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आसान नहीं है पीपीई किट में ज़िंदगी, होती हैं ये दिक्कतें
कोरोना वायरस के संकट से लोगों को बचाने की कोशिश में जुटे डॉक्टर रात दिन काम कर रहे हैं। लगातार काम वह भी पीपीई किट पहने हुये। ये कोई आसान काम नहीं है। डाक्टर कहते हैं कि वायरस बचाव के लिए जरूरी पीपीई किट हमेशा पहने रहना पड़ता है।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के संकट से लोगों को बचाने की कोशिश में जुटे डॉक्टर रात दिन काम कर रहे हैं। लगातार काम वह भी पीपीई किट पहने हुये। ये कोई आसान काम नहीं है। डाक्टर कहते हैं कि वायरस बचाव के लिए जरूरी पीपीई किट हमेशा पहने रहना पड़ता है। गर्मी के मौसम में लगातार 6 से 10 घंटे इसे पहने रहने से बहुत मुश्किल होती है। किट पहनने के बाद कुछ खाना-पीना तो दूर टॉयलेट तक नहीं जा सकते।
दुष्प्रभाव नजर आ रहे
लंबे समय तक पीपीई पहनने से हाइपोक्सिया जैसे लक्षण आ रहे हैं। मानसिक और शारीरिक थकान तो इससे हो ही रही है। इसके अलावा क्लॉस्ट्रोफोबिया (बंद जगह में घबराहट), घुटन, उलझन और डिहाइड्रेशन की समस्या भी सामने आ रही है। शुरुआत में शरीर में जलन और धुंधला दिखने की समस्या भी आती है।
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सख्त ड्यूटी
इंदौर की डॉ करुणा मुजालदा कहती हैं कि अपने करियर में उन्होने इतनी सख्त ड्यूटी कभी नहीं की। पीपीई किट केवल एक बार ही उपयोग में लाया जाता है और एक बार यूज़ करने के बाद इसका सावधानी से निस्तारण कर दिया जाता है। चूंकि इसका एक ही बार इस्तेमाल किया जाता है सो कम से कम किट का उपयोग करने की कोशिश होती है। इसलिए एक बार पहनने के बाद ड्यूटी खत्म होने के बाद ही इसे निकालते हैं।
एक अन्य डाक्टर कहते हैं कि पीपीई किट पहनने और उतारने की प्रक्रिया में ही एक घंटे का समय लग जाता है इसलिए भी डॉक्टरों को इसे हमेशा पहने रहना पड़ता है। इसमें पसीना बहुत आता है और घबराहट होती है। तनाव और मानसिक थकान का सामना करना पड़ता है। एक न्यूरोलोजिस्ट का कहना है कि पीपीई किट में 10 घंटे काम करना बेहद थका देने वाला होता है। ऐसी स्थिति में काम पर फोकस बनाए रखना आसान नहीं होता लेकिन मरीजों की जिंदगी बचाना ही डॉक्टरों का काम होता है। खुद को लगातार रीचार्ज करते रहना पड़ता है।
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लगातार मास्क पहनने से दिक्कत
दिल्ली के डॉ. श्रीराम ने बताया कि डाक्टर जो मास्क लगाते हैं वह काफी अड़चन वाला होता है। इसकी वजह से हमारा चेहरा ख़राब होने लगता है। लगातार तीन से चार घंटे पहने रहने पर हमें चेहरे पर घाव हो जाते हैं। हमें चश्मा पहनना होता है। ज़्यादा देर पहनने पर निशान पड़ जाते हैं। लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए ये सब पहनना भी ज़रूरी है। उस किट में मरीज़ों की जांच करना भी मुश्किल होता है। मुंह से भाप बनती है तो हमारे चश्में से सब धुंधला दिखने लगता है। कान भी कवर होते हैं तो सुनने में दिक्कत होती है। दुनिया भर से ऐसी तमाम फोटो आती रहीं हैं जिनमें मास्क पहनने से नर्स और डाक्टर के चेहरों पर निशान दिखाये गए हैं।
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अब फेस शील्ड से थोड़ी दिक्कत दूर हुई है लेकिन आईसीयू में काम करने वाले डाक्टरों को पूरी सावधानी और पूरी किट को पहनना जरूरी होता है। जरा सी चूक जानलेवा बन सकती है।
इस समय डॉक्टरों का शुक्रिया अदा करने का सबसे सही तरीका घर पर रहना है। डॉक्टरों को ज़रूरी सामान की आपूर्ति की ज़रूरत है। अगर सरकार उन्हें ये सब दे सके तो ये बहुत बड़ा धन्यवाद होगा।