मुस्लिम भक्त की मजार पर जरूर रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ, जानें इसका कारण

सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद पुरी में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का रास्ता साफ हो गया है।

Roshni Khan
Published on: 23 Jun 2020 5:23 AM GMT
मुस्लिम भक्त की मजार पर जरूर रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ, जानें इसका कारण
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद पुरी में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का रास्ता साफ हो गया है। पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस रथयात्रा पर रोक लगा दी थी मगर आदेश को वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 23 पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इन याचिकाओं को दाखिल करने वालों में भगवान जगन्नाथ का भक्त एक 19 वर्षीय मुस्लिम छात्र भी शामिल है। इस छात्र की आजकल खूब चर्चा हो रही है और उसकी तुलना इतिहास में दर्ज भगवान जगन्नाथ के सबसे बड़े मुस्लिम भक्त से की जा रही है जिसकी मजार पर हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा जरूर रुकती है।

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याचिका दाखिल करने वालों में मुस्लिम छात्र भी

भगवान जगन्नाथ की इस वर्ष की रथयात्रा में पिछले वर्षों की जैसई भीड़ नहीं दिखने वाली। हर वर्ष भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते रहे हैं। कोरोना को देखते हुए इस साल मंदिर से जुड़े सेवकों को ही रथ खींचने की इजाजत दी गई है। भक्तों की भीड़ को खतरा मानते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने 18 जून के आदेश में रथ यात्रा पर रोक लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल करने वालों में उड़ीसा के न्यागढ़ जिले का एक 19 वर्षीय छात्रा आफताब हुसैन भी शामिल है। सोशल मीडिया पर इन दिनों बीए अर्थशास्त्र अंतिम वर्ष के छात्र आफताब की खूब चर्चा हो रही है और उनकी तुलना भगवान जगन्नाथ के सबसे बड़े भक्त सालबेग से की जा रही है।

भगवान जगन्नाथ के भक्त हैं आफताब

आफताब हुसैन का कहना है कि वह बचपन से ही भगवान जगन्नाथ का भक्त रहा है। आफताब के दादा मुल्ताब खान भी भगवान जगन्नाथ के प्रति काफी श्रद्धा रखते थे। उन्होंने 1960 में भगवान ब्रह्मा, विष्णु, और महेश को एक मंदिर भी बनवाया था जिसे त्रिनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। आफताब का कहना है कि कई किताबें पढ़ने के बाद उसकी भगवान जगन्नाथ के प्रति आस्था और गहरी हो गई। आफताब कहना है कि उनके पिता इमदाद हुसैन, मां राशिदा बेगम और छोटे भाई अनमोल ने कभी उन्हें भगवान जगन्नाथ की पूजा करने से नहीं रोका। हालांकि आफताब अभी तक भगवान जगन्नाथ के दर्शन नहीं कर सके हैं क्योंकि उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है।

भगवान जगन्नाथ की पूजा से ठीक हुए घाव

सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत के दौर के मुगल सैनिक सालबेग को भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। सालबेग के पिता मुस्लिम थए जबकि मां ब्राह्मण थीं। पिता के मुगल सेना में सूबेदार होने के कारण सालबेग भी युवा होने पर मुगल सेना में भर्ती हो गए थे। एक युद्ध के दौरान सालबेग बुरी तरह घायल हो गए थे। इलाज के बावजूद फायदा न होने पर सालबेग की मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और सालबेग से भी ऐसा ही करने को कहा। मां के कहने पर सालबेग ने भी भगवान जगन्नाथ की पूजा की और जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने उन्हें सपने में दर्शन दिया। अगले दिन उनके शरीर के सारे घाव ठीक हो गए।

सालबेग को नहीं मिली दर्शन की अनुमति

बाद में सालबेग ने भगवान जगन्नाथ कए मंदिर जाकर दर्शन करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। इसके बाद उन्होंने मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की पूजा की और भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़िया भाषा में लिखे गए उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए। मंदिर में प्रवेश की अनुमति न मिलने पर सालबेग का कहना था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ उनकी मजार पर खुद दर्शन देने के लिए जरूर आएंगे। बाद में जब सालबेग की मौत हुई तो उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच दफना दिया गया।

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ऐसे हुई मजार पर रथ को रोकने की शुरुआत

कहा जाता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद रथयात्रा निकाले जाने पर रथ के पहिए मजार के पास जाकर रुक गए। काफी कोशिश करने के बाद भी रथ को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। तब मौके पर मौजूद एक व्यक्ति ने सालबेग का जयकारा लगवाने का अनुरोध किया। सालबेग का जयकारा लगाते ही रथ अपने आप ही आगे बढ़ निकला। जानकारों का कहना है कि तभी से सालबेग की मजार पर रथ को कुछ देर के लिए जरूर रोका जाता है।

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