुस्लिम पर्सनल लॉ में मुसलमानों को एक से अधिक निकाह की मान्यता है। वहीं यूसीसी लागू होने के बाद एक से अधिक विवाह अपराध होगा। वहीं इसके अलावा, अगर कोई मुस्लिम महिला अपने पति को तलाक देने के बाद वापस उसके साथ रहना चाहे, तो हलाला और इद्दत जैसी प्रक्रियाओं की अनिवार्यता भी खत्म हो जाएगी।
लैंगिक समानता के कानून को मिलेगा बढ़ावा
अगर कोई मुस्लिम महिला अपने पति को तलाक देने के बाद वापस उसके साथ रहना चाहे, तो हलाला और इद्दत जैसी प्रक्रियाओं की अनिवार्यता होती है, जो समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद यह खत्म हो जाएगी। इसलिए जब भी यूसीसी की बात होती है, तो इसे लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले कानून के रूप में भी देखा जाता है।
महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति में मिलेगा हिस्सा
यूसीसी लागू होने के बाद महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलना शुरू हो जाएगा। अगर कोई भी पारसी महिला दूसरे धर्म में शादी करती है, तो उनके व्यक्तिगत कानून के हिसाब से उन्हें पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता, लेकिन यूसीसी उन्हें ये अधिकार दिलाने में सक्षम है। इस तरह से इसे लैंगिक समानता से भी जोड़कर भी देखा जा रहा है।
जब अंग्रेजों तक ने इसे नहीं छुआ तो फिर मोदी सरकार क्यों अड़ी है इस पर?
यनिफाॅर्म सिविल कोड की पहली बार चर्चा अक्टूबर 1840 में हुई थी। लेकिन इसे अंग्रेजों ने लागू नहीं किया। वहीं आजादी के बाद बीआर अंबेडकर ने इस पर स्टैंड लिया तो संविधान सभा में यूसीसी पर काफी लंबी बहस हुई। इसे डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स में डाल दिया गया, लेकिन कानून नहीं बनाया जा सका। अब सवाल यह उठता है कि जब अंग्रेजों ने यूसीसी को नहीं छुआ और अंबेडकर को पीछे हटना पड़ा तो फिर मोदी सरकार क्यों इसे लागू करने पर क्यों अड़ी है?
किस डर से आदिवासियों को छूट देने की तैयारी में मोदी सरकार
केंद्र सरकार के लिए भी यूसीसी को अमल में लाना आसान नहीं होगा। ऐसे में यहा प्रश्न यह है कि क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड इस बार भी यूनिफॉर्म नहीं होगा? तीन जुलाई को संसदीय कमेटी की बैठक में इस बात के संकेत मिले। कमेटी के अध्यक्ष और सीनियर बीजेपी लीडर सुशील कुमार मोदी ने सुझाव दिया कि आदिवासी समाज पर असर न पड़े, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि बीजेपी यूसीसी में में आदिवासियों को नहीं शामिल करना चाहती?
यूसीसी को लेकर विधि आयोग की समय सीमा समाप्त होने के बाद अब आगे इस पर क्या होगा और सरकार इसे कैसे अमल में लाएगी यह देखना होगा। लेकिन इतना तो तय है कि यूसीसी को अमल में लाना मोदी सरकार के लिए आसान नहीं होगा।