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चौंक जाएंगेः इस प्रतिस्पर्धा में दूध नहीं, दारू की हो रही है जीत
शराब सरकार के लिए दुधारू गाय है। शराब और दूध के तैयार किये जाने व खपत के आंकडे ऐसे ही बढ़ते रहो तो वह दिन दूर नहीं कि जल्द ही हम दूध की खपत को काफ़ी पीछे छोड़ जायेंगें। हमें यह कहना पड़ सकता है-“हंगामा है क्यू बरपा थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है। “
योगेश मिश्र
-शराब पीने वालो और न पीने वालो मे एक समानता होती है।
-दोनो एक दूसरे को मूर्ख समझते हैं।
पर मूर्ख होता कौन है यह तय कर पाना उसी तरह मुश्किल है जैसे यह तय कर पाना कि पहले अंडा हुआ था या मुर्गी। कोई भी पीने वाला अपना घर नहीं भूला। किसी शराबी ने अपने परिवार की लड़कियों, महिलाओं से कभी छेड़खानी नहीं की। यह तो मौक़े की नज़ाकत है कि पीने व न पीने वालों में लाग डांट रहती है।
नजरिये का फर्क
यह समय की नज़ाकत ही है कि दस-बारह फ़ीसदी अल्कोहल वाली बीयर दारू की कोटि में आती है। जबकि 80-85 फ़ीसदी अल्कोहल वाले को सेनेटाइजर कहतें हैं।
इसका प्रयोग पूजा घर में भी करने में किसी को कोई कोताही नहीं होती है। पर मजाल है कि शराब या बीयर पीकर कोई पूजा घर में घुसने की हिमाक़त करें। यह एक ऐसा नशा है जिसकी ज़रूरत शरीर को होती है।
बॉडी अपनी ज़रूरत के लिए हमारे भोजन से अल्कोहल बनाती है। शराब का पैसे से कोई रिश्ता नहीं है। कहा जाता है कि हम प्याला वाला रिश्ता बड़ा मज़बूत होता है।
रिश्ता चीयर्स का
चीयर्स शब्द दो लोगों के बीच ऐसा रिश्ता बांधता है जो टूटे से ना टूटे। छूटे से न छूटे। जो काम पैसे से नहीं हो सकता वह शराब गिफ़्ट देकर करवाया जा सकता है। शराब को लेकर सबसे ज़्यादा शेर व शायरियाँ हैं। गाने भी बहुत है। जिन फ़िल्मों में शराब को लेकर गाने रहे वह ख़ूब चलीं।
शराब और पीने वालों पर लिखी गयी हरिवंश राय बच्चन जी की किताब मधुशाला कि रिकार्ड बिक्री भी आँख खोलने वाली है। पीने वालों ने पीने के इतने तरीक़े, इतने बहाने ईजाद किये हैं कि इनके दिमाग़ का लोहा माने बिना नहीं रहा जा सकता है।
कैसे कैसे पीने वाले
इनकी भी कई कोटि है।मोटे तौर पर इसे दो हिस्से में रख सकते हैं। फ़्री और ख़रीद कर पीने वाले। रोज व कभी कभी पीने वाले। निश्चित पैग पीने वाले अनिश्चित पैग गटक जाने वाले। कुछ खाकर पीने वाले, बिना ख़ाये पीने वाले। घर में पीने वाले, बाहर से पीकर आने वाले।
घर वालों की जानकारी में पीने वाले, उन्हें अनजान रख कर पीने वाले। पीकर लोटने वाले, पीकर बिना हाव-भाव बनाये लौटने वाले। किसी ख़ास ब्रांड की पीने वाले, किसी भी ब्रांड की पी लेने वाले।
कुछ ख़ास दोस्तों के साथ पीने वाले, किसी के साथ पी लेने में कोई गुरेज़ नहीं करने वाले। पी कर सब कुछ उगल देने वाले, पीने के बाद चुप्पी ओढ़ लेने वाले। दवा के लिए पीने वाले, दारू के लिए पीने वाले।
पीकर पिटने वाले, पीकर पीटने वाले। बेचकर पीने वाले, बिना बेचे पीने वाले। पीने का बहाना खोजने वाले, बिना बहाने के भी पीने वाले।
बहाना मतलब आज मौसम बहुत अच्छा है, आज मौसम बहुत ख़राब है, आज बड़ा दुख है, आज बहुत ख़ुशी है, आज यहाँ आया है, आज यार शहर से चला गया है । आज इत्यादि ।
इससे बड़ा गम क्या होगा
अनंत तरह के बहाने। हमारे एक दोस्त के पिता जी रोज पीने के लती थे। उनके पिता यानी दोस्त के बाबा जी का देहांत हो गया। लोगों ने समझाया आज मत पीजियेगा। बड़ी बदनामी होगी। लोग क्या कहेंगे। पर वह नहीं माने।
पीने का बेहद दिलचस्प आधार जुटाया उनने-“ हमारे जीवन में इससे बड़ा दुख क्या आयेगा। पियेंगे नहीं तो गम ग़लत कैसे होगा।” जब इतने तरीक़े हों तो माँग और मूल्य का रिश्ता रह ही कहाँ जाता है?
महंगाई से कोई रिश्ता नहीं
फिर पता नहीं क्यों एस राकेश ने अपनी ग़ज़ल की ये लाइनें लिखीं-“हुई मंहगी बहुत शराब थोड़ी थोड़ी पिया करो।” क्योंकि शराब का महंगाई से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है।
तभी तो शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी राज्य सरकारों की कमाई का बड़ा स्रोत है। लॉकडाउन के दौरान शराब की बिक्री बंद होने से राज्य सरकारों को रोज 700 करोड़ रुपए की चपत लग रही थी।
पीआरएस इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि एक्साइज ड्यूटी से राज्यों की 24 फ़ीसदी तक कमाई होती है। सबसे ऊँची 24 फ़ीसदी की दर उत्तर प्रदेश और उड़ीसा में है। शराब पर सबसे कम एक फीसदी एक्साइज ड्यूटी नागालैंड और मिज़ोरम में है।
शराब से मरने वाले कम नहीं
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में भारत में शराब पीने से 2.64 लाख से ज्यादा मौतें हुई थीं। इनमें 140632 जानें लीवर सिरोसिस की वजह से गईं, जबकि 92000 से ज्यादा लोग सड़क हादसों के शिकार हुए। करीब 31000 लोग कैंसर की वजह से अपनी जान से हाथ धो बैठे।
डब्ल्यूएचओ के ये आंकड़े डरावने हैं। फिर भी शराब पीने वाले अपनी मस्ती में किसी प्रकार की कमी नहीं आने देना चाहते। लाकडाउन के दौरान शराब की बिक्री ही नहीं शराब को लेकर लोगों की बेचैनी व बदहवासी भी उजागर हुई।
महिलाओं और लड़कियों ने भी संयम तोडा। लाइन में लगीं। पर खुद के लिए। पति के लिए नहीं। हमारे दक़ियानूसी समाज को ‘ वूमन्स लीव’ का दीदार हुआ होगा। जो लोग स्त्रियों के शोषण की बात करते नहीं थक रहे थे, उन्हें यह तो विश्वास हो जाना चाहिए कि स्वतंत्रता की शुरूआत हो तो गयी है।
सत्तर फीसदी टैक्स, तिस पर भी किल्लत
अरविंद केजरीवाल आईआरएस अफ़सर हैं सो लोगों की बेचैनी पढ़ने में बेहद माहिर हैं। तभी तो सत्तर फ़ीसदी टैक्स लगा दिया। आंध्र प्रदेश सरकार ने भी मौक़ा लपक लिया। लेकिन माँग और आपूर्ति के सारे सिद्धांत फेल हो गये।
मूल्य का माँग से भी कोई रिश्ता नहीं दिखा। शराब की दुकानें खुलने पर जश्न मनाते, कुछ फूल बरसाते दिखे। शराब ख़रीदने वालों को देश की अर्थव्यवस्था की जान कहा गया।
कहा गया आपके ही बदौलत देश की अर्थव्यवस्था चलेगी। शराब की मंहगाई को एक तरह का दान कहा गया। तभी तो उत्तर प्रदेश सरकार ने हर शनिवार व रविवार को भले कोरोना से बचाव के लिए लाकडाउन घोषित कर रखा था पर शराब की दुकानें खुले रहने का आदेश दे रखा था।
इस दौरान शराब ख़रीदने आप निकलें होंगे पुलिस ने रोका नहीं होगा। यदि रोका भी होगा और आपने यह बताया होगा कि आप प्रदेश की अर्थव्यवस्था में योगदान को जा रहे है, तब उसने आपको सम्मान ही दिया होगा।
प्रीमियम ब्रांड की डिमांड
लाकडाउन के दौरान शराब की दुकानों पर अनुशासन देखते बनता था। इस दौरान प्रीमियम ब्रांड की मांग ज्यादा रही।
देसी शराब की बिक्री की हिस्सेदारी बहुत कम थी। क्योंकि अधिकांश मजदूर लॉकडाउन के कारण या तो अपने घर जा चुके हैं या उनके पास शराब की खरीदारी करने के लिए पैसा ही नहीं बचा है।
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उनका अनुमान है कि हो सकता है कि गांव में अधिक बिक्री हुई हो, लेकिन वहां भी पैसे की अड़चन जरूर सामने आ रही होगी।
उत्तर प्रदेश सरकार के वित्त मंत्री ने बहुत ठसक से कहा कि जुलाई,2020 के महीने में हमारी आमदनी जुलाई, 2019 के महीने से 600 करोड़ रूपये ज़्यादा रही।
कमाई का श्रेय शराब को
इस उपलब्धि का श्रेय शराब को जाता है। कैसे और किस तरह जाता है यह मत पूछिये। इसका जवाब इतना टेढ़ा है कि इसको सुलझाने में आपने जो पी होगी वह उतर जायेगी। बिना बात के नुक़सान हो जायेगा।
यह शराब की अहमियत है कि योगी सरकार ने माल में शराब बेचने का आदेश निकाला। शराब को लेकर योगी की सरकार ने तीन चार फ़ैसले ताबड़तोड़ लिये।
दुनिया में भारत सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। वर्ष 2018-19 में 187.7 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ था। जो 2017-18 की तुलना में 6.5 प्रतिशत बढ़ा था।
सबसे ज्यादा दूध भारत में
भारत सरकार के 2018-19 के आँकड़े बताते हैं कि देश में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 394 ग्राम तक पहुंच गयी है। पशुपालन रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का प्रभावी माध्यम है। सर्वे के मुताबिक करीब 15.60 मिलियन श्रमिक पशुपालन से जुडे है।
जबकि शराब की खपत 2005 में प्रति व्यक्ति 2.4 लीटर प्रति वर्ष थी। जो 2016 में बढ़कर 4.3 लीटर हो गयीं ।
1990 से 2016 के बीच दुनिया भर के 195 देशों में अल्कोहल के इस्तेमाल व इसके दुष्प्रभाव पर अध्ययन के बाद मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि 15 से 49 साल के बीच के लोगों में से 10 में ले 1 मौत अल्कोहल से होती है।
पियक्कड़ यूपी में सबसे ज्यादा
उत्तर प्रदेश में 4.20 करोड़ लोग शराब पीते है। संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है। देश में यह आँकड़ा महज़ 16 करोड़ लोगों का है।
केंद्रीय सामाजिक न्याय व सशक्तीकरण मंत्रालय एवं अखिल भारतीय संस्थान, दिल्ली के संयुक्त अध्ययन में यह बात पता चली है कि 1.6 फ़ीसदी महिलाओं व 27.3 फ़ीसदी पुरुष शराब पीते है। शराब की खपत का आँकड़ा 5.8 फ़ीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। देश में कुल 110 शराब बनाने की फ़ैक्टरियाँ है। अकेले 70 महाराष्ट्र में हैं।
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शराब सरकार के लिए दुधारू गाय है। शराब और दूध के तैयार किये जाने व खपत के आंकडे ऐसे ही बढ़ते रहो तो वह दिन दूर नहीं कि जल्द ही हम दूध की खपत को काफ़ी पीछे छोड़ जायेंगें। हमें यह कहना पड़ सकता है-“हंगामा है क्यू बरपा थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है। “